एडिटोरियलरीवा

वर्ल्ड साइट डे पर, विशेषज्ञों ने दृष्टि दोष के नुकसानदायक प्रभावों और प्रिवेंटेबल दृष्टिहीनता को खत्म करने के महत्‍व पर प्रकाश डाला

पुणे:दुनिया भर में दो मिलियन (20 लाख) से ज्यादा लोगों आंखों की भिन्न स्थितियों के साथ रहते हैं। अकेले भारत में लाखों लोग ऐसे हैं जो प्रिवेंटेबल विजन लॉस (दृष्टिहीनता) के शिकार हैं। एम्स के नेशनल ब्लाइंडनेस एंड विजुअल इंपेयरमेंट सर्वे इंडिया 2015-19 के अनुसार 50 साल से ऊपर की आयु के 1.99% भारतीय दृष्टिहीनता के शिकार हैं।
जबकि संभावित दृष्टिहीनता का शिकार होने वालों की संख्या चिन्ताजनक है और इससे भी बड़ी चिन्ता यह है कि जिन कारणों से यह सब होता है उनका पता आमतौर पर नहीं किया जाता है।

डॉ.आदित्य सुधालकर, एम.एस. ऑप्थल्मोलॉजी, कंसल्टेंट विटेरियोरेटिनल सर्जन ने कहा, “लोगों के लिए कम उम्र से ही आंखों के स्वास्थ्य को बनाए रखना महत्वपूर्ण है। आज उम्र से संबंधित मैकुलर डिजनरेशन (एएमडी) और डायबिटिक मैक्यूलर एडिमा (डीएमई) जैसी रेटिनल बीमारियों से पीड़ित मरीज हैं, जिन्हें पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता है, लेकिन नियमित व्यायाम, संतुलित आहार और उपचार के पालन से इसकी शुरुआत में देरी हो सकती है। अप, और नियमित रूप से आंखों की जांच। बिना रेटिनल भागीदारी वाले मधुमेह रोगियों के लिए, एक वार्षिक अनुवर्ती कार्रवाई पर्याप्त है, हालांकि, अनुवर्ती अंतराल उत्तरोत्तर कम हो जाता है क्योंकि रेटिना की भागीदारी अधिक गंभीर हो जाती है।

सामान्य संकेत और लक्षण

व्यक्ति को सतर्क रहना चाहिए और इन लक्षणों में से किसी की भी स्थिति में आंखों के डॉक्टर या रेटिना स्पेशलिस्ट के पास जाना चाहिए:

*धुंधला या अस्पष्ट दिखना* रंग साफ नहीं दिखना* कॉन्‍ट्रास्ट या रंगों के प्रति संवेदनशीलता कम होना या*गहरे काले निशान दिखाई देना*सीधी लाइनें अगर टेढ*दूर से देखने में असुविधा धीरे-धीरे नजर खराब होना,

आंखों की बीमारियों का उपचार और प्रबंध

दृष्टिहीनता रोकने के लिए बीमारी का शुरू में ही पता चलना महत्वपूर्ण है। इसके लक्षणों को पहचानना और स्क्रीनिंग करवाना इसे ठीक रखने की कुंजी हो सकती है। उपचार के कई विकल्प उपलब्ध हैं जिससे बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है। नेत्र रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना और उपलब्ध विकल्पों को समझना और उन पर चर्चा करना इसे रोकने और आंखों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के प्रमुख कदम में एक हो सकता है। भारत में जो कुछ विकल्प उपलब्ध हैं उनमें लेजर फोटो कोएगुलेशन, एंटी-वीईजीएफ (वैस्कुलर एंडोथेलियल ग्रोथ फैक्टर) इंजेक्शन, सर्जरी और कांबिनेशन थेरैपी तथा इनमें लेजर और वीईजीएफ उपचार शामिल है। इन पर विचार करना खासतौर से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि महामारी के दौरान उपचार के साथ आंखों की नियमित देखभाल में कमी आई है और इस कारण प्रभावित मरीजों में स्वास्थ्य से संबंधित जटिलताएं देखने को मिलीं। इनमें युवा आबादी भी है।
निर्धारित उपचार का सख्ती से अनुपालन और जीवनशैली में अनुसंशित सुधार से व्यक्तियों को आंखों की अपनी बीमारियों को नियंत्रित रखने में सहायता मिलेगी और इस तरह उन्हें बेहतर परिणाम का लाभ मिल सकता है।

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