विचार

प्रकृति का नियम परिवर्तन 

प्रकृति का नियम परिवर्तन 

ठाकुर नरेंद्र सिंह तंवरघार कौंथरकला

परिवर्तन इस संसार का शाश्वत सत्य है। कोई भोर ऐसी नहीं जिसकी संध्या ना हो और कोई संध्या ऐसी भी नहीं जिसकी भोर ना हो। यहाँ कोई रात ऐसी नहीं जिसके गर्भ से प्रभात का जन्म ना हो।

लेकिन कुछ तुच्छ तथाकथित समाज के नेता स्वयं को समाजसेवी मानने वाले भ्रम पाले हुए कि हम ही सब कुछ है ये हमेशा स्वयं को ही श्रेष्ठ सिद्ध करने के चक्कर में समाज के दूसरे लोगों को मच्छर समझते है ये उनका भ्रम है समाज सब जनता हैं। एक बुद्धिजीवी ने कहा हैं कि जिस व्यतित्व से लोग जलने लगे तो समझो वह व्यक्ति शिखर की ओर जा रहा है इसलिए:::::?

बुराई करने वालों का हमेशा सम्मान

करना चाहिए क्योंकि वह आपको

हर समय चर्चा में रखते है•••

हम उन वस्तुओं को सँभालने के प्रयास में लगे हैं जो सदा एक जैसी नहीं रह सकती। हमारी अवस्था भी नित्य बदल रही है। जैसे हम कल थे वैसे आज नहीं हैं और जैसे आज हैं वैसे कल नहीं रहेंगे।

जीवन बड़ा अनिश्चित है इसलिए जो श्रेष्ठ कर्म करना चाहो वो शीघ्र कर लेना। मानव मस्तिष्क के विचार भी प्रतिक्षण बदल रहे हैं। सदैव नयें विचार, नयें उद्देश्य, नईं प्रतिस्पर्धाएं जन्म ले रही हैं।

तुम स्वयं अपने भीतर हो रहे परिवर्तन के साक्षी हो। नवीनता के लिए जीवन का परिवर्तन भी आवश्यक हो जाता है। जब तक पुराना नहीं जाता तब तक कुछ नयें आने की संभावना भी नहीं के बराबर है। आज का पतझड़ ही कल का बसंत भी है!

इसलिए मित्रो अपने आप में बदलाव लाओ क्योंकि ?

ठाकुर नरेंद्र सिंह तंवरघार कौंथरकला 

जय माता दी जय गोपाल जी हुकुम

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