आरोग्यपूणे

मणिपाल हॉस्पिटल बाणेर के डॉक्टरों ने 38 वर्ष की महिला को रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर के कारण रेस्पिरेटरी पैरालिसिस से बचाने के लिए डी-वेव टेक्नोलॉजी का उपयोग किया

मणिपाल हॉस्पिटल बाणेर के डॉक्टरों ने 38 वर्ष की महिला को रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर के कारण रेस्पिरेटरी पैरालिसिस से बचाने के लिए डी-वेव टेक्नोलॉजी का उपयोग किया

 

इस 38 वर्ष की महिला की रीढ़ की हड्डी से ट्यूमर को निकाल दिया गया

 

पुणे:  हाल ही में मणिपाल हॉस्पिटल, बाणेर में एक 38 वर्षीय महिला गले में भारी दर्द की शिकायत के साथ पहुँची। इस दर्द की वजह से उसके दैनिक जीवन पर गहरा असर पड़ रहा था, और उसे चलने में परेशानी हो रही थी, जिससे उसकी दैनिक गतिविधियाँ सीमित हो गई थीं। मणिपाल हॉस्पिटल में उसका निदान किया गया, और एमआरआई स्कैन में सामने आया कि उसकी नाजुक रीढ़ की हड्डी में एक 7 सेमी.x7 सेमी. का एपेंडिमोमा, सौम्य ट्यूमर था। इस ट्यूमर के आकार और जिस जगह यह स्थित था, उसके कारण इस ट्यूमर को पूरी तरह से निकाला जाना आवश्यक था, ताकि यह भविष्य में कोई मुश्किल उत्पन्न न करे। हालाँकि इस नाजुक जगह सर्जरी के कारण पोस्टऑपरेटिव न्यूरल विकार होने का बड़ा खतरा था, जिससे चारों अंगों में पैरालिसिस या रेस्पिरेटरी कंट्रोल प्रभावित हो सकता था।

 

इस मामले की गंभीरता को देखते हुए मणिपाल हॉस्पिटल बाणेर की सर्जिकल टीम ने सफलता की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी, यानी डी वेव टेक्नोलॉजी, और क्यूसा (कैविट्रॉन अल्ट्रासोनिक सर्जिकल एस्पिरेटर) का उपयोग किया। यह ट्यूमर नाजुक रीढ़ की हड्डी में स्थित था, जिसे महत्वपूर्ण नसों ने घेर रखा था, जो अंगों और साँस लेने की प्रक्रिया को नियंत्रित करती हैं। इस सौम्य ट्यूमर को पूरी तरह से निकाला जाना आवश्यक था ताकि भविष्य में यह दोबारा न हो या कोई अन्य मुश्किल उत्पन्न न हो। हालाँकि इसमें पोस्टऑपरेटिव न्यूरल विकार होने का जोखिम बहुत ज्यादा था, जिससे अंगों में कमजोरी आ सकती थी या रेस्पिरेटरी पैरालिसिस भी हो सकती था।

 

इस मामले की गंभीरता के बारे में डॉ. अमित धाकोजी, हेड ऑफ द डिपार्टमेंट एवं कंसल्टैंट न्यूरोसर्जन, मणिपाल हॉस्पिटल, बाणेर ने कहा, ‘‘यह मामला स्पाईनल सर्जरी में हुई जबरदस्त प्रगति का उदाहरण है, जिसकी वजह से हम चुनौतीपूर्ण कैंसरों का इलाज करने में समर्थ बने हैं। इस सर्जरी में इंट्राऑपरेटिव मॉनिटरिंग के लिए डी वेव इलेक्ट्रोड का उपयोग किया गया ताकि हमें मरीज की मोटर परफॉर्मेंस का रियल-टाईम फीडबैक मिल सके। हम इस तकनीक में संशोधन करके नसों की गतिविधि पर नजर रखते हुए महत्वपूर्ण नसों को चोट पहुँचाने की संभावना कम कर पाए। साथ ही उच्च क्षमता के माईक्रोस्कोप की मदद से हमें ट्यूमर और इसके चारों ओर की स्पष्ट और मैग्निफाईड इमेज प्राप्त हुई। इस प्रकार हम ट्यूमर पर लक्ष्य केंद्रित करके ज्यादा नियंत्रित तरीके से उसे निकाल पाए।’’

 

इस ऑपरेशन में डॉ अमित धाकोजी (न्यूरोसर्जन), डॉ. श्रेयकुमार शाह ( न्यूरोसर्जन), एनेस्थेटिस्ट एवं टेक्नॉलॉजिस्ट सहित पूरी टीम का अहम योगदान रहा|

 

इस मामले के बारे में श्री आनंद मोटे, क्लस्टर डायरेक्टर, मणिपाल हॉस्पिटल, बाणेर ने कहा, ‘‘इस ट्यूमर को सफलतापूर्वक निकाल दिया गया, और मरीज को कोई पोस्टऑपरेटिव परेशानी भी नहीं हुई। यह अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी और इनोवेटिव सर्जिकल विधियों का उपयोग करने की हमारी प्रतिबद्धता का प्रमाण है। डी-वेव टेक्नोलॉजी और इंट्राऑपरेटिव मॉनिटरिंग के साथ जोखिम को कम से कम करके हमने मरीज के लिए सर्वश्रेष्ठ परिणाम सुनिश्चित किए। यह मामला हमारी मेडिकल टीम की प्रतिबद्धता और विशेषज्ञता का उदाहरण है। हमें गर्व है कि हम मरीज को पूरी तरह से स्वस्थ बना पाए और उनका मोटर फंक्शन फिर से काम करने लगा।’’

 

इस सर्जरी के बाद मरीज को कोई पोस्ट-ऑपरेटिव विकार नहीं हुआ और उसके सभी अंगों में मोटर फंक्शन पूरी तरह से काम करने लगा, जिससे मरीज को अपना पूरा स्वास्थ्य वापस मिल गया। सर्जरी के दौरान मस्तिष्क को चोट से बचाने के लिए इंट्राऑपरेटिव मॉनिटरिंग बहुत जरूरी थी, और सतर्क सर्जिकल विधियों एवं टीमवर्क की मदद से इलाज के सर्वोत्तम परिणाम मिल सके।

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