राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्णडॉ:-फिरोज बख्त अहमद के विचारः
२९ वें दार्शनिक संत श्री ज्ञानेश्वर तुकाराम स्मृति व्याख्यान श्रृंखला का समापन समारोह
पुणे: देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद ने देश में उच्च शिक्षा के दरवाजे खोले. वह जानते थे कि राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. ऐसे विचार दिल्ली स्थित मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति डॉ. फिरोज बख्त अहमद ने व्यक्त किये.
वह एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी, विश्वशांति सेंटर (आलंदी), माइर्स एमआईटी पुणे और संत श्री ज्ञानेश्वर संत श्री तुकाराम महाराज मेमोरियल के सहयोग से यूनेस्को अभ्यास के तहत आयोजित २९वें दार्शनिक संत श्री ज्ञानेश्वर मेमोरियल व्याख्यान श्रृंखला के समापन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे.
इस अवसर पर विश्वशांति सेंटर (आलंदी), माईर्स एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष प्रो. डॉ. विश्वनाथ दा. कराड थे. साथ ही प्रो. शरदचंद्र दराडे पाटिल, एमआईटी डब्ल्यूपीयू के कुलपति प्रो.डॉ. आर.एम.चिटणीस, नागपूर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ.एस.एम.पठाण, २९वें दार्शनिक संत श्री ज्ञानेश्वर तुकाराम मेमोरियल व्याख्यान श्रृंखला के मुख्य समन्वयक प्र कुलपति डॉ. मिलिंद पांडे और डॉ. मिलिंद पात्रे उपस्थित थे.
इस अवसर पर योगाचार्य मारुति पाडेकर गुरूजी एवं प्रो. अतुल कुलकर्णी को गणमान्य व्यक्तियों द्वारा सम्मानित किया गया.
डॉ. फिरोज बख्त अहमद ने कहा, आजाद ने हिंदू मुस्लिम एकता पर जोर दिया. उन्होंने देश को आगे बढ़ाने के लिए महात्मा गांधी और पंडित नेहरू के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया. धर्म से मुस्लिम होने के बावजूद आजाद ने सभी धर्मों का पालन किया. १६ जुलाई १९४९ को देश के एक अखबार में मौलाना अबुल कलाम के खिलाफ एक खबर छपी थी. उन्होंने एक रेल स्टेशन का उदघाटन नारियल फोड़कर किया था. जिस पर उनका धर्म नष्ट हुआ. इस पर आजाद ने मोहम्मद अली जीना को जवाब भेजा था कि,था कि नारियल और घी डालने से मेरा धर्म मजबूत होता है.
प्रो. डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने कहा, यह व्याख्यान श्रृंखला भारतीय संस्कृति, परंपरा और दर्शन का संदेश पूरी दुनिया में फैलाना महत्वपूर्ण है. भारत को दुनिया भर में विज्ञान और ज्ञान की भूमि के रूप में जाना जाता है. भारतीय संस्कृति को समाज में स्थापित करने का काम करना चाहिए.
डॉ. एस.एम.पठान ने कहा, देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद ने शिक्षा क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन लाया. उन्होंने उच्च शिक्षा क्षेत्र को एक नया आयाम दिया. भारतीय संस्कृति बहुत प्राचीन और ऋषियों से समृद्ध है.
इस अवसर पर मारुति पाडेकर गुरूजी ने योगासन के महत्व के बारे में बताया और सभी के अच्छे स्वास्थ्य की कामना की.
डॉ. आर.एम.चिटणीस ने प्रस्तावना रखी. प्रा.गौतम बापट ने सूत्रसंचालन किया. डॉ. मिलिंद पांडे ने सभी काआभार माना.