
शीर्षक समय का पहिया
जब हम मस्त होते हैं
तंदुरस्त होते हैं
स्वस्थ होते हैं
तब हम लोगों द्वारा
किये गये हमारे प्रति
उदार कार्य भूल जाते हैं
अब हम किसी के एहसान तले
दबना नही चाहते हैं
दया, क्षमा, करुणा से तो
दूर से हट जाते हैं
खुद को न जाने क्या
समझ बैठ जाते हैं
फिर क्या?
जब समय का पहिया चलता हैं
पीडाए जीवन मे आती हैं
जो हमारा संहार करती हैं
जब भर जाता हो अंतर्मन
तब बीती बातें याद आती हैं
जीवन मे आयी विलसिताए हैं क्षणिक
हैं धूर्त! क्यो होता हैं तु भ्रमित
By प्रवीण मांगलिया
गायत्री महाविद्यालय सांचोर,
राजस्थान