पशुपालन, उद्यानिकी तथा मछली पालन को अपनाने पर ही खेती बनेगी लाभदायक – कलेक्टर
मानव जीवन तथा माटी की सुरक्षा के लिए प्राकृतिक खेती अपनाना अनिवार्य है – कलेक्टर
रीवा एमपी:कलेक्ट्रेट के मोहन सभागार में देवारण्य योजना, बांस मिशन तथा फसल विविधीकरण की बैठक आयोजित की गई। बैठक की अध्यक्षता करते हुए कलेक्टर मनोज पुष्प ने कहा कि परंपरागत रूप से धान और गेंहू की लगातार खेती से मिट्टी की उर्वरा शक्ति नष्ट हो रही है। खाद और घातक रसायनों के उपयोग से भी पर्यावरण को तथा मिट्टी को नुकसान पहुंच रहा है। हम जाने-अनजाने फल, सब्जी तथा अनाजों के साथ घातक रसायन भी ग्रहण कर रहे हैं। मानव जीवन की सुरक्षा और धरती पर माटी तथा उसकी उर्वरा शक्ति बचाने के लिए प्राकृतिक खेती को अपनाना अनिवार्य है। रीवा जिले में मोटे अनाजों, औषधीय पौधों, उद्यानिकी फसलों तथा फूलों की खेती को बढ़ावा देकर गेंहू और धान उत्पादक किसानों को कृषि विविधीकरण के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। ग्रीन फेंसिंग तथा खेती के रूप में बांस भी कम लागत में अधिक और स्थाई लाभ देने वाली खेती है। इसके लिए पूरे जिले में समन्वित प्रयास की आवश्यकता है।
कलेक्टर ने कहा कि कृषि का तेजी से यंत्रीकरण हुआ है। हमें खेती को आधुनिक बनाने के साथ-साथ पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक अनाज तथा दलहन-तिलहन देने वाला बनाना है। खेती को लाभदायक बनाने के लिए किसान को पशुपालन, मछलीपालन, उद्यानिकी तथा मोटे अनाजों की खेती को अपनाना होगा। फसल चक्र सही होगा तो किसान और उसके खेत की माटी दोनों का स्वास्थ्य अच्छा होगा। कृषि विविधीकरण के लिए हर संभव सहायता उपलब्ध कराई जाएगी। औषधीय पौधों की खेती के लिए उचित प्रशिक्षण तथा उत्पादित औषधियों की बिक्री के लिए बाजार उपलब्ध कराया जाएगा। उप संचालक कृषि करहिया मंडी में जैविक कृषि उत्पादों, औषधीय पौधों तथा गो काष्ठ की बिक्री के लिए व्यवस्था कराएं।
कलेक्टर ने कहा कि औषधीय पौधों तथा मसालों की खेती के साथ-साथ इनके प्रसंस्करण के लिए संयंत्र भी स्थापित कराए जाएंगे। जिले में 2600 किसानों ने प्राकृतिक खेती के लिए पंजीयन कराया है। लगभग दो हजार हेक्टेयर में परंपरागत फसलों के स्थान पर अन्य फसलों की खेती तथा औषधीय पौधों की खेती की जाएगी। जिले में दो हजार हेक्टेयर में बांस रोपण का भी लक्ष्य रखा गया है। जैविक खेती करने पर उत्पादन भले कम मिले लेकिन उसके दाम सामान्य अनाजों से कई गुना अधिक मिलते हैं। जिले में कोदौ, सरसों तथा मक्का उत्पादन को प्रोत्साहित किया जा रहा है। कृषि विभाग के पास 40 क्विंटल कोदौ उपलब्ध है। इसकी 55 रुपए प्रति किलो की दर से बिक्री की जा रही है। जिसमें किसान को 30 रुपए अनुदान दिया जा रहा है।
बैठक में जिले में तुलसी, मुनगा, गिलोय, सतावर, आँवला, निरगुण्डी, एलोबेरा की खेती को बढ़ावा देने के सुझाव दिए गए। उद्यानिकी विभाग द्वारा मुनगा के दो लाख पौधे तैयार किए गए हैं जिनका जुलाई माह में रोपण कराया जाएगा। वन विभाग द्वारा पर्याप्त मात्रा में बांस के भी पौधे रोपण के लिए तैयार किए गए हैं। बैठक में जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी स्वप्निल वानखेड़े, एसीएफ नरेन्द्र त्रिपाठी, महाप्रबंधक उद्योग यूबी तिवारी, उप संचालक कृषि यूपी बागरी, जिला समन्वयक नाबार्ड सुनील ढिकले, जिला आयुर्वेद अधिकारी, उप संचालक पशुपालन डॉ राजेश मिश्रा, परियोजना अधिकारी जिला पंचायत संजय सिंह तथा बड़ी संख्या में प्रगतिशील किसान एवं एफपीओ के संचालक उपस्थित रहे।