वर्ल्ड सोरायसिस डे पर, विशेषज्ञों ने उन्नत उपचार की आवश्यकता पर जोर दिया
पुणे: सोरायसिस सोरायसिस एक स्थायी और स्व-प्रतिरक्षित (ऑटोइम्युनि)रोग है, जिससे लगभग 25 मिलियन भारतीय पीड़ित हैं। यह रोग त्वचा को प्रभावित करता है और उसमें प्रदाह, मोटापन, लालिमा, खुजली लाता है और उसे अक्सर चमकीले धब्बों से ढंक देता है। अगर इस पर ध्यान नहीं दिया जाए या इसका उपचार न हो, तो स्थिति ज्यादा बुरी हो सकती है। इसके लक्षणों को पहचानना आसान है और एक आसान शारीरिक जाँच के माध्यम से इसका निदान हो सकता है, लेकिन इस पर समझ बहुत कम है। ‘केवल त्वचा की एक समस्या‘ मानकर सोरायसिस और उससे जुड़ी परेशानियों की गंभीरता पर जानकारी कम रखी जाती है। इस कारण इसका खराब मैनेजमेंट होता है, उपचार का कम पालन होता है और डॉक्टर तथा मरीज के बीच परामर्श और क्लिनिकल फॉलो-अप्स भी कम होते हैं।
आज 29 अक्टूबर को वर्ल्ड सोरायसिस डे है। यह दिन सोरायसिस और सोरायटिक आर्थराइटिस पर जानकारियों से युक्त और मायने रखने वाली बातचीत बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण अवसर लेकर आता है। बातचीत से मौजूदा गलतफहमियाँ दूर हो सकती हैं और पता लगाया जा सकता है कि रोगी सोरायसिस को किस प्रकार प्रभावी ढंग से मैनेज कर सकते हैं और जीवन की समृद्ध गुणवत्ता का फायदा ले सकते हैं।
सोरायसिस में प्रदाह का संकेत मिलता है और इसके हल्के प्रभाव में भी बहुत प्रदाह होता है। इसे कई सहरूग्णताओं से भी जोड़ा जाता है। सबसे आम यह है कि सोरायसिस के तीन में से एक रोगी को सोरियाटिक आर्थराइटिस हो जाता है, जो इम्युन सिस्टम से जुड़ा एक अन्य स्थायी रोग है। इसमें जोड़ों और उनके आस-पास की जगहों में सूजन, अकड़न और दर्द होता है। अगर इसका उपचार न हो तो इससे छह माह से भी कम समय में जोड़ों को स्थायी क्षति हो सकती है।
इस रोग से जीवन के मापदंडों की महत्वपूर्ण गुणवत्ता पर भी नकारात्मक प्रभाव होते हैं, जैसे सामाजिक रूप से अलग-थलग होना, सम्बंध बिगड़ना, लांछन, काम से गैरहाजिरी, आत्म–सम्मान और मानसिक स्वास्थ्य। सोरायसिस के लगभग एक-तिहाई रोगियों को मनोवैज्ञानिक रोग हो जाते हैं, जैसे डिप्रेशन या एंग्जाइटी, जिससे रोग और भी बढ़ जाता है। कई रोगी और उनके परिजन इस रोग के त्वचा से इतर आशय नहीं समझते हैं, इसकी गंभीरता को नजरअंदाज किया जाता है और इसके शारीरिक लक्षणों से निपटने के लिये घरेलू इलाज या थोड़े समय की राहत देने वाले समाधान अपनाए जाते हैं। हालांकि उपचार के प्रभावी लक्ष्यों वाले समग्र प्रबंधन की स्पष्ट और अनिवार्य जरूरत है।
जोशी हॉस्पिटल, पुणे के डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. शरद मुतालिक ने कहा, “मेरे पास आने वाले मरीजों में से 15 से 20% को सोरायसिस है। इस बीमारी की प्रकृति और तेज गति की लाइफस्टाइल के कारण सबसे बड़ी चिंता उपचार का पालन न होने की रहती है। शरीर के बड़े एरिया को कवर करने वाले व्यापक सोरायसिस के मामलों में, खासकर जैसे पीठ पर, टॉपिकल क्रीम या ऑइंटमेंट लगाना चुनौतीपूर्ण और समय खाने वाला होता है और इसलिये उपचार के इस विकल्प का पालन नहीं हो पाता है। ऐसा होने पर मरीज की स्थिति और उसके जीवन की गुणवत्ता ज्यादा बिगड़ सकती है और बीमारी के लक्षण तेज हो सकते हैं। बायोलॉजीकल एजेंट्स जैसे उन्नत विकल्पों समेत मौजूदा एलोपैथिक ट्रीटमेंट ऑप्शंस में विकास के साथ प्रमाणित प्रभाव वाले ऐसे कई नये आशाजनक मॉलीक्यूल्स उभर रहे हैं, जो इस बीमारी को कम करने का वादा करते हैं। सही समय पर इलाज लेने और कसरत, योगासन, स्वास्थ्यकर आहार जैसे बदलाव अपनी जीवनशैली में करने से आलस वाली जीवनशैली से पैदा हुई समस्याएं दूर हो सकती हैं और सोरायसिस पर पूरा नियंत्रण भी हो सकता है।”