राजस्थान

दुकानों पर खुलेआम हो रहा रसोई गैस सिलेंडर का उपयोग, प्रशासन कुंभकर्ण की नींद से कब जगेगा ..!

*दुकानों पर खुलेआम हो रहा रसोई गैस सिलेंडर का उपयोग, कार्रवाई नहीं*

*शहर में घरेलू गैस सिलेंडरों के नाम पर ब्लैक का धंधा*

ओमप्रकाश वर्मा धौलपुर प्रतिनिधि

धौलपुर गैस सिलेंडर की कीमतें आसमान छू रही हैं। आम उपभोक्ता महंगी गैस की कीमतों से बेहाल है।
गैस सिलेंडर की कीमतें आसमान छू रही हैं। आम उपभोक्ता महंगी गैस की कीमतों से बेहाल है।
गैस सिलेंडर की कीमतें आसमान छू रही हैं। आम उपभोक्ता महंगी गैस की कीमतों से बेहाल है। लेकिन घरेलू गैस का दुरुपयोग करने वाले कुछ कारोबारी मालामाल हो रहे हैं। धौलपुर शहर के जगन चौराया पुराना वाड़ी बस स्टैंड उड़ेला रोड चौपाटी बाजार हरदेव नगर हॉस्पिटल रोड नगर परिषद रोड गुलाब बाग चौराया धौलपुर जिले वह अन्य जगह में है होटलों, ढाबों चाय तथा हलवाई की दुकानों में घरेलू गैस का धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है। सब्सिडी हासिल करने वाले आम उपभोक्ता के हिस्से की गैस होटल और ढाबों में जल रही है।

समय पर गैस सिलेंडर न मिलने से आपके घर की रसोई चले या न चले लेकिन मिठाई की दुकानों, होटलों और ढाबों की भट्टी में घरेलू सिलेंडर धधकता रहता है। ब्लैक में यहां आराम से सिलेंडर मिल जाता है।
मिठाइयों की दुकानों और ढाबों में सरेआम खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के निर्देशों की अवहेलना कर घरेलू गैस सिलेंडरों का इस्तेमाल हो रहा है। ढाबा मालिक घरेलू सिलेंडर प्रयोग कर आम जनता के रसोई गैस छीन रहे हैं। इससे जहां एक ओर ढाबा मालिकों के सिलेंडर खत्म नहीं होते वहीं शहर में कई बार आम लोगों को तीन-तीन दिन बिना सिलेंडर के रहना पड़ रहा है। ढाबों में घरेलू सिलेंडर का प्रयोग धौलपुर NH3 के मुख्य होटलों के साथ जगन चौराया और धौलपुर पुराना बाड़ी बस स्टैंड चौपाटी बाजार में चले रहे ढाबों में देखा जा सकता है।
(तय कीमत चुकाओ, सिलेंडर पाओ )

एक कारोबारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि घरेलू गैस आसानी से मिल जाते हैं। इनका अलग रेट तय है। बस वह रेट दो और गैस आपके पास पहुंच जाएगी। इसके बाद इस्तेमाल की जिम्मेवारी कारोबारी की होगी। उधर, घरेलू और व्यावसायिक सिलेंडर के दामों में अंतर कालाबाजारी की सबसे बड़ी वजह है। सूत्रों के मुताबिक जब से नॉन सब्सिडी सिलेंडर की व्यवस्था हुई है, घरेलू गैस की कालाबाजारी बढ़ गई है। नॉन सब्सिडी का 14 किलो का सिलेंडर 800 से 1000 रुपये खर्च करने पर आसानी से ब्लैक में मिल जाता है। 19 किलो का व्यावसायिक सिलेंडर के लिए 1425 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। यदि एजेंसी या सिलेंडर पहुंचने वाले से सेटिंग है तो सब्सिडी सिलेंडर भी 100-200 रुपये ज्यादा चुकाने के बाद आसानी से ब्लैक में मिल जाता है। यानी ब्लैक में महंगा सिलेंडर खरीदने के बाद भी फायदा।

*(व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के आंकड़े नहीं खाद्य आपूर्ति विभाग के पास सूत्रों से मिली जानकारी)
व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के आंकड़ों के संबंध में जानकारी नहीं है। धौलपुर जिला में कितने होटल ढाबे, मिठाई और चाय की दुकानें चल रही हैं, इसकी जानकारी ही नहीं है। ऐसे में घरेलू गैस के दुरुपयोग पर कैसे शिकंजा कसा जाएगा। शहर में संचालित हो रहीं मिठाई व नास्ते की दुकानों और ठेलों पर रसोई गैस सिलेंडर का उपयोग किया जा रहा है। खास बात यह है रसोई गैस के दुरुपयोग पर रोक लगाने के लिए स्थानीय प्रशासन और खाद्य विभाग द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। ऐसे में यहां चाय वालों की गुमठियों से लेकर बड़ी मिठाई की दुकानों पर भी व्यावसायिक गैस सिलेंडर की जगह, रसोई गैस सिलेंडर का उपयोग किया जा रहा है। हालांकि जिम्मेदारों का कहना है कि अगर कोई व्यक्ति घरेलू गैस सिलेंडरों का व्यापार में उपयोग कर रहा है तो यह नियम विरुद्ध है। इसे वह दिखवाकर कार्रवाई करंेगे।
शहर में खुले आम नियमों को ताक पर रखकर घर में उपयोग होने वाले गैस सिलेंडरों को दुकानदार और चाय नाश्ता ठेले और कई नाश्ता दुकान वाले अपने व्यापार के लिए उपयोग कर रहे हैं। कई ठेले वालों ने और दुकानदारों ने अपने नाम पर व्यावसायिक सिलेंडरों का रजिस्ट्रेशन तो करा रखा है। लेकिन ये सिलेंडर महंगा पड़ने की वजह से सब्सिडी वाले घरेलू सिलेंडरों का उपयोग वे खुलेआम अपनी दुकानों पर कर रहे हैं। सब्सिडी वाला सिलेंडर सस्ता होने की वजह से शहर के मुख्य चौराहे से लेकर बायपास तक कई दुकानदार और ठेले वालों के पास व्यावसायिक गैस सिलेंडरों का कनेक्शन नहीं होने से वे घरेलू गैस सिलेंडरों का खुलेआम उपयोग कर रहे हैं। जबकि व्यापार के लिए व्यावसायिक गैस सिलेंडर का उपयोग करना अनिवार्य है। लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। वहीं कई दुकानदार कार्रवाई से बचने के लिए सामने तो व्यावसायिक सिलेंडर रखते हैं। लेकिन अंदर वे भी घरेलू गैस सिलेंडरों का उपयोग किया जा रहा है। खास बात यह है कि इन सिलेंडरों का खुलेआम उपयोग होने के बाद भी खाद्य विभाग का इस ओर कोई ध्यान ही नहीं है। न ही इस पर कोई कार्रवाई की जा रही है.

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