अपोलो हॉस्पिटल्स नवी मुंबई ने 200 से ज़्यादा किडनी ट्रांसप्लांट्स का पड़ाव तीन सालों में पार किया
~ कोविड महामारी की वजह से चुनौतियों के बावजूद लोगों की जान बचाने में रीनल ट्रांसप्लांट प्रोग्राम ने हासिल की उल्लेखनीय सफलता ~
पुणे: अपोलो हॉस्पिटल्स नवी मुंबई ने 200 से ज़्यादा जीवन-रक्षक किडनी ट्रांसप्लांट्स को तीन सालों में सफलतापूर्वक पूरा करके अपने रीनल ट्रांसप्लांट प्रोग्राम में एक महत्वपूर्ण पड़ाव हासिल किया है। कोविड महामारी के चुनौतीपूर्ण दौर में किए गए किडनी ट्रांसप्लांट्स भी इसमें शामिल होने की वजह से यह उपलब्धि और भी ज़्यादा सराहनीय है। अपोलो हॉस्पिटल्स नवी मुंबई में ट्रांसप्लांट स्पेशलिस्ट्स की अनुभवी टीम ने 200 से ज़्यादा किडनी ट्रांसप्लांट्स किए, जो उनकी उच्च क्षमताओं और रोबोटिक प्रौद्योगिकी द्वारा समर्थित नेफ्रोलॉजी में अंग विशिष्ट कार्यक्षेत्र के ज्ञान के साक्षी हैं।
200 से ज़्यादा किडनी ट्रांसप्लांट्स के पड़ाव को हासिल करने घोषणा करने के लिए आयोजित की गयी एक प्रेस कॉन्फरेन्स में अपोलो हॉस्पिटल्स नवी मुंबई की रीनल ट्रांसप्लांट टीम ने कुछ ऐसे उल्लेखनीय निरीक्षण प्रस्तुत किए जिनमें दिखाया गया कि किडनी ट्रांसप्लांट्स ने कम और लंबे समय में पाए जाने वाले बेहतर परिणामों के साथ डायलिसिस के मुकाबले अधिक जानें बचायी हैं। टीम ने अधोरेखित किया कि किडनी ट्रांसप्लांट्स का सफलता दर 99% से अधिक है और जटिल ट्रांसप्लांट्स को सफलतापूर्वक किया गया है जिनमें एबीओ-इन्कॉम्पैटिबल (मिसमैच्ड ब्लड ग्रुप) ट्रांसप्लांट्स और रिपीट (दूसरी बार) ट्रांसप्लांट केसेस भी शामिल हैं।
अपोलो हॉस्पिटल्स नवी मुंबई के कंसल्टेंट रोबोटिक यूरोलॉजिस्ट और रीनल ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ अमोलकुमार पाटील ने कहा, “अपोलो हॉस्पिटल्स नवी मुंबई में सर्जिकल प्रौद्योगिकी का लगातार अपग्रेडेशन किया जाता है, आज के दौर में कम से कम इन्वेसिव टेक्निक्स सबसे ज़्यादा अपनाए जाते हैं। इससे सर्जरी के बाद के दर्द को बेहतर तरीके से नियंत्रण में रखा जा सकता है, मरीज़ की तबियत जल्द से जल्द ठीक होती है और शरीर पर सर्जरी के निशान भी नहीं रहते, बहुत ही छोटे निशान होते हैं जो जल्द ही ठीक हो जाते हैं। दा विन्ची सर्जिकल सिस्टम जैसी आधुनिकतम रोबोटिक प्रौद्योगिकी के साथ अपोलो हॉस्पिटल्स नवी मुंबई में मरीज़ों पर किए जाने वाले इलाज और उनके परिणामों के ऐसे विकल्प दिए जाते हैं जो दुनिया में उपलब्ध सर्वोत्तम विकल्पों के बराबर हैं। सकारात्मक क्लिनिकल परिणामों और वैश्विक स्तर के अनुभव ने अपोलो हॉस्पिटल्स नवी मुंबई को भारत और दुनिया भर के मरीज़ों के लिए एक लोकप्रिय विकल्प बन चुका है।”
भारत में अलग-अलग ट्रांसप्लांट्स के 99% से अधिक सफलता दर के साथ, अपोलो हॉस्पिटल्स नवी मुंबई रीनल ट्रांसप्लांट सेंटर न केवल भारत के, बल्कि दुनिया भर के रोगियों के लिए गुणवत्ता और आशा की किरण है। कोविड मामलों में कमी के साथ जैसे ही अंतरराष्ट्रीय यात्रा प्रतिबंधों में ढील दी गई, मेडिकल वैल्यू ट्रेवल फिर से शुरू हुए, टीम ने यमन, रवांडा, केन्या और सुदान के 15 विदेशी मरीज़ों पर किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरीज़ सफलतापूर्वक की।
अपोलो हॉस्पिटल्स नवी मुंबई के चीफ कंसल्टेंट नेफ्रोलॉजिस्ट और ट्रांसप्लांट फिजिशियन डॉ अमित लंगोटे ने कहा, “सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस के रूप में, एबीओ-इन्कॉम्पैटिबल ट्रांसप्लांट्स में हमारी विशेषज्ञता ने हमें किडनी फेल्युअर से पीड़ित कई रोगियों की मदद करने में सक्षम बनाया है जो उनके मैचिंग ब्लड ग्रुप के मृत या जीवित दाता की प्रतीक्षा सालों से कर रहे हैं। हमारी कुशल टीम ने अस्वीकृति की कम जोखिम के साथ ट्रांसप्लांट को एक व्यवहार्य विकल्प बना दिया है। एबीओ-इन्कॉम्पैटिबल मामलों की मात्रा अब तक कुल मामलों के 11% तक पहुंच गई है और डोनर पूल बड़ा हो जाने के कारण ऊपर की ओर रुझान देखा जा रहा है। हम कई गंभीर मरीज़ों की मदद करने के अवसर मिलें जिनके लिए हम आभारी हैं, उनके ट्रांसप्लांट्स सफलतापूर्वक हुए और वे अपने सामान्य जीवन में लौट चुके हैं।”
महामारी के दौरान किए गए किडनी ट्रांसप्लांट्स में रीनल ट्रांसप्लांट टीम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सख्त प्रोटोकॉल्स का पालन करते हुए, टीम ने 90+ गंभीर रोगियों पर किडनी ट्रांसप्लांट्स किए, जो अन्यथा लॉकडाउन खुलने और प्रतिबंधों को हटाए जाने तक ट्रांसप्लांट की प्रतीक्षा करते तो जीवित नहीं रह सकते थे। महामारी के दौर की चुनौतियों के बावजूद यह ट्रांसप्लांट्स सफल रहे। सख्त संक्रमण नियंत्रण प्रक्रियाओं के साथ जिन्होंने ट्रांसप्लांट सर्जरीज़ की उस टीम का आज तक का अनुभव काफी महत्वपूर्ण रहा।
अपोलो हॉस्पिटल्स नवी मुंबई के कंसल्टेंट नेफ्रोलॉजिस्ट और किडनी ट्रांसप्लांट फिजिशियन, डॉ रवींद्र निकलजी ने कहा, “प्रत्यारोपण के बाद कुल स्वास्थ्य और जीवन की स्वास्थ्य संबंधी गुणवत्ता में उन्नत तकनीकों और बेहतर इम्यूनोसप्रेशन के कारण सुधार हुआ है। दूसरी बार या रिपीट ट्रांसप्लांटेशन के आने वाले कई मरीज़ों को डायलिसिस के मुकाबले बेहतर उत्तरजीविता लाभों के साथ मदद करने में इसने हमें सक्षम बनाया है। ये सर्जरी चुनौतीपूर्ण हैं लेकिन हमें गर्व है कि हम रिपीट ट्रांसप्लांट्स को बहुत ही प्रभावी ढंग से कर पाए हैं। एक स्वस्थ बुजुर्ग व्यक्ति भी स्वास्थ्य पर कोई गंभीर प्रभाव डाले बिना किसी व्यक्ति के जीवन को बचाने में दाता बन सकता है यह जागरूकता पैदा करने में भी हम सफल हुए हैं।”
एक दिल को छू लेने वाला मामला एक 81 वर्षीय महिला का था, जो भारत की सबसे उम्रदराज जीवित दाता थी, उन्होंने अपने 54 वर्षीय बेटे को एक किडनी दान की। यह एक एबीओ-कॉम्पैटिबल ट्रांसप्लांट मामला था और दाता और प्राप्तकर्ता की तबियत पूरी तरह से ठीक हुई और 81 वर्षीय दाता के स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं हुआ।
अपोलो हॉस्पिटल्स नवी मुंबई के जॉइंट मेडिकल डायरेक्टर डॉ रवि शंकर ने कहा, “एक बार क्रोनिक किडनी बीमारी तीसरे चरण में पहुंच जाती है, केवल किडनी ट्रांसप्लांट ही है जो डायलिसिस के मुकाबले जीवन की अधिक सामान्य गुणवत्ता के साथ एक स्थायी समाधान प्रदान करता है। प्रत्यारोपण के लिए उपलब्ध किडनी की कमी के कारण ही मरीज डायलिसिस के लिए जाते हैं। हमें खुशी है कि किडनी ट्रांसप्लांट में हमारे सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस के पास किडनी ट्रांसप्लांट की बढ़ती मांग को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए विशेषज्ञता और अनुभव है क्योंकि किडनी फेल्युअर के रोगियों को अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करने और उन्हें बेहतर और लंबा जीवन देने के लिए यही एकमात्र विकल्प बचा है।”
आज, भारत में किडनी की बीमारी में लगातार वृद्धि हो रही है, कुल मरीज़ों में से 17% से अधिक किडनी की बीमारी से पीड़ित हैं। जब बीमारी चरण I और II में होती है, तब उसका प्रारंभिक निदान, उचित उपचार और दवाओं के साथ बीमारी बढ़ने से रोकने या उसकी गति को धीमी करने में मदद मिल सकती है। लेकिन उसके अगले चरण III में, नियमित हेमोडायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपण के रूप में किडनी की रिप्लेसमेंट थेरेपी आवश्यक है। हेमोडायलिसिस के दुष्प्रभाव होते हैं और इससे रोगी की स्वतंत्रता और जीवन की गुणवत्ता को सीमित करता है। किडनी ट्रांसप्लांट अंतिम चरण की किडनी की बीमारी वाले मरीज़ों के इलाज के लिए एक पसंदीदा विकल्प है।