किसान आधुनिक खेती के साथ पारंपरिक खेती भी अपनाये
सिरमौर में किसान सम्मेलन संपन्न
विशाल समाचार टीम रीवा
रीवा एमपी: विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम ने सिरमौर में आयोजित किसान सम्मेलन का शुभारंभ दीप प्रज्जवलन कर किया। उन्होंने कहा कि किसान आधुनिक खेती के साथ पारंपरिक खेती भी अपनाये। विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि किसानों द्वारा लगातार खेती में प्रचुर मात्रा में रासायनिक उर्वरक का उपयोग करने से धरती की उर्वराशक्ति कम हो रही है। हम उपज का अधिक उत्पादन लेने की चाह में अपने पारंपरिक खेती को भूलते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि 60 वर्ष पूर्व रीवा जिले में धान का नाम मात्र का उत्पादन होता था। गेंहू का भी कोई-कोई किसान ही उत्पादन लेता था। अधिकांश किसान कोदों, कुटकी, अरहर, मूंग, जौ का उत्पादन ही लेता था। खेती में आधुनिकीकरण के कारण बम्पर उत्पादन तो हो रहा है लेकिन उमरी गांव में 2 लाख 10 हजार Ïक्वटल धान रखने की जगह नहीं है। धान उत्पादन का हम रिकार्ड बना रहे हैं लेकिन उसे व्यवस्थित रूप से रखने की जगह नहीं है। खेती में वैज्ञानिक पद्धति अपनाने से उत्पादन बढ़ गया है। लेकिन आवश्यक है कि अनाज का अधिक पैदावार हो और उसकी गुणवत्ता भी बनी रहे।
विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि आवश्यक है कि किसान जैविक खेती करें, गोबर की खाद का उपयोग करें, रासायनिक उर्वरक की तुलना में गोबर की खाद बहुत सस्ती रहती है। उन्होंने कहा कि खेती में पुरानी परंपराओं और पद्धतियों को जीवित रखने की आवश्यकता है। आधुनिक खेती में अब 18 दिन में पकने वाला गेंहू का बीज तथा कम अवधि में तैयार होने वाला धान आ गया है। इसके उपयोग से उत्पादन तो बढ़ेगा लेकिन इसमें गुणवत्ता एवं पोष्टिकता बिलकुल भी नहीं रहेगी। उन्होंने कहा कि सरकार खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने में लगी है। इसके लिए आवश्यक है कि हम जैविक एवं पारंपरिक खेती करें। यहां के किसानों ने जहां कोदों का उत्पादन लेना बंद कर दिया है वहीं कोदों 80 रूपये किलो तथा जौ का आटा 40 रूपये किलो मिल रहा है। डॉक्टरों ने कोदों को डायबिटीज रोगियों के लिए लाभदायक बताया है। किसानों को ऐरा प्रथा के कारण भी खेती में नुकसान होता है। इसके लिए आवश्यक है कि ग्राम पंचायतों में गौशालाएं निर्मित की जाय। उन्होंने कहा कि रासायनिक उर्वरक के उपयोग से प्रकृति असंतुलित हो रही है जहां इसके कारण आज हर 24 घंटे में 8.50 करोड़ लोग अपने विभिन्न बीमारियों के उपचार के लिए अस्पताल में रहते हैं। हमने प्रकृति के दोहन की जगह उसका शोषण प्रारंभ कर दिया है। प्रकृति से मिले उपहार का दोहन सीखना हो तो केरल राज्य का भ्रमण करें वहां पायेगें कि प्रचुर मात्रा में गरम मसाले का लौग, लायची, हल्दी का उत्पादन हो रहा है। रोज पेड़ों की कटाई के कारण पहाड़ बीरान होते जा रहे हैं। जंगल नष्ट हो रहे हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि प्रत्येक विकासखण्ड के 8-10 ग्रामों का चयन कर इन्हें आदर्श गांव बनाये। यहां पर जैविक खेती एवं गोबर की खाद का ही उपयोग किया जाय।
किसान संघ के प्रादेशिक अध्यक्ष गजराज सिंह ने कहा कि प्राचीन भारत में वैदिक खेती की जाती थी। उन्होंने कहा कि सिरमौर में मिट्टी परीक्षण केन्द्र होने के बाद भी मिट्टी का परीक्षण नहीं किया जाता जिससे किसान अपने खेती से भरपूर उत्पादन नहीं ले पाते। उन्होंने कहा कि किसानों को लागत मूल्य के आधार पर लाभकारी मूल्य मिलना चाहिए। किसान समूह बनाकर प्रोसेसिंग यूनिट लगाये, गौशाला का संचालन करें और खेती में तकनीक का उपयोग करें।
कार्यक्रम में अवध बिहारी शुक्ला, कृषि वैज्ञानिक डॉ. संजय सिंह, हरवंश प्रसाद शर्मा, बद्री प्रसाद द्विवेदी, केएस सिंह, जयप्रकाश, मन्नू लाल गुप्ता, पुष्पेन्द्र गौतम सहित किसान उपस्थित थे।