आषाढी के कारण ईद पर बकरे की कुर्बानी नहीं दे
ऑल इंडिया इंटेलेक्चुअल फोरम, पुणे के अध्यक्ष डॉ. एस.एन.पठाण की अपील
पुणे : बकरी ईद आषाढी के एकादशी के दिन पड़ती है. इसलिए मुस्लिम भाइयों को २० लाख वारकरीयों और पूरे महाराष्ट्र के लोगों का सम्मान करने के लिए आषाढी एकादशी के दूसरे दिन यांनी शुक्रवार ३० जून और शनिवार ३१ जून को ईद का त्योहार मनाना चाहिए. साथ ही महाराष्ट्र में हिंदू और मुस्लिमों के बीच सौहार्द का माहौल कायम रहना चाहिए. यह अपील ऑल इंडिया इंटेलेक्चुअल फोरम, पुणेके अध्यक्ष एवं विश्वशांति केंद्र आलंदी, माइर्स, एमआईटी पुणे के सलाहकार डॉ. एस.एन.पठाण ने एक संवाददाता सम्मेलन में की.
इस अवसर पर ऑल इंडिया मुस्लिम इंटेलेक्चुअल फोरम, पुणे के सचिव माजिद पैठणकर और वहींदा आलम मुलानी उपस्थित थी.
डॉ. पठाण ने कहा कि संत ज्ञानेश्वर माउली ने चौदह सौ साल पहले आता विश्वात्मके देवे ऐसे कहते हुए ईश्वर से पसायदान मांगा था. संत तुकाराम महाराज ने सबसे पहले भारत में जाति व्यवस्था प्रहार किया. इसलिए कई मुस्लिम संत वारकरी संप्रदाय की ओर आकर्षित हुए. यहीं कारण है कि मुस्लिम संत महंमद महाराज और श्रीगोंदा के जैतूनबी की वारकरी दिंडी आज भी अपनी परंपरा को जारी रखे हुए है. जब हिंदू मुस्लिम भाईचारे के वारकरी संप्रदाय का इतना समृद्ध इतिहास है तो २९ जून गुरुवार को आषाढी एकादशी पर मुस्लिम भाईचारे द्वारा बकरे की बलि देना बहुत गलत है.
बकरी ईद और आषाढी एकादशी २९ जून को एक ही दिन पड़ रही है. बकरी ईद की खास बात यह है कि जो मुस्लिम भाई अच्छी आर्थिक स्थिति में हैं, वे खुदा को कुर्बानी के तौर पर बकरे की कुर्बानी देंगे. यह सारा खाना गरीबों या रिश्तेदारों को बांटना है. संक्षेप में बकरी ईद त्याग, दान, गरीबों के प्रति दया और भाईचारे का त्योहार है.
इसलिए उन्होंने महाराष्ट्र की संपूर्ण जनता का सम्मान करने के लिए ईद कुर्बानी आषाढी को एकादशी के दूसरे दिन यानी ३० और ३१ जून को मनाने और महाराष्ट्र में हिंदू और मुसलमानों के बीच सदभाव का माहौल बनाए रखने की अपील की.