९५ फीसदी मतदाताओं को ईवीएम पर नहीं है भरोसा
जनता को न्याय दिलाने परिवर्तन का सर्वे
बसपा, वीबीए और भारतीय रिपब्लिकन पार्टी (भारिप) के लिए सटीक रणनीति बनाने में होगा उपयोगी
रिपोर्ट देवेन्द्र सिंह तोमर पुणे: लोकसभा और विधानसभा चुनावों की पृष्ठभूमि में, बहुजन समाज के स्वयंभू सामाजिक कार्यकर्ताओं के परिवर्तन संघ ने ऑनलाइन सर्वेक्षण किया है, जिसका उद्देश्य बहुजन समाज की गंभीर समस्याओं का समाधान करना है. सर्वे के मुताबिक ९५ फीसदी मतदाताओं को ईवीएम पर भरोसा नहीं है. उन्होंने निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव के लिए पारंपरिक मतपत्र को चुनने की इच्छा जताई है. यह सर्वेक्षण बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी), वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) और भारतीय रिपब्लिकन पार्टी (भारिप) के लिए भी उपयोगी हो सकता है. ऐसी जानकारी एड. अरुण कुमार डोलस, पंकज जाधव और दत्तात्रेय गोरखे ने दिया.
अरुण कुमार डोलस ने कहा, सर्वेक्षण से सात प्रमुख निष्कर्ष निकाले गये हैं. तदनुसार, वीबीए, बीएसपी और भारिप (ए) को गठबंधन की रणनीति पर इंडिया ग्रुप के साथ गठबंधन करना चाहिए. सर्वेक्षण के अनुसार, ६३ प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना है कि वीबीए और भारत को गठबंधन बनाना चाहिए. ६२ प्रतिशत प्रतिभागियों को बसपा और भारत के बीच गठबंधन की उम्मीद है. जबकि ५२ प्रतिशत प्रतिभागियों को भारिप (ए) और भारत समूह के बीच गठबंधन की उम्मीद है.
बहुजन समाज के मतदाताओं की पसंद के संबंध में, ४९ प्रतिशत (सर्वोच्च) उत्तरदाताओं ने संकेत दिया कि बहुजन समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिक दलों को एनडीए या भारत के साथ गठबंधन करना चाहिए. अन्यथा, मतदान के समय वीबीए उनकी सबसे पसंदीदा पार्टी होगी. ऐसे परिदृश्य में मतदान करते समय ३१ प्रतिशत प्रतिभागियों ने भारत समूह के लिए प्राथमिकता व्यक्त की. बहुजन समुदाय में नागरिकों के बीच वीबीए की बढ़ती लोकप्रियता भी राज्य में भारत और वीबीए के बीच गठबंधन की आवश्यकता का संकेत देती है.
मतदान माध्यम की प्राथमिकता के संबंध में: ९५ फीसदी लोगों को मतदान माध्यम या ईवीएम पर भरोसा नहीं है. निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया के लिए ईवीएम के स्थान पर पारंपरिक मतपत्रों को चुनने की इच्छा है.
एकता बनाने में आने वाली बाधाओं पर: ६१ प्रतिशत प्रतिभागियों को लगता है कि महाराष्ट्र की मौजूदा स्थिति में वीबीए और बीएसपी का एक पार्टी में विलय हो सकता है. ५९ प्रतिशत प्रतिभागियों ने वीबीए और बीएचएआरपी (ए) के बीच एकीकरण की इच्छा व्यक्त की. ५४ प्रतिशत प्रतिभागियों के साथ, तीन प्रमुख दल, बीएसपी, वीबीए और भारिप (ए) को फिलहाल एक साथ आने की कोई संभावना नहीं दिख रही है. इसलिए ६० फीसदी प्रतिभागियों को बसपा और भारिप (अ) में सुनवाई की संभावना नहीं दिख रही है.
एकता बनाने में आने वाली बाधाओं पर: सर्वेक्षण के अनुसार, नेताओं का अहंकार (२५ प्रतिशत), स्वार्थ (२३ प्रतिशत) और आपसी विश्वास की कमी (१५ प्रतिशत) प्रमुख बाधाएँ हैं, तो केवल बहुजन समाज का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टियाँ ही एकजुट हो सकती हैं.
बहुजन समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिक दलों में से ५५ प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना है कि बहुजन समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले सभी राजनीतिक दलों में ऐतिहासिक मतभेद हैं. उन्हें एकजुट करने के पिछले प्रयास विफल होने के बाद भी वे एक साथ आ सकते हैं. ३८ वर्ष की आयु तक के युवा, ६५ प्रतिशत महिलाएं और ६२ प्रतिशत पुरुष, एकता को लेकर अधिक आशावादी हैं. ७७ फीसदी का बड़ा बहुमत चाहता है कि ये पार्टियां एक साथ आकर एक मजबूत राजनीतिक दल बनाएं.
राजनीतिक क्षेत्र की दृष्टि से देखें तो ऐसा प्रतीत होता है कि भारत की जनसंख्या में ८० प्रतिशत से अधिक आबादी बहुजन समाज की है. हालाँकि, उनका प्रतिनिधित्व करने वाला कोई भी प्रमुख राजनीतिक दल केंद्र या महाराष्ट्र में सरकार नहीं बनाएगा क्योंकि उनके विचार विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच विभाजित हैं.
सर्वेक्षण संदर्भ से सभी विस्तृत जानकारीः
यह सर्वेक्षण बहुजन समाज के एससी, एसटी और ओबीसी श्रेणियों के स्व-प्रेरित सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक अनौपचारिक संगठन, परिवर्तन द्वारा आयोजित किया गया था. सर्वेक्षण, जो १४ फरवरी से २४ मार्च तक आयोजित किया गया था. बहुजन समाज के १,०२३ महाराष्ट्रीयन लोगों को जवाब दिया. सर्वेक्षण में ५ खंडों में ५० प्रश्न शामिल थे. गठबंधन, बहुजन समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिक दलों के बीच एकता, ईवीएम आदि से सीधे संबंधित १४ प्रश्नों के निष्कर्षों को आगामी चुनावों के मानदंडों पर विचार किया जाता है.