तुम कर्म करते रहो
फल की इच्छा ना करो
कर्म किये बिना ही
फल की इच्छा करना है
मृग्तृष्णा सा
जो आनन्द देता है
केवल पल भर के लिये
तथा अन्त मे बनता है
पश्याताप का कारण
निरंतर कर्म करते रहना
देता है आनन्द मय फल
वह फल
जिस पर केवल हक है तुम्हारा
तुम्हारे परिश्रम का
जो तुमने किया था
तुम्हारे विपरित समय मे
जब तुम बिना विचलित हुए
केवल करते रहे कर्म
निरंतर कर्म करके प्राप्त फल
देता है जीवन भर सूकुन
लेखक: प्रवीण मांगलियाका
रोला सांचोर(राजस्थान)