*पहले रिश्तो में दरार थी अब आ गई कैसी खाई है..!*
*रिश्ते सब घायल हैं वक्त बना हुआ तमाशाई हैं..!*
*देख कर आज मानवीय रिश्तो की दुर्दशा..!*
*उस परवरदिगार की भी तो आंखें भर आई है..!*
*कभी जो रूबरू मिलते थे अब दूर भाषी हो गए..!*
*तरो-ताजा रहते वो रिश्ते आज बासी हो गए..!*
*रिश्तो के गुलशन में यह किस ने आग लगाई है..!*
*पहले रिश्तो में दरार थी..*
*अपना अपने को शक की नजर से देखता है..!*
*जब अपना सामने आए तो अब कौन चहकता है..!*
*महफ़िल अब ख्वाब बन गई हर तरफ तन्हाई है..!*
*पहले रिश्तो में दरार थी..*
अपली विश्वासू
लेखिका विशाल समाचार
सुधा भदौरिया
ग्वालियर मध्यप्रदेश