सीतामढ़ी

रीगा चीनी मिल चुनावी मुद्दा, लेकिन किसकी सरकार पहल करेगी ?

रीगा चीनी मिल चुनावी मुद्दा, लेकिन किसकी सरकार पहल करेगी ?

रीगा चीनी मिल अब वीरान सा लगने लगा है,
खंडहर में तब्दील हो रहा हैं। मिल चालू थी तो बहार थी, तरक्की थी। मिल चालू होने चाहिए। मिल चालू हो।

सीतामढ़ी से पुरुषोत्तम कुमार महतो की रिपोर्ट

सीतामढ़ी ज़िला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर पश्चिम की ओर बसा एक कस्बा। आज के समय में रीगा का पता लोग कुछ ऐसे ही बताते हैं। लेकिन वो भी ज़माना था जब किसी से पूछा जाता, भाई रीगा का नाम सुना है तो छूटते ही जवाब आता कि वही रीगा ना, जहां चीनी की फ़ैक्ट्री है। रीगा की बड़ी फैक्ट्री के रूप में होती थी पहचान.किसान बहुत परेशान हैं। रीगा सुप्पी बैरगनिया, मेजरगंज, सीतामढ़ी ये पूरा गाँव ही गन्ना किसानों का हुआ करता था, जहां तक आपकी नजर पड़ेगी वहां तक गन्ना ही गन्ना दिखाई पड़ता। लेकिन अब गन्ने से लोगों का मोह भंग हो गया है। जिला पूरे देश में गन्ना उत्पादन के लिए जाना जाता है। समय पर पैसा मिलता नहीं था किसानों को जिस कारण बहुत परेशानी रहती थी।ऐसे में नाराज किसान प्रदर्शन करते थे। जिले में हजारों किसान कलेक्ट्रेट में धरना देते थे। सीतामढ़ी जिला किसान बहुल है। गन्ना यहां की मुख्य उपज रही। यही किसान की कमाई का मुख्य साधन था, लेकिन मिलों से गन्ने का भुगतान समय पर नहीं हो पा रहा था।प्रबंधन की ग़लत नीतियों के कारण यह मिल बंद हो गयी।

भीड़-भाड़ वाली चीनी मिल वीरान हो गई है। अब सिर्फ उनकी यादें ही शेष हैं। शाम के चार बजते ही जब मिल से छुट्टी का सायरन बजता था तो सड़कों पर चलने की जगह नहीं हुआ करती थी। इतनी चहल-पहल कि पूछिए ही मत। लोगों को आज की तरह अपने घर से बाहर जाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती थी, लेकिन आज वो चीनी मिल वीरान पड़ी हैं, बिहार में क़रीब 24 बड़ी शुगर फैक्ट्रियां थीं। उनमें से ज्यादातर अब बंद हो चुकी हैं। लेकिन सरकार की ग़लत नीतियों या यूं कहें कि उसकी उपेक्षा के चलते ये सारी फैक्ट्रियां एक के बाद एक बंद होती चली गईं। पूरे बिहार में गन्ना किसानों के बकाए और कम रेट का मुद्दा छाया रहता है। जिसके लिए तर्क दिया जाता है कि देश में चीनी का उत्पादन जरुरत से ज्यादा है और निर्यात इसलिए नहीं हो सकता है क्योंकि कई देशों में भारत से कम लागत में चीनी तैयार होती है। डुमरा पुर्व वार्ड पार्षद देवेन्द्र पासवान ने कहा मिलें बंद होने का असर न सिर्फ रोजगार पर पड़ा, बल्कि लाखों किसान नकदी फसल की खेती से अलग हो गए। सीतामढ़ी में एकमात्र रीगा चीनी मिल ठीक-ठाक चल रही थी, लेकिन मजदूरों और प्रबंधन के बीच खींचतान से इस बार पेराई-सत्र शुरू नहीं हो सका। देवेन्द्र पासवान का कहना है कि गन्ना नकदी फसल है। इससे होने वाली आय से शादी-ब्याह, बच्चों की पढ़ाई तक के खर्च निकलते थे। मिल बंदी ने कमर तोड़ दी। मेजरगंज डुमरी कला के किसान बंश बहादुर सिंह ने कहा इससे जुड़े सीतामढ़ी और शिवहर के करीब 40 हजार किसान गन्ना के खेती छोड़ दिये। वहीं 12 सौ कामगार बेरोजगार हो गए। उत्तर बिहार में जितनी भी चीनी मिलें बंद हुई हैं, उसके लिए सरकार और मिल प्रबंधन, दोनों जिम्मेदार हैं।

क्षेत्र में चीनी मिल की स्थापना के बाद से यहां का किसान आर्थिक रूप से मजबूत हुआ था और खुशहाली आई थी, लेकिन मिल बंद होने से फिर से किसानों के सामने आर्थिक संकट है। यही वजह है कि क्षेत्र का गन्ना किसान पिछले कुछ सालों से लगातार कर्ज में डूबता चला आ रहा है।

चीनी मिल की ख़ासियत ये थी कि वहां जो शक्कर बनती थी वे दूर से ही शीशे की तरह चमकती थी। इस चीनी का तो कोई ज़ोर ही नहीं था। इसकी चर्चा आते ही सबके मुंह में पानी आ जाता था लेकिन अफ़सोस इस बात का है कि रीगा चीनी मिल और रीगा की लोकप्रियता दोनों ही रसातल में चले गए। अब सिर्फ उनकी यादें ही शेष हैं। वो भी एक ज़माना था जब इस इलाके में काफी चहल-पहल हुआ करती थी। ज़िले भर से लोग यहां आकर किसी न किसी रूप में मिल हीं जाते थे। आप इसी बात से इस औद्योगिक क्षेत्र की चकाचौंध का अंदाज़ा लगा सकते हैं कि हजारों लोगों को रोजगार मिल पाता था। चीनी मिल को बंद हुए कई साल हो गए। कभी इस मिल में कई गांवों के हजारों किसानों का गन्ना आता था। इसी मिल के सहारे इस क्षेत्र का नाम हुआ, लेकिन मिल अब वीरान पड़ी है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान जब बड़े-बड़े वादे होती रहती हैं लोगों को फिर थोड़ी उम्मीद बंधी जाती है कि शायद ये मिल दोबारा चालू हो जाए।जब चुनाव आता है कहा जाता है मिल चलेगा, चुनाव के बाद मिल बंद (बातें) बंद हो जाता है। कई नेता बोले थे चलाएंगे लेकिन नहीं चला। सरकार बनी तो बोले चलाएंगे, नहीं चली, अब फिर चुनाव आयेगा। मिल के आसपास काम धंधा कर आजीविका चलाने वाले हजारों लोगों की रोटी छिन गई। हजारों किसानों का पैसा फंस गया। स्थानीय लोगों के मुताबिक कभी इस मिल में सीतामढ़ी जिले के सैकड़ों गांवों के अलावा शिवहर जिले के भी 100 से ज्यादा गांवों का गन्ना आता था। गन्ना मिल बंद होने से किसानों पर आर्थिक और मानसिक मार पड़ा। अगर मिल चालू हो जाए तो इलाका विकास जरुर करेगा। ये बिहार की जानी मानी मिल थी जो राजनीतिक शिकार हो गई। मिल बंद होने के लिए सरकार और उसके नेता जिम्मेदार है। चुनाव में राजनैतिक दलों के लोग आते हैं कहते हैं हम चलवा देते हैं लेकिन किसी ने सुध नहीं ली। मिल में सब मिलाकर हजार कर्मचारी जरुर रहें होंगे। सबका नुकसान हुआ। लेकिन लोग बताते हैं कि रीगा का विकास इसी मिल के सहारे हुआ। मैं सभी राजनीतिक दलों से निवेदन करूंगा कि सभी मिलकर मिल को चालू करवाएं ताकि इलाके गन्ना किसानों की भलाई हो, युवाओं को रोजगार मिले। मिल चालू थी, पूरे इलाके में रौशन थी। हम लोग भी यहीं रीगा से सटे सुप्पी रमनगरा के पले-पढ़े हैं। पूरे इलाके में चहल-पहल थी इससे लेकिन इसके बंद होने से लगता है सब ठहर सा गया है। सीतामढ़ी का विकास रुक सा गया है। सिर्फ आसपास के गांवों के लिए दूसरे प्रदेशों के लोग भी कमाने आते थे। हम तो चाहते हैं बस ये फैक्ट्री चल जाए, इलाके का विकास हो।

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