रीवा

रीवा में 5 से 10 हजार एकड़ क्षेत्र में हो सकती है बांस की खेती – प्रमुख सचिव वन एक जिला-एक उत्पाद योजना के तहत बांस रोपण की कार्यशाला संपन्न

रीवा में 5 से 10 हजार एकड़ क्षेत्र में हो सकती है बांस की खेती – प्रमुख सचिव वन एक जिला-एक उत्पाद योजना के तहत बांस रोपण की कार्यशाला संपन्न

आलोक कुमार तिवारी प्रतिनिधि रीवा

रीवा एमपी: जिले में बांस रोपण की अपार संभावनाएं हैं। एक जिला एक उत्पाद योजना में शामिल बांस उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एक दिवसीय कार्यशाला वन विभाग के सभागार जयंती कुंज में आयोजित की गई। कार्यशाला में किसानों से चर्चा करते हुए प्रमुख सचिव वन श्री अशोक वर्णवाल ने कहा कि रीवा जिले में 5 से 10 हजार एकड़ में बांस की खेती की जा सकती है। बांस की खेती परंपरागत खेती की तुलना में कम लागत तथा कम रिस्क पर अधिक लाभ देने वाला व्यवसाय है। अच्छी किस्म का बांस रोपित करने के बाद पांचवे वर्ष से लगभग 40 वर्षों तक लगातार लाभ मिलता रहता है। एक बार बांस रोपित करने तथा दो वर्षों तक देखभाल के अलावा इसमें किसी तरह का खर्च नहीं आता है। आगामी 20 वर्षों तक बांस की बहुत अधिक मांग रहेगी। लकड़ी के स्थान पर अब बांस के उपयोग को प्राथमिकता दी जा रही है।
प्रमुख सचिव ने कहा कि परंपरागत खेती में आने वाले खर्चे का हिसाब-किताब लगाने के बाद किसान बांस की खेती को अपनाएं। जब बड़े क्षेत्र में बांस का रोपण होगा तभी अधिक लाभ मिलेगा। निजी कंपनी वाले दो रुपए 55 पैसे प्रति किलो की दर से बांस खरीदने का एग्रीमेंट कर रहे हैं। बांस की खेती में मौसम का असर नहीं पड़ता है। बांस पीपल के बाद सर्वाधिक ऑक्सीजन देने वाला पौधा है। इमारती लकड़ी के वृक्ष 25 से 30 साल में तैयार होते हैं। जबकि बांस 5 से 7 साल में तैयार हो जाता है एवं लगातार उत्पादन देता रहता है। कार्यशाला के बाद अधिकारियों ने परिसर में लगाई गई बांस उत्पादों की प्रदर्शनी का अवलोकन किया।
कार्यशाला में प्रधान वन संरक्षक रमेश गुप्ता ने कहा कि बांस की खेती नहीं बल्कि व्यावसायिक उत्पादन किया जाना चाहिए। इसे व्यवसाय के रूप में अपनाकर किसान अच्छा लाभ कमा सकते हैं। जो किसान बांस की सफलतापूर्वक खेती कर रहे हैं उनके यहाँ अन्य किसानों का भ्रमण कराकर बांस की खेती के अच्छे अनुभव लिए जा सकते हैं। कार्यशाला में कलेक्टर मनोज पुष्प ने कहा कि रीवा जिला मुंबई-बनारस औद्योगिक कॉरिडोर का भाग है। यहाँ अन्य उद्योगों के साथ बांस उद्योग की प्रबल संभावना है। किसान बांस की खेती को अपनाकर अपना भविष्य उज्ज्वल बना सकते हैं। बांस की खेती के लिए वन विभाग से पौधे तथा तकनीकी मार्गदर्शन दिया जाएगा। किसानों को बांस की बिक्री के लिए भी हर संभव सहायता दी जाएगी। एक जिला एक उत्पाद योजना में शामिल बांस रोपण को अपनाकर जिले में आर्थिक विकास का नया अध्याय लिखा जा सकता है।
कार्यशाला में बांस मिशन के संचालक उत्तम कुमार सुबुद्धे ने बांस की विभिन्न प्रजातियों की जानकारी दी। उन्होंने बांस की खेती के लिए तैयारियों, लागत तथा बिक्री की संभावनाओं तथा बांस के व्यावसायिक उत्पादन के विभिन्न पक्षों की विस्तार से जानकारी दी। कार्यशाला में स्वागत उद्बोधन देते हुए मुख्य वन संरक्षक एके सिंह ने कहा कि जिले के बड़े किसान बांस की खेती को अपनाकर जिले को नई ऊंचाई दे सकते हैं। बांस को किसी तरह की कीट-व्याधि तथा जानवारों से भी हानि नहीं होती है। बांस उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कार्यशाला मील का पत्थर साबित होगी।
कार्यशाला में बांस उत्पादन से जुड़े किसानों तथा व्यवसाइयों, आर्टिसन एग्रोटेक के दीपक खरे, देवेन्द्र प्रसाद पाण्डेय, मो. रिजवी, इस्लाम खान, शिवेन्द्र मोहन तिवारी, अजय सिंह तथा अन्य किसानों ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यशाला में अतिथियों को बांस से बनी कलाकृतियां भेंट की गर्इं। कार्यशाला में अतिरिक्त प्रमुख वन संरक्षक चितरंजन त्यागी, वन मण्डलाधिकारी रीवा चन्द्रशेखर सिंह, वन मण्डलाधिकारी सतना विपिन पटेल, उप संचालक कृषि यूपी बागरी तथा बड़ी संख्या में किसान शामिल हुए.

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