पूणे

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को मानव तथा प्रकृति के प्रति संवेदनशील बने

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को मानव तथा प्रकृति के प्रति संवेदनशील बने
अंतर्राष्ट्रीय जलविशेषज्ञ डॉ. राजेंद्र सिंह के विचारः
एमआईटी डब्ल्यूपीयू द्वारा डॉ. राजेंद्र सिंह, जी. रघुमान एवं डॉ अशोक गाडगील को भारत अस्मिता राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान

पुणे: सृष्टि कल्याण के लिए विज्ञान, प्रौद्योगिकी और इंजीनियरिंग को प्रकृति के प्रति संवदेनशील होने की आवश्यकता है. पृथ्वी,जल, अग्नि, वायु और आकाश भारतीयों के लिए पंच देवता है. हमें यह वैज्ञानिक समझ मिली है और हमें अंदर ही अंदर विज्ञान और प्रौद्योगिकी को मानव और प्रकृति के प्रति और अधिक संवेदनशील बनाना होगा. ऐसे विचार अंतर्राष्ट्रीय जलविशेषज्ञ और रॅमन मैग्सेस पुरस्कार विजेता डॉ. राजेंद्र सिंह ने व्यक्त किए.
एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी, भारत अस्मिता फाउंडेशन और एमआईटी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट, पुणे द्वारा आयोजित भारत अस्मिता राष्ट्रीय पुरस्कार २०२४ का समापन हुआ. इस मौके पर पुरस्कार स्वीकारने के बाद वे बोल रहे थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष प्रो. डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने निभाई.
इस अवसर पर विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक पद्मविभूषण डॉ. रघुनाथ माशेलकर, वैज्ञानिक डॉ. अशोक जोशी बतौर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे. डब्ल्यूपीयू के कार्यकारी अध्यक्ष और भारत अस्मिता राष्ट्रीय पुरस्कार समिति के संयोजक राहुल वि. कराड, कुलपति डॉ. चिटणीस, सीएफओ डॉ. संजय कामतेकर, प्र कुलपति डॉ. मिलिंद पांडे और प्रो. शरदचंद्र दराडे पाटिल उपस्थित थे.
इस अवसर पर राष्ट्रीय रेल एंव परिवहन संस्थान के प्रो.जी रघुराम को भारत अस्मिता आचार्य श्रेष्ठ पुरस्कार, डॉ. राजेंद्र सिंह को भारत अस्मिता जन जागरण श्रेष्ठ और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में सुरक्षित जल और स्वच्छता के प्रो. डॉ. अशोक गाडगील को भारत अस्मिता विज्ञान प्रौद्योगिकी श्रेष्ठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
डॉ. राजेंद्र सिंह ने कहा, देश के शहरी केंद्रों में गांवों की तुलना में अधिक सुविधांए और संसाधन है. वैज्ञानिक वर्तमान में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का उपयोग कर समुद्री जल का उपचार कर पीने योग्य जल संकट को हल करने का प्रयास कर रहे है. लेकिन इसका हमारी जैव विविधता पर असर पडेगा.
डॉ.माशेलकर ने कहा, अस्थिर दुनिया में हर कोई भारत को लेकर आशावादी है. भारत सबसे तेजी से बढती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है क्योंकि भातर संस्कृति और विरासत में समृध्द हैं. भारतीय करूणा और संवेदनशीलता के धनी है. भारत अस्मिता पुरस्कार विजेता युवाओं के सच्चे प्रतीक है. युवाओं को अपनी ऊर्जा सकारात्मक कार्यों पर केंद्रित करने का संकल्प लेना चाहिए.
डॉ. रघुराम ने कहा, हम आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं, लेकिन हम लेखांकन और परामर्श में आत्मनिर्भरता से चूक गए है. परामर्श क्षेत्र की सभी भारतीय कंपनियां वैश्विक स्तर पर बिक चुकी है. हमें अपने ब्रांडों को वापस जीवंत करना होगा.
डॉ. गाडगिल ने कहा, हम विकासशील देशों में गरीबी कम करने और न्याय लाने के लिए असाधरण चुनौतियों का सामना कर रहे है. विकास इंजीनियरिंग नामक एक नया क्षेत्र जो इंजीनियरिंग, सामाजिक विज्ञान , अर्थशास्त्र और सांख्यिकी को जोडता है. यह पता लगाने के लिए उभर रहा है कि हम उस चुनौती को कैसे पुरा कर सकते है.
डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने कहा, जब भारत पहचान की बात करता है तो हमारे अंदर अहंकार या अनावश्यक अभिमान नहीं होता. पुरस्कार विजेता हम सभी के लिए आदर्श हैं. हमें एक बाल केंद्रित शिक्षा, एक महिला केद्रित परिवार, विकासक े लिए एक ज्ञान केंद्रित समाज और भविष्य की भलाई के लिए एक नवाचार केंद्रित भारत की आवश्यकता है.
राहुल वि कराड ने कहा, भारत अस्मिता पुरस्कार हमारे देश को गौरवान्वित करेगा. हम भारतीय मूलनिवासी विचारक एवं स्वतंत्र राष्ट्र है. हमें विकसित देशों से सीखना चाहिए. आज सभी युवाओं को अपनी विचारधारा यानी औपनिवेशिक मानसिकता को बदलने की जरूरत हैं. उच्चारण में इंडिया की जगह भारत शब्द जाना पहचाना लगता है.
इस अवसर पर वैज्ञानिक डॉ. भटकर ने वीडियो के जरिए दर्शकों को संबोधित किया.
कुलपति डॉ. आर.एम.चिटणीस ने घोषणा की कि ३ फरवरी को डॉ. विश्वनाथ कराड का जन्म दिन अब एमआईटी के सभी संस्थानों में फाउंडर्स डे के रूप में मनाया जाएगा.
संचालन डॉ. गौतम बापट ने किया.

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