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केयर्न के रव्‍वा ऑयल फील्‍ड ने उत्‍पादन के 28वें वर्ष में प्रवेश किया

पुणे: केयर्न ऑयल एंड गैस, भारत में तेल और गैस की खोज और उत्‍पादन करने वाली सबसे बड़ी निजी कंपनी, के रव्‍वा ऑयल फील्‍ड के परिचालन को 27 वर्ष पूरे हो गए हैं। रव्‍वा ऑयल फील्‍ड आंध्र प्रदेश के तट से दूर स्थित है। रव्‍वा की खोज वर्ष 1994 में हुई थी और यह भारत की पहली अपतटीय संपदा है। रव्‍वा को एक सीमित संसाधन माना गया था और इससे 100 mmboe के उत्‍पादन की उम्‍मीद थी, लेकिन आज यहाँ से 305 mmboe से ज्‍यादा का उत्‍पादन होता है।

इस फील्‍ड के सफर पर चर्चा करते हुए, केयर्न ऑयल एंड गैस के डिप्‍टी सीईओ प्रचुर साह ने कहा, “2000 के दशक की शुरूआत को रव्‍वा के प्रोडक्‍शन साइकल का अंतिम चरण माना गया था, लेकिन इसका जीवन उम्‍मीदों से ज्‍यादा रहा, क्‍योंकि केयर्न ने सबसे नई टेक्‍नोलॉजीज का यहाँ इस्‍तेमाल जारी रखा। यह संपदा उत्‍पादन के 28वें वर्ष में पहुँची है और इसके रिकवरी रेट ने उद्योग में एक मानदंड स्‍थापित किया है। रव्‍वा ने साबित किया है कि टेक्‍नोलॉजी और डिजिटलाइजेशन की मदद से हमारा देश अपने संसाधनों की मौजूदा क्षमता से ज्‍यादा प्राप्ति कर सकता है। रव्‍वा फील्‍ड एक राष्‍ट्रीय संपदा है, जहाँ विश्‍व-स्‍तरीय सुरक्षा मानक भी हैं।

रव्‍वा फील्‍ड को उसके तकनीकी मानकों के लिये सराहा गया है। यहाँ मल्‍टीलेन कम्‍प्‍लीशन टेक्निक वाली बैलेंस-परफोरेटिंग के तहत भारत का पहला टीसीपी है, जिससे कई रिजर्वोइर्स को समान बोर का एक्‍सेस मिला है। इस प्रकार रिकवरी और एसेट रिजर्वोइर मैनेजमेंट बेहतर हुआ है। वेल्‍स में सैण्‍ड प्रोडक्‍शन को कंट्रोल करने वाली विस्‍तार-योग्‍य सैण्‍ड स्‍क्रीन्‍स लगाने से उत्‍पादन क्षमता और बचत बढ़ी है।

इसके परिणाम बहुत अच्‍छे रहे हैं और प्रतिदिन केवल 3,500 बैरल्‍स से बढ़कर इस फील्‍ड ने प्रतिदिन 50,000 बैरल्‍स का पीक छूआ है और उसे एक दशक से ज्‍यादा समय तक बनाये रखा है। यह फील्‍ड आज प्रासंगिक है, क्‍योंकि यहाँ से प्रतिदिन लगभग 15,000 बैरल्‍स का उत्‍पादन जारी है और यह पिछले साल 25,000 बैरल्‍स प्रतिदिन का पीक भी छू चुका है। यह विश्‍व के सबसे किफायती फील्‍ड्स में से एक भी प्रमाणित हुआ है।
अपनी पैरेंट कंपनी वेदांता लिमिटेड के सपने को आगे बढ़ाते हुए, केयर्न का रव्‍वा एसेट कई ईएसजी पहलों का घर भी है। कंपनी ने रव्‍वा में साल्‍ट-टॉलरेंट स्‍पीशीज का एक फाइव-फेज ग्रीन बेल्‍ट विकसित किया है, जिसकी शुरूआत वर्ष 1996 से हुई थी। यह साइट मैनग्रोव प्‍लांटेशंस का एक हॉटस्‍पॉट भी है और कई एविफौनल स्‍पीशीज के लिये एक बेहतरीन बसेरा देती है।

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