विचार

पहले गणतंत्र अपना लगता था अब अनजान सा लगने लगा है..!

*पहले गणतंत्र अपना लगता था अब अनजान सा लगने लगा है..!*
*घर के कोने में पड़ा ये किसी पुराने सामान सा लगने लगा है..!*

*रोज टूटता है जुड़ता है मुड़ता है तभी लड़खड़ा के चलता है..!*
*कहां हो पहले सी अब ताज़गी रही हैं बेजान सा लगने लगा है..!*

*न इसमें वतन फरोशी का गीत है ना ही देशभक्ति का संगीत है..!*
*हर स्वर लहरी बुझी बुझी सी है बेसुरी से तान सा लगने लगा है..!*

*इसकी बगियाॅं मैं कभी आवाम की भलाई की महक रहती थी..!*
*आजकल महक गायब है ये अब एक बियाबान सा लगने लगा है..!*

*कभी सियासतदार कभी दौलत वालों के हाथों यह बिकता है..!*
*कभी इसकी असल शान थी अब ये एक दुकान सा लगने लगा है..!*

*बियाबान=जंगल*

अपली
सुधा भदौरिया
लेखिका विशाल समाचार
ग्वालियर मध्यप्रदेश

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