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लॉकडाउन पर असमंजस में मोदी, जान बचाएँ या अर्थव्यवस्था?

भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर से बड़ी तादाद में हो रही मौतों को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन लगाने का दबाव बढ़ता जा रहा है लेकिन सरकारी अधिकारियों का कहना है कि फ़िलहाल केंद्र सरकार देशभर में सम्पूर्ण लॉकडाउन लागू करने के पक्ष में नहीं है.
विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इसकी वकालत करते हुए मंगलवार को कहा, “कोरोना के प्रसार को रोकने का एकमात्र तरीका एक पूर्ण लॉकडाउन है- कमज़ोर वर्गों के लिए ‘न्याय’ की सुरक्षा के साथ.”
न्याय से उनका आशय ‘न्यूनतम आय योजना’ से है, कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनाव से पहले कहा था कि अगर वह चुनाव जीती तो इस योजना को लागू करेगी.
भारत के कई राज्यों ने अपने स्तर पर लॉकडाउन लागू किया है. मिसाल के तौर पर मंगलवार को छत्तीसगढ़ की सरकार ने अप्रैल की शुरुआत से लगे लॉकडाउन को 10 दिन के लिए और बढ़ा दिया है, अब राज्य में 15 मई तक लॉकडाउन होगा.
दूसरी ओर, सोमवार को अमेरिकी प्रशासन के मुख्य चिकित्सा सलाहकार डॉक्टर एंथनी फाउची ने भारतीय न्यूज़ एजेंसी पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में दो-तीन सप्ताह के लिए राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन लगाने की सलाह दी थी.
इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “जब आपके इतने सारे लोग संक्रमित हैं, तो सभी की पर्याप्त देखभाल करने की क्षमता कम हो जाती है; जब आपके पास अस्पताल के बेड और ऑक्सीजन की कमी होती है, तो यह वास्तव में एक बहुत ही हताशा की स्थिति बन जाती है, इसलिए हमें लगता है कि सभी देशों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे जिस हद तक भारत की मदद कर सकते हैं, ज़रूर करें.”
भारत की शीर्ष अदालत ने दो दिन पहले मोदी सरकार को दूसरी लहर की रोकथाम के लिए लॉकडाउन लगाने की सलाह दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक सभाओं और संक्रमण फैलाने वाले ‘सुपर स्प्रेडर’ कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगाने का भी मशवरा दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हम लॉकडाउन के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव से परिचित हैं, विशेष रूप से, हाशिए के समुदायों पर इसके असर से, अगर लॉकडाउन लागू किया जाता है, तो इन समुदायों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पहले से व्यवस्था की जानी चाहिए.”
ज़ाहिर है, सुप्रीम कोर्ट ने यह बात 2020 में लगाए गए संपूर्ण लॉकडाउन को ध्यान में रखकर कही थी जब लाखों-लाख मज़दूरों को भारी दिक्कतों के बीच किसी तरह अपने घर-गाँव लौटना पड़ा था, कई मज़दूर रास्ते में थकान और भूख की वजह से अपनी जान गँवा बैठे थे.

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