मौसम में बदलाव होने के कारण कीट/रोगों के प्रकोप की सम्भावना बढ़ जाती है। जिसके कम में कृषक भाईयों से अपील है कि फसलों में लगने वाले कीट/रोगों के लक्षण एवं उनके निवारण हेतु निम्नलिखित उपायों को आवश्यकतानुसार प्रयोग
इटावा विशाल समाचार टीम की रिपोर्ट
इटावा यूपी: जिला कृषि रक्षा अधिकारी कुलदीप सिंह राणा ने बताया कि तापमान में गिरावट एवं आपेक्षिक आर्द्धता में वृद्धि के कारण आलू एवं राई/सरसों के साथ – साथ रवी में बोई जाने वाली विभिन्न फसलों यथा गेहूँ , जौ , चना ,मटर,तथा सब्जियां आदि में दो तीन से मौसम में बदलाव होने के कारण कीट/रोगों के प्रकोप की सम्भावना बढ़ जाती है। जिसके कम में कृषक भाईयों से अपील है कि फसलों में लगने वाले कीट/रोगों के लक्षण एवं उनके निवारण हेतु निम्नलिखित उपायों को आवश्यकतानुसार प्रयोग कर अपनी फसल को कीट/रोगों के प्रकोप से बचाये।
आलू की फसल में झुलसा रोगः- इस रोग के प्रारम्भिक प्रकोप में आलू के पौधे की पत्तियों मुड़कर कटोरी नुमा हो जाती है तत्पश्चात पत्तियों पर किनारे से कत्थई भूरे रंग के धब्बे बनते है जो हाथ से पकड़ने पर स्पंज की तरह दब जाते है अधिक प्रकोप की दशा में इंदल व तना भी कत्थई/काले रंग के हो जाते है । इसकी रोकथाम हेतु मैंकोजेब 75 प्रतिशत की 800 ग्राम से 1 कि ० ग्रा ० मात्रा अथवा कॉपर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत की 1 से 1.25 कि0 ग्रा0 तथा जिनेव 75 प्रतिशत के 800 ग्राम मात्रा 300 से 350 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से सुरक्षात्मक छिड़काव करें आवश्यकतानुसार 10-12 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करें ,
गेंहूँ में गेरूई रोग रू – गेंहूँ में लगने वाली गेरूई भूरे , पीले अथवा काले रंग की होती है जिसकी फफूँदी के फफोले पत्तियों पर पड़ते है जो वाद में विखर कर अन्य पत्तियों को ग्रसित कर देते है इस रोग के निवारण हेतु मैकोजेब 75 प्रति0 800 ग्राम अथवा जिनेव 75 प्रति0 की एक किग्रा० मात्रा 300 से 350 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें तथा आवश्यकता पड़ने पर 10 से 12 दिन के अन्तराल पर पुनः छिड़काव करें।
राई सरसों में माहॅू कीट – यह कीट छोटा एवं कोमल शरीर वाला हरे मटमेले भूरे रंग का होता है इसके झुण्ड पत्तियों , फूलों , डन्ठलों तथा फलियों आदि पर चिपके रहते है एवं रस चूसकर पौधे को कमजोर कर देते है इस कीट की रोकथाम हेतु नीम ऑयल 0.015 प्रति० की 600 मिली0 अथवा डाइमेथिओएट 30 प्रति० की 400 मिली0 अथवा क्लोरपायरीफास की 400 मिली० मात्रा को 300 से 350 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
चना व अरहर में फलीछेदक कीट – इसकी गिडारें फलियों में छेद करके अपने सिर को फलियों के अन्दर डालकर दानों को खाती है इसके निवारण हेतु क्यूनॉलफास 25 प्रति ० 500 मिली 0 अथवा मोनोकोटोफास 36 प्रति 0 400 मिली0 प्रति एकड़ की दर प्रयोग करें। उक्त के अतिरिक्त खेतों की नियमित निगरानी करते रहें तथा आवश्यकता पड़ने पर 10 से 12 दिन के अन्तराल पर पुनः छिड़काव करें एवं रवी की विभिन्न फसलों में लगने वाले विभिन्न कीट/रोगों एवं उनके निवारण की जानकारी हेतु जनपद स्तर पर जिला कृषि रक्षा अधिकारी, इटावा तथा विकास खण्ड स्तर पर सम्बन्धित विकास खण्ड के प्रभारी कृषि रक्षा इकाई से सम्पर्क करें।