सौ सुनार की एक लुहार की: अंशुल गौरव सिंह एडवोकेट
पीलीभीत में राजनैतिक दिग्गजों की प्रतिष्ठा दावँ पर
इंडो-नेपाल बॉर्डर अरूण विक्रांत
उत्तर प्रदेश का एक ऐसा ज़िला पीलीभीत जिसकी सीमायें पड़ोसी देश नेपाल बॉर्डर के साथ साथ उत्तराखंड राज्य के बॉर्डर से भी जुड़ा हुआ हैं, वह पीलीभीत ज़िला अपनी गंगा जमुनी तहज़ीव के साथ साथ तराई के नाम से भी जाना जाता हैं, जहां एक ओर गोमतीं उदगम स्थल तो वहीं दूसरी तरफ़ पीलीभीत टाइगर रिज़र्व के साल और साखू के हरेभरे पेड़ो, जंगली जानवरों सें भरा पूरा हैं, यहाँ एक ओर गौरी शंकर मंदिर है, तों दूसरी तरफ़ दिल्ली में स्थित जामा मस्जिद की एक प्रतिकृति पर आधारित जामा मस्जिद जिसे हाफिज रहमत खान ने 1769 में बनवाया था मौजूद हैं, जहां एक तरफ़ हर हर महादेव का जयघोष व दूसरी तरफ़ मस्जिद कि अजान कि आवाज़ आती हैं, इस पीलीभीत सें राजनीतिक घराने सें आने वाले गाँधी परिवार का इक पारिवारिक रिश्ता रहा हैं और है, विगत् 35 बरसों सें गांधी परिवार यहाँ की आबोहवा में रचा बसा हैं, इस बार 2024 के लोकसभा के चुनाव में सत्ताधारी पार्टी के पीलीभीत सें सांसद रहें माननीय वरुण गांधी का टिकट जब उनकी राजनीतिक पार्टी नें काट कर उत्तर प्रदेश सरकार के लोक निर्वाण मंत्री श्री जितिन प्रसाद को टिकट देकर चुनाव को रोचक व एकतरफ़ा बनाने का प्रयास किया गया। लेकिन सत्ताधारी पार्टी का सारा दाव उल्टा साबित हों रहा हैं, गौरव अंशुल सिंह एडवोकेट ने स्पूतनिक संवाददाता को जानकारी देते हुए बताया कि इस वार के चुनाव में सत्ताधारी राजनीतिक पार्टी द्वारा पीलीभीत लोकसभा सीट के चुनाव को ध्रुवीयकरण करने का अथक प्रयास किया गया, जितना प्रयास किया गया उनके लिए चुनाव उतना ही कठिन होता चला गया। तब स्वयं प्रधानमंत्री मोदी के साथ साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपनी तीन चुनावी सभायें करनी पड़ी, यहाँ उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी चुनावी सभायें करते दिखाई दिये, इन सबके साथ साथ पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भी तीन चुनावी जनसभाएँ करते देखा गया, रहीं बात सत्ता पक्ष के विधायकों की चुनावी जनसभाओं की तो स्थानीय चार विधायकों के साथ साथ कई दशकों विधायकों की फ़ौज भीं इस चुनाव में चुनावी जनसभाये करने के लिए उतारी गई। इतना सबकुछ तामझाम के बाद भी चुनाव एकतरफ़ा ना होकर फसता चला गया। इस बार का चुनाव कौन जीतेगा! यह कह पाना मुश्किल हैं, क्योंकि साइकिल की तेज रफ़्तार के सामने भाजपा का 35 वर्ष पुराना क़िला ढहने के कग़ार पर पहुँच गया हैं। बही दूसरी ओर प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव द्वारा मात्र एक चुनावी सभा ज़िले की तहसील पूरनपुर में की गई, वाक़ी चुनाव प्रचार का जिम्मा पीलीभीत की जानता के कंधों पर स्वयं रहा, अंत में अब कहना यह हैं कि यदि इस बार पीलीभीत कि संसदीय सीट पर देश के प्रधानमंत्री से लेकर दो दो मुख्यमंत्री के साथ साथ जनपद के चारो विधायकों की भी प्रतिष्ठा दावँ पर लगी हैं। वही दूसरी तरफ़ प्रमुख विपक्षी दल के लिए पीलीभीत संसदीय सीट पर खोने के लिए कुछ भी नहीं है। अंशुल गौरव सिंह ने कहा कि भाजपा ने गांधी परिवार का टिकट काटकर बेवजह खुद के लिए संघर्ष बढ़ा दिया है, हालांकि भाजपा का यह दांव विपक्षी सपा के लिए मिल का पत्थर साबित हो रहा है क्योंकि जहां एक और भाजपा प्रत्याशी के लिए प्रधानमंत्री सहित दो-दो मुख्यमंत्री ने तीन-तीन सभाएं कर ध्रुवीकरण हेतु पसीने बहाए गए तो वही विपक्षी पार्टी सपा ने अपने प्रत्याशी के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने केवल एक सभा का आयोजन कर शेष प्रचार प्रसार जनता के भरोसे पर छोड़कर उत्साहित महसूस कर रहे हैं। किंतु वहीं भाजपा की पेशानी पर बल पड़ता प्रतीत होता है।