आगरा कमिश्नरेट से जुड़े एक मामले पर सुप्रीम कोर्ट में किरकिरी होने के बाद विवेचकों के लिए आदेश
बिना साक्ष्य चार्जशीट भेजी तो नपेंगे विवेचक
लखनऊ, विशेष संवाददाता:डीजीपी मुख्यालय ने महज अभियुक्त या सह अभियुक्त की स्वीकारोक्ति के आधार पर न्यायालय में चार्जशीट भेज देने वाले विवेचकों पर शिकंजा कस दिया है। इस मामले लापरवाही पाए जाने पर उनके में विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी। आगरा कमिश्नरेट से जुड़े एक
मामले में सुप्रीम कोर्ट में किरकिरी होने के बाद विवेवकों के लिए सख्त फरमान जारी किया गया है। विशेष अनुज्ञा याचिका (क्रिमिनल) सनुज बंसल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य में पारित आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने फिर स्पष्ट किया कि अभियुक्तों या
सह अभियुक्तों द्वारा अपराध किए
जाने की स्वीकारोक्ति संबंधी पुलिस को दिए गए बयान साक्ष्य में स्वीकार नहीं होते हैं। अभियुक्तों के विरुद्ध लगाए गए आरोपों को न्यायालय में प्रमाणित करने के लिए विधिक रूप से स्वीकार प्रमाणिक साक्ष्य की आवश्यकता होती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद डीजीपी मुख्यालय ने सभी जिलों को विवेचकों की
व्यापारियों की समस्याएं प्राथमिकता पर निपटाएं
डीजीपी प्रशांत कुमार ने जिलों में गठित व्यापारी सुरक्षा प्रकोष्ठ को अत्यधिक प्रभावी बनाने और उनकी समस्याओं का त्वरित निराकरण कराने का निर्देश दिया है। उन्होंने कहा है कि व्यापारियों एवं उद्यमियों की समस्याओं के निस्तारण तथा आपराधिक घटनाओं की रोकथाम के लिए पुलिस कमिश्नरेट व जिला स्तर पर व्यापारी सुरक्षा प्रकोष्ठ की बैठक अनिवार्य रूप से हर माह आयोजित की जाएं। व्यापारियों व उद्यमियों की समस्याओं को गंभीरता से सुना जाए।
कार्यशाला आयोजित कर उन्हें विवेचना की बारीकियां सिखाने का निर्देश दिया है। इसमें वर्ष 2021 में जारी विवेचना हस्तपुस्तिका एवं समय-समय पर जारी परिपत्रों का जिक्र करते हुए बताया गया है कि विवेचना के दौरान सावधानियों और बारीकियों का ध्यान रखा जाए। पुस्तिका देकर बताया कि विवेचना
का तरीकाः हस्त पुस्तिका में यह बताया गया है कि विभिन्न प्रकृति के अपराधों की विवेचना किस तरह की जाएगी। डीजीपी मुख्यालय ने कहा है कि महज स्वीकारोक्ति संबंधी कथनों के आधार पर आरोप न्यायालय में प्रमाणित नहीं किया जा सकता है, जिसका लाभ अंततः अभियुक्तों को ही मिलता है।