वंदे मातरम द्वारा डॉ. प्रभा अत्रे की ग्रंथतुला व सम्मान
पुणे : “हमें जो चीज पंसद है उसे दिल और ईमानदारी से किया जाये तो उसमे हमें सफलता प्राप्त होती है। काम की स्पष्टता, निरंतरता, नवीनता हमें प्रगल्भता की ओर ले जाती है। इसलिए, जो जो पसंद है उसमें उत्कृष्टता प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए,” यह भावना प्रख्यात गायिका स्वरयोगिनी पद्म विभूषण डॉ. प्रभा अत्रे ने व्यक्त की.
वंदे मातरम संघटना कृत युवा वाद्य पथक, शिव साम्राज्य वाद्य पथक, और शिववर्धन वाद्य पथक की संयुक्त तत्वाधान में महाराष्ट्र की 70 ढोल-ताशा पथक का अभिनव वाद्य पूजन समारोह और डॉ. प्रभा अत्रे को उनकी संगीत सेवा के लिए कृतज्ञतापूर्वक ग्रंथतुला का आयोजन किया गया। ग्रंथतुला की पुस्तकें कारगिल के हुंदरमन गांव में डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के नाम से बन रहे पुस्तकालय को सोपी जाएगी।
इस अवसर पर डॉ. प्रसाद भारदे ने प्रभा अत्रे की मुलाखत ली। प्रभाताई ने शास्त्रीय संगीत, इसके विभिन्न रागों, हरकतों, बंदिशियों, कानूनों, घरानों के बारे में खुलकर बात की। बाजीराव रोड स्थित नूमवी स्कूल में आयोजित इस समारोह के अवसर पर डॉ. सतीश देसाई, दीपक मानकर, प्रसाद भडसावळे, वंदे मातरम संगठन के वैभव वाघ, सचिन जामगे, ॲड. अनिश पाडेकर, अक्षय बलकवडे, शिरीष मोहिते, अमित रानडे साथ में विभिन्न वाद्य पथक के प्रमुख मौजूद थे।
डॉ. प्रभा अत्रे ने कहा, ‘दर्शकों की सराहना से कलाकारों का हौसला बढ़ता है। दर्शक हों तो कलाकार बड़ा हो जाता है। मैं चाहती हूं कि मेरा गाना अंत तक चले और यही मेरी इच्छा है। आज यहां इतने सारे युवाओं को देखकर मैं भी खुद को युवा महसूस करने लगी हु। इस नई पीढ़ी को शास्त्रीय संगीत से लगाव बढाने के लिए इसे एक कला के रूप में देखा जाना चाहिए। आज संगीत का झुकाव साधन के बजाय मनोरंजन की ओर अधिक है। आपने गायन को स्पष्टता, लय और गहन अध्ययन आवश्यक है। बच्चों को रात में शास्त्रीय संगीत, संस्कार सुनाना चाहिए।”