उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ सुप्रीम फरमान, तानाशाही नहीं चलेगी

उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ सुप्रीम फरमान, तानाशाही नहीं चलेगी

यूपी विशाल समाचार नेटवर्क: उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फरमान सुनाया है। अपने फरमान में सुप्रीम कोर्ट ने औपनिवेशिक सोच का बड़ा जिक्र किया है। सुप्रीम कोर्ट का यह फरमान उत्तर प्रदेश की सहकारी समितियों में अफसरों की पत्नियों को तैनात करने के प्रचलन के विरुद्ध आया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कहा है कि उत्तर प्रदेश में मुख्य सचिव हो अथवा DM उनकी पत्नियों को सहकारी समितियों में पदेन पदाधिकारी बनाना औपनिवेशिक सोच का प्रमाण है।

लिए ऐसे अधिकारी को बख्शा नहीं जा सकता। कानून को ताक पर रखकर किया गया बुलडोजर एक्शन असंवैधानिक है। अदालत ने कहा कि कानून का शासन नागरिकों के अधिकार और प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत आवश्यक शर्तें हैं, यदि किसी संपत्ति को केवल इसलिए ध्वस्त कर दिया जाता है, क्योंकि व्यक्ति पर आरोप लगाया गया है तो यह पूरी तरह से असंवैधानिक है। कार्यपालिका यह निर्धारित नहीं कर सकती कि दोषी कौन है और वह यह तय करने के लिए न्यायाधीश नहीं बन सकती कि वह दोषी है या नहीं और ऐसा कृत्य सीमाओं का उल्लंघन होगा। बुलडोजर का भयावह पक्ष याद दिलाता है कि संवैधानिक मूल्य और लोकाचार सत्ता के इस तरह के दुरुपयोग की अनुमति नहीं देते हैं।

 

उत्तर प्रदेश पुलिस को लगाई थी बड़ी फटकार

इसी सप्ताह 28 नवंबर 2024 बृहस्पतिवार को भारत की सुप्रीम संस्था सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की पुलिस को बहुत बड़ी फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाते हुए उत्तर प्रदेश पुलिस के ष्ठत्रक्क प्रशांत कुमार को कटघरे में खड़ा किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि या तो उत्तर प्रदेश पुलिस सुधर जाए नहीं तो हम ऐसा आदेश पारित करेंगे कि ष्ठत्रक्क हमेशा याद रखेंगे। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश की पुलिस सत्ता का आनंद ले रही है और संवेदनशील होने की जरूरत है। कोर्ट ने ये चेतावनी भी दी कि अगर याचिकाकर्ता को छुआ भी तो ऐसा कोई कठोर आदेश पारित करेंगे कि जिंदगी भर याद रहेगा। यह मामला याचिकाकर्ता अनुराग दुबे का है, जिन पर अलग-अलग कई मामले दर्ज हैं। उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया गया, लेकिन वह पेश नहीं हुए, जिसे लेकर उत्तर प्रदेश सरकार ने सवाल उठाए हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि हो सकता है कि याचिकाकर्ता को ये डर है कि जांच के दौरान उस पर कोई और मामला दर्ज न कर दिया जाए।

 

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने अनुराग दुबे के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया था। अनुराग के खिलाफ आईपीसी के सेक्शन 323, 386, 447, 504 और 506 के तहत एफआईआर दर्ज हैं। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ अन्य मामलों और अरोपों की प्रकृति के लिए यूपी सरकार को नोटिस जारी किया था कि याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत क्यों नहीं दी जा रही है। इसके बाद कोर्ट ने याचिकाकर्चा की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी और अनुराग दुबे से जांच में शामिल होने के लिए कहा गया था। गुरुवार को यूपी सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट राणा मुखर्जी पेश हुए और उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश पर याचिकाकर्ता को नोटिस भेजा गया था। फिर भी वह पूछताछ के लिए अधिकारी के सामने पेश नहीं हुए और एफिडेविट भेज दिया।

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