_शारदा शक्ति पीठ मंदिर 5 हज़ार वर्ष पुराना है। सम्राट अशोक के शासन काल में 237 ईसा पूर्व स्थापित विद्या की अधिष्ठात्री देवी को समर्पित यह मंदिर अध्ययन का एक प्राचीन केंद्र रहा है। पहली शताब्दी के प्रारंभ में कुषाणों के शासन के दौरान हुये मंदिर निर्माण से कुछ बौद्ध मान्यताएँ भी जुडी हैं। मुज़फ़्फ़राबाद से 140 और कुपवाड़ा से 30 किमी की दूरी पर पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पास नीलम नदी के तट पर यह स्थित है। जिस तरह से पाकिस्तान से बातचीत करके सिखों के पवित्र स्थल करतारपुर के लिए एक कारीडोर भारत सरकार ने बनवाया है ठीक वैसे ही शारदा पीठ के लिए भी एक कारीडोर की व्यवस्था होनी चाहिए।_
*पीओके स्थित शारदा शक्तिपीठ : करतारपुर की तरह बने कारीडोर :-अमित त्यागी
माँ सरस्वती विद्या, बुद्धि एवं संगीत की देवी हैं। चाहें चित्रकार हो, फ़िल्मकार हो, पत्रकार हो, ग़ज़लकार हो या फिर साहित्यकार हो वह किसी भी क्षेत्र से जुड़ा कार हो उसके लिए बसंत पंचमी का वही महत्व है जिस तरह से क्षत्रियों के लिए दशहरा, वैश्यों के लिए दीपावली का महत्व है। क्या यह संभव है कि आगामी बसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती का पूजन करते समय 18 शक्ति पीठों में से एक शारदा पीठ का भी ध्यान हम लोग करें। पाक अधिक्रांत कश्मीर में स्थित शारदा शक्ति पीठ के संदर्भ में मान्यता है कि यह मंदिर लगभग 5 हज़ार वर्ष पुराना है और सम्राट अशोक के शासन काल में 237 ईसा पूर्व इसकी स्थापना हुयी थी। विद्या की अधिष्ठात्री देवी को समर्पित यह मंदिर अध्ययन का एक प्राचीन केंद्र रहा है। कुछ मान्यताओं के अनुसार मंदिर का निर्माण पहली शताब्दी के प्रारंभ में कुषाणों के शासन के दौरान हुआ था तो कुछ मान्यताएँ बौद्धों की शारदा क्षेत्र में भागीदारी की बात करती हैं। शारदा पीठ मुज़फ़्फ़राबाद से लगभग 140 किलोमीटर और कुपवाड़ा से लगभग 30 किमी की दूरी पर पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पास नीलम नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर की ऊंचाई 142 फीट और चौड़ाई 94.6 फीट है। इसके वृत्तखंड 8 फीट की ऊंचाई के हैं लेकिन अब अधिकतर ढांचा क्षतिग्रस्त हो चुका है। इस मंदिर के लिए मान्यता है कि देवी सती के शरीर के अंग उनके पति भगवान शिव द्वारा लाते वक्त गिर गए थे। पूरे दक्षिण एशिया भूभाग में यह अत्यंत प्रतिष्ठित मंदिर एक शक्ति पीठ है। शारदा पीठ का अर्थ होता है शारदा की भूमि या गद्दी या जगह। यह हिंदू देवी सरस्वती का कश्मीरी नाम है।
शारदा पीठ विद्या का एक प्राचीन केंद्र रहा है। कभी पाणिनि और अन्य व्याकरणियों द्वारा लिखे गए ग्रंथ यहाँ संग्रहीत थे। इस कारण से इस स्थान को वैदिक कार्यों, शास्त्रों और टिप्पणियों के उच्च अध्ययन का एक प्रमुख केंद्र भी माना जाता रहा है। देश के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक शारदा विश्वविद्यालय रहा है। अपनी लिपि के लिए प्रसिद्ध शारदा पीठ के लिए कहा जाता है कि पहले इसमें लगभग 5,000 विद्वान थे। यहाँ उस समय का सबसे बड़ा पुस्तकालय भी था। 1947 के विभाजन का एक बड़ा दंश शारदा पीठ ने भी झेला है। 1947 के बाद से ही मंदिर पूरी तरह निर्जन हो गया है। 1947 तक लोग यहाँ पर दर्शन करने के लिए जाते थे, लेकिन उसके बाद स्थिति अच्छी नहीं रही है। वर्तमान में शारदा पीठ की हालत बहुत खराब है। जिस तरह से पाकिस्तान से बातचीत करके सिखों के पवित्र स्थल करतारपुर के लिए एक कारीडोर भारत सरकार ने बनवाया है ठीक वैसे ही शारदा पीठ के लिए भी एक कारीडोर की व्यवस्था होनी चाहिए। शारदा पीठ सिर्फ एक सामान्य मंदिर नहीं है बल्कि शक्ति पीठ है जो हिन्दू मान्यताओं, संस्कृति और शिक्षा के प्रमुख केन्द्रों में से एक रहा है।
बसंत पंचमी के दिन जब हम शिक्षा की देवी माँ सरस्वती को याद करें तो सभी कला से जुड़े कारों को माँ इस शक्तिपीठ का नमन करके इसके लिए व्यापक जन अभियान चलाना चाहिए। बसंत पंचमी के दिन हमने कई विदेशी परम्पराओं को आत्मसात किया है। पतंग उड़ाना एक ऐसी ही परंपरा है जिसकी शुरुआत चीन से मानी जाती है। बाद में कोरिया और जापान में भी ऐसी परम्पराएँ शुरू हुयी। भारतीय परंपरा में तो लोग पीले वस्त्रों को धारण करके पीले चावल का सेवन करते रहे हैं। हालांकि, पंतंगबाजी का कोई धार्मिक महत्व नहीं है किन्तु आज जब सभी धर्मों के लोग बसंत पंचमी के दिन पतंगबाजी करते दिखाई देते हैं तब भारत की सांस्कृतिक भावना मजबूत होती है। बसंत पंचमी के दिन अब हमें पाकिस्तान स्थित माँ शारदा शक्ति पीठ की उपासना को भी अपनी परंपरा में शामिल करना चाहिए। इसके साथ ही शारदा शक्तिपीठ के लिए कॉरीडोर की मांग भी ज़ोर पकडनी चाहिए। *(विधि एवं प्रबंधन में परास्नातक लेखक वरिष्ठ स्तंभकार एवं जम्मू, कश्मीर, लद्दाख अध्ययन केंद्र के सदस्य हैं। )