संसार में रहते हुए नाम साधना पर ध्यान देना ह.भ.प.डॉ.रविदास महाराज सिरसाठ के विचारः पालकी प्रस्थान समारोह का समापन
पुणे: हरिपाठ में नामस्मरण के तीन चरणों का उल्लेख है. नाम स्मरण आंतरिक है, नाम जप मौखिक रूप से करना होता है और नाम घोष एक मुख से लेना है. संसार में रहकर मनुष्य को नाम साधना पर अधिक ध्यान देना चाहिए. वहीं उसका कल्याण निहित है. ऐसे विचार आलंदी देवाची के ह.भ.प.डॉ. रविदास महाराज सिरसाठ ने रखे
विश्वशांति केन्द्र (आलंदी), माईर्स एमआईटी, पुणे तथा श्री क्षेत्र आलंदी-देहू परिसर विकास समिति के संयुक्त तत्वावधान में श्री संत ज्ञानेश्वर तुकाराम ज्ञानतीर्थ विश्वरूप दर्शन मंच श्री क्षेत्र आलंदी में पालकी समारोह प्रस्थान को लेकर यूनेस्को अध्यासन अंतर्गत लोकतंत्र, मानवाधिकार, शांति और सहिष्णुता के लिए लोक शिक्षा का अभिनव उपक्रम के समापन मौके पर बोल रहे थे.
इस अवसर पर विश्वशांति केन्द्र (आलंदी), एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष प्रो.डॉ. विश्वनाथ दा. कराड, संयुक्त राष्ट्र के सदस्य डॉ. राजेंद्र शेंडे, नागपूर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. एस.एन.पठाण, उर्मिला कराड, ह.भप.प. तुलसीराम दा. कराड, उषा कराड, प्रो.ज्योति कराड ढाकने, प्रो. डॉ. स्वाति कराड चाटे, एमआईटी डब्ल्यूपीयू के कुलपति डॉ. मिलिंद पात्रे और हभप डॉ. सुदाम महाराज पानेगांवकर उपस्थित
इस अवसर पर हभप डॉ. रविदास महाराज शिरसाठ द्वारा लिखित पुस्तक हरिपाठ द सीक्रेट ऑफ द सुप्रीम डिवोशनल का विमोचन गणमान्य व्यक्तियों ने किया.
हभप डॉ. रविदास महाराज सिरसाठ ने कहा, हरिपाठ सभी आम लोगों के लिए आसान और कठिन होता है. लेकिन भक्ति ही ईश्वर का मुख्य द्वार है. वारकरी संप्रदाय ज्ञान का स्त्रोत है. अंतः भावी पीढ़ियों को बेहतर मूल्य प्रदान करने के लिए इसे शैक्षिक पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए. मानव कल्याण और समाज की भलाई के लिए हरिपाठ का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है, जो सबकी भलाई के लिए है.
हभप बबनराव पाचपुते ने कहा, मनुष्य इस सृष्टि में सबसे अच्छी कृति है. इसलिए किसी को भी अपने आप को कमजोर नहीं समझना चाहिए. यह शरीर परोपकार के लिए होना चाहिए. हमें नित्य ईश्वर का स्मरण करना चाहिए ताति हम अनन्त मोक्ष प्राप्त कर सकें. इस सृष्टि से कुछ भी नहीं छीना जाएगा. जहां धन और दया है वहां भगवान परीक्षा देखता है. इसलिए सभी को विश्वास रखना चाहिए. दयालुता से काम लेना चाहिए, दयालु होना चाहिए और ईश्वर के साथ अपना वचन रखना चाहिए.
प्रो. डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने कहा, वारकरी संप्रदाय दुनिया को सुख, संतोष और शांति का संदेश देना है. सभी धर्म ग्रंथ सच्चे जीवन ग्रंथ है. ज्ञानोबा तुकोबा के दर्शन को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया गया है.
इसके बाद ज्ञानेश्वर के गहन अध्ययनकर्ता हभप किसन महाराज साखरे के पुत्र चिदम्बरम महाराज का कीर्तन हुआ. साथ ही डॉ. मोरवंचिकर द्वारा लिखित पुस्तक समाधितील स्पंदने पुस्तक का विमोचन हुआ.
सूत्रसंचालन शालिराम खंदारे ने किया. महेश महाराज नलावडे ने सभी का आभार माना.