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नव भारत निर्माण के लिए संत साहित्य जरूरी डॉ. विनय सहस्त्रबुध्दे के विचारः एमआईटी डब्ल्यूपीयू में द्वितीय भारतीय संत साहित्य उच्च शिक्षा परिषद का उद्घाटन

नव भारत निर्माण के लिए संत साहित्य जरूरी
डॉ. विनय सहस्त्रबुध्दे के विचारः एमआईटी डब्ल्यूपीयू में द्वितीय भारतीय संत साहित्य उच्च शिक्षा परिषद का उद्घाटन

पुणे : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक नई राष्ट्रीय नीति तैयार की जा रही है. इसलिए नई पीढी को अपनी धरती से जोडना चाहिए और यह कार्य भारतीय अध्यात्म अर्थात संत साहित्य से ही हो सकता है. तार्किक चिंतन के लिए संत साहित्य आवश्यक है. अध्यात्म के कारण इस देश का अस्तित्व कभी नहीं मिटेगा. इससे ही नये भारत का निर्माण होगा. भारत की भारतीयता में भारत का योगदान संत साहित्य में निहित है. ऐसे विचार पूर्व राज्यसभा सदस्य और आईसीसीआर के अध्यक्ष डॉ. विनय सहस्त्रबुद्धे ने व्यक्त किए.
वे एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी और श्रीक्षेत्र आलंदी देहु कैंपस विकास परिसर, कमेटी, आलंदी देवाची पुणे के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय द्वितीय भारतीय संत साहित्य उच्च शिक्षा सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे. यह सम्मेलन कोथरूड स्थित एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी में आयोजित किया जा रहा है.
इस अवसर पर मोक्षयत अंतर्राष्ट्रीय योगाश्रम के संस्थापक पद्मश्री स्वामी भारत भूषण मुख्य अतिथि थे. केरल के रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम के सचिव स्वामी नरसिंहनानंद तथा श्रीपीठम के संस्थापक स्वामी परिपूर्णानंद सरस्वती सम्माननीय अध्यक्ष थे.
एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष प्रो. डॉ. विश्वनाथ दा. कराड, एमआईटी डब्लूपीयू के कार्याध्यक्ष राहुल विश्वनाथ कराड, कुुलपति डॉ. आर.एम.चिटणीस, संयोजन समिति के अध्यक्ष ह.भ.प बापूसाहेब मोरे, कार्यकारी अध्यक्ष ह.भ.प. रविदास महाराज शिरसाठ और संयोजक डॉ. संजय उपाध्ये उपस्थित थे.
डॉ. विनय सहस्त्रबुद्धे ने कहा, संत के उपदेश का मन पर गहरा प्रभाव पडता है. संत साहित्य में गुण है. यह इतना व्यापक है कि इसे आधुनिक विज्ञान के ढांचे के भीतर नहीं रखा जा सकता है. संतों ने गुरू शिष्य की परंपरा बताई है. भारत की सौम्य संपदा संत साहित्य है और इसे आज के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए. इसमें ब्रह्माकुमारी, जग्गी वासुदेव, सत्य साईबाबा जैसे अन्य संतों का साहित्य शामिल होना चाहिए. इन सामग्रिंयों को एक मंच पर लाने का काम एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के माध्यम से किया जा रहा है.
पद्मश्री स्वामी भारत भूषण ने कहा, राष्ट्र निर्माण का यह कार्य संतों ने किया है. इस देश में जो संत बन गए है उनकी वाणी साहित्य के रूप में सामने आ रही है. योग भी संत परंपरा की देन है और यह मानव मन को छू जाता है. वर्तमान शिक्षा प्रणाली में भक्ति, योग, ज्ञान, लय का समन्वयक होना चाहिए. संत साहित्य मानव कल्याण के लिए है और संपूर्ण ज्ञान शांति की तलाश में है. शांति में ही रचनात्मक का रहस्य है.
प्रो.डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने कहा, संतों ने हमेशा समाज कल्याण के लिए काम किया है. उनका साहित्य जीवन कैसे जीना है और कैसे नहीं जीना है, इसका ज्ञान देता है. संत ज्ञानेश्वर ने ७०० साल पहले वैज्ञानिक बातों का जिक्र किया है. इस दुनिया में अध्यात्म और विज्ञान के सामंजस्य से ही शांति प्राप्त की जा सकती है. संत ज्ञानेश्वर माऊली के नाम पर बने गुम्बद के माध्यम से आज विश्व शांति की गाथा गाई जाएगी. स्वामी विवेकानंद के अनुसार, भविष्य में भारत माता ज्ञान के रूप में उभरेगा और पूरे विश्व को शांति का मार्ग दिखाएगा.
स्वामी परिपूर्णानंद सरस्वती ने कहा, शांति तीन प्रकार की होती है, आध्यात्मिक शांति, मौलिक दिव्य शांति और मौलिक शारीरिक शांति. मनुष्य को आज विज्ञान से अधिक अध्यात्म की आवश्यकता है. पारंपारिक विज्ञान पूर्ण है, इसमें संपूर्ण आध्यात्मिकता शामिल है, जबकि आधुनिक विज्ञान भौतिकवाद की ओर मुडता है. अध्यात्म विज्ञान वैज्ञानिक विज्ञान का मूल है. संत साहित्य एक सॉफ्ट शक्ति है और उसी शक्ति से भारत विश्व का गुरू बनेगा.
स्वामी नरसिम्हनानंद ने कहा, भारत के संत साहित्य को पूरी दुनिया में उपलब्ध कराने पर गर्व है. आधुनिक समय में विज्ञान का प्रयोग करते हुए संत साहित्य का एप बनाकर उपलब्ध कराना चाहिए. साथ ही संतों के साहित्य को कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत करना चाहिए. चूंकि आज की शिक्षा केवल डिग्री के बारे में है, इसमें मूल्यों को शामिल करने की आवश्यकता है. इससे आंतकिरक परिवर्तन होंगा.
राहुल विश्वनाथ कराड ने कहा, सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति की नई नीति प्रस्तावित की है. इसकी पूर्ति के लिए संत साहित्य का शिक्षा में बहुत महत्व है. यह संस्था इस बारे में सोच रही है कि कैैसे छात्रोंं को उच्च शिक्षा में मूल्यवान बनाया जाए. सभी संतों के साहित्य में कितना विज्ञान समाहित है. इस पर अभी तक किसीने कोई शोध नहीं किया है. इसलिए इस पर शोध करना जरूरी है.
हभप बापूसाहेब मोरे ने स्वागत भर भाषण किया. डॉ. संजय उपाध्ये ने कार्यक्रम की पृष्ठभूमि बताई.
प्रो.डॉ. गौतम बापट ने संचालन किया.

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