विशाल समाचार टीम
रीवा: केन्द्रीय जेल रीवा में स्थापित मध्यप्रदेश गौपालन एवं पशु संवर्धन बोर्ड में पंजीकृत गौशाला को जबलपुर में आयोजित समारोह में जेल अधीक्षक एस.के. उपाध्याय को मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा पचास हजार रुपये का इनाम दिया गया है। गौशाला की बेहतर व्यवस्था एवं बंदियों को स्वरोजगार का प्रशिक्षण तथा उनके पुनर्वास को दृष्टिगत रखते हुए द्वितीय पुरूस्कार म.प्र.गौ पालन व पशु संवर्धन बोर्ड के अध्यक्ष स्वामी श्री अखिलेश्वरानंद की उपस्थिति में प्रदान किया गया । वर्तमान में जेल गौशाला में 70 गाये हैं जिसका प्रबंधन एवं देखभाल के लिए इच्छुक गाय सेवाधारी बंदियों की टीम लगाई गई है जो गौशाला प्रभारी / प्रहरी की देख – रेख में कार्य करते है । वे गाय को भोजन एवं पानी की व्यवस्था करते हैं । सुबह गायों को परिसर में ही घूमने के लिए छोड़ा जाता है । गौशाला में चारा , भूसा व्यवस्था परिसर में ही है। रात / दिन गायों की रक्षा , गौशाला की साफ – सफाई , टीकाकरण स्वास्थ्य देख-रेख , जेल प्रबंधन द्वारा कराया जाता है।
कार्यक्रम में मुख्यमंत्री जी द्वारा गौशाला की जानकारी प्राप्त गौशाला के विस्तार के लिए हर संभव मदद करने का आश्वासन दिया है । इस अवसर पर गौसंवर्धन बोर्ड के अध्यक्ष स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने बताया कि मध्यप्रदेश गोपालन एवं पशुधन संवर्द्धन बोर्ड”द्वारा प्रदेश में पंजीकृत गोशालाओं में ( 627 क्रियाशील गोशालाओं में) लगभग एक लाख 66 हजार गोवंश उपलब्ध एवं संरक्षित है। प्रदेश में गोसंवर्द्धन बोर्ड की देखरेख में 1000 गोशालाओं का निर्माण पूर्ण हुआ। जिनमें लगभग 72 हजार 232 गोवंश संरक्षित है तथा इन 1000 गोशालाओं के लिये 270 करोड़ रुपये प्रदाय किये जा चुके हैं। प्रदेश के आगर मालवा जिले की सुसनेर तहसील अन्तर्गत सालरिया नामक स्थान पर 1400एकड़ भूमि पर “कामधेनु गो अभयारण्य में 3200 गोवंश तथा रीवाँ जिले के बसावन मामा में “गोवंश वन्य विहार” विकसित किया गया है जिसमें लगभग 4000 गोवंश संरक्षित है। इसी प्रकार दमोह जिले के जरारू धाम “गो अभ्यारण्य “में 992 गोवंश संरक्षित है।
जेल गौशाला का कार्य उप अधीक्षक रविशंकर सिंह इन्द्रदेव तिवारी ,वरिष्ठ कल्याण अधिकारी डी.के. सारस, मंजू नायक सहायक अधीक्षक एवं संगीत शिक्षक राजेश शुक्ला की कार्यकारिणी समिति के सदस्यों के सहयोग से लगातार गौशाला के कार्य में प्रगति लाने के उद्देश्य से किया जा रहा है । जिससे बंदी पुनर्वासित होकर इसे स्वरोजगार के रूप में अपना सके।
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