क्या मैनपुरी चुनाव परिणाम बदल देगे लोकसभा 2024 की तस्वीर ?
डॉ. अजय कुमार मिश्रा
देश का राजनैतिक इतिहास इस बात का गवाह रहा है की बड़े परिवर्तन उस समय होतें है जब आप यह मान लेते है की अमुक पार्टी का कोई विकल्प नहीं है | बड़े परिवर्तन की झलक पहले ही दिखनी शुरू भी हो जाती है | गुजरात और हिमांचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव से अधिक चर्चा में यदि कुछ रहा है तो वह उत्तर प्रदेश का उप चुनाव है | एक तरफ जहाँ भारतीय जनता पार्टी सातवीं बार ऐतिहासिक चुनावी जीत के साथ गुजरात की सत्ता में कायम रहेगी तो वही हिमांचल प्रदेश ने अपनी परम्परा को निभाने की प्रतिबद्धता पुनः जाहिर कर दिया और कांग्रेस को हाथो कमान सौप दी | सबसे चर्चित उत्तर प्रदेश के उप चुनाव की बात करें तो रामपुर विधानसभा उप चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी आकाश सक्सेना ने कुल 34,136 वोटों की मार्जिन से चुनाव जीता है उन्हें कुल 81,432 (62.06%) वोट प्राप्त हुए है | उन्होंने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार मोहम्मद असीम रजा को मात दी है | वही खतौली विधानसभा उप चुनाव में आरएलडी और समाजवादी पार्टी के गठबंधन का प्रत्याशी मदन भैया ने 22143 वोटो के मार्जिन से जीत दर्ज किया है | उन्हें कुल 97139 (54.04%) वोट प्राप्त हुए है | उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी राज कुमारी सैनी को चुनावी मात दी है | इन दो विधानसभा चुनावों में खास चर्चा रामपुर विधानसभा उप चुनाव की रही है जहाँ भारतीय जनता पार्टी ने आजादी के पश्चात् पहली बार जीत दर्ज किया है | बेहद रोचक यह भी है की जातियों का समीकरण इस विधानसभा का कुछ और ही परिणाम दर्शाता रहा है | खास उपलब्धि के बावजूद भारतीय जनता पार्टी के लखनऊ कार्यालय पर सन्नाटा सभी ने देखा और सोचने पर विवश किया की आखिर बीजेपी की चिंता का कारण क्या है ?
बीजेपी एकलौती ऐसी पार्टी है जो एक कॉर्पोरेट कम्पनी की तरह चुनावी रणनीति बनाती और चुनाव होने के महीनों पहले क्षेत्र में संघर्ष जारी कर देती है | उत्तर प्रदेश के उप चुनाव के परिणामों से बीजेपी की केन्द्रीय नेतृत्व की इकाई और उत्तर प्रदेश की इकाई ने भविष्य के खतरें को भाप लिया है और इस खतरें का संकेत मैनपुरी लोकसभा के उप चुनाव परिणाम ने दे दिया है | मैनपुरी लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी के मुखिया श्री मुलायमसिंह यादव की मृत्यु के पश्चात् रिक्त हुई थी | भारतीय जनता पार्टी ने जहाँ उप चुनाव में रघुराज सिंह शाक्या को मैदान में उतारा था वही समाजवादी पार्टी ने डिम्पल यादव को चुनाव में उतरा था | डिम्पल यादव ने भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी को 2,28,461 वोटों के बड़े अंतर से मात दी है | डिम्पल यादव को कुल 6,18,120 (64.08%) मत प्राप्त हुए है | दिलचस्प बात यह भी है की मैनपुरी लोकसभा चुनाव परिणाम को इसके अंतर्गत मौजूद पांचों विधानसभा में विभाजित करके देखा जाए तो पांचो विधानसभा में भी जीत दर्ज दिखाई देता है | मैनपुरी के लोकसभा चुनाव में लगभग 10% वोट स्विंग हुआ है | बीजेपी की असली चिंता मैनपुरी लोकसभा के परिणाम ही है वजह स्पष्ट है की 2024 के लोकसभा चुनाव के जरिये केंद्र में किसकी सत्ता बनेगी इसकी निर्णायक भूमिका उत्तर प्रदेश ही निभाता है जहाँ पर कुल 80 लोकसभा सीट है |
मैनपुरी लोकसभा चुनाव ने कई ऐसी बातों को समाप्त कर दिया है जिसकी चर्चा सभी चुनावों में होती थी और सीधा नुकशान अखिलेश यादव की पार्टी को होता था | अब उन बातों के समाप्त हो जाने से राजनैतिक लाभ सीधे अखिलेश यादव को होता दिखाई पड़ रहा है, जैसे चाचा-भतीजे की दूरी अब नजदीकी में बदल चुकी है और चाचा द्वारा अपने राजनैतिक दल का विलय भी कर दिया गया है | दूसरा रामपुर से पूर्व विधायक आज़म खान से अखिलेश के बीच की दूरी और कई बातों में भिन्नता का समापन भी रामपुर चुनाव हार जाने से स्वतः हो गया है जिसकी चर्चा होने से समाजवादी पार्टी को राजनैतिक नुकशान उठाना पड़ता रहा है | इन दो महत्वपूर्ण बिन्दुओं के अलावा बहुजन समाजवादी पार्टी का राजनैतिक अस्तित्व ख़त्म होना भी समाजवादी पार्टी को लाभ पहुंचा रहा है | बीजेपी से असंतुष्ट और बहुजन समाजवादी पार्टी में अपना भविष्य देखने वाले वोटर अब समाजवादी पार्टी को विकल्प के रूप में देखने लगें है | अखिलेश यादव ने विगत के कुछ वर्षों में समाजवादी पार्टी पर लगें आरोपों की न केवल गहराई से मूल्यांकन किया है बल्कि उन आरोपों को ख़त्म करने की पुरजोर कोशिश भी किया है | यह तैयारी और वर्तमान लोकसभा जीत और पूर्व के लोकसभा चुनाव परिणामों की विवेचना के आधार पर यह कहा जा सकता है की आगामी लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी एक बड़ा उलटफेर करने को तैयार है और यह सम्भावित उलट फेर ही बीजेपी के लिए चिंता का विषय बन गया है |
बीजेपी की चुनावी रणनीति का आप मूल्यांकन करेगे तो आपको यह ज्ञात होगा की विपक्ष की मजबूती के तिलस्म को तोड़ने के लिए वह हर संभव प्रयास करती है और प्रत्येक चुनाव इस अंदाज में लड़ती है मानों वह चुनाव उसके लिए करों या मरों की स्थिति का हो | पर इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता की बीजेपी की अपनी कई सीमाएं है जिसे वो भले ही लाभ के रूप में देखती हो पर चुनावी परिणाम में वो नकारात्मक असर डालते है मसलन, दूसरे दल के जीते विधायकों को अपने दल में शामिल करके चल रही सरकार को गिरा कर अपनी सरकार बनाना कही न कही जनादेश का अपमान दिखाता है, क्या बीजेपी का एक सामान्य कार्यकर्त्ता उतनी ही शक्ति रखता है जितनी की किसी अन्य दल का ? स्वयं बीजेपी के कई विधायक और मंत्री भी इस बात को सार्वजनिक रूप से कह चुकें है की उनकी बातों को उन्ही की सरकार में नहीं सुना जाता | बीजेपी की केन्द्रीय और प्रदेश के नेतृत्व परिवर्तन ने कई ऐसे बदलाव किये है जिसका सीधा असर सभी वर्गों पर पड़ने लगा है भले ही आमदनी में व्यापक भिन्नता हो | और इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता की कॉर्पोरेट के सीईओ की तरह कंपनी तो चलायी जा सकती है पर सरकार नहीं चलायी जा सकती है | अब जरूरत है बीजेपी को नए सिरें से मैनपुरी के चुनावी परिणामों का मूल्यांकन करने और नयी रणनीति बना करके कार्य करने की अन्यथा अखिलेश यादव द्वारा अपनाई गयी चुनावी रणनीति बड़ी संख्या में वोटरों को अपने पक्ष में करने में आसानी से कामयाब रहेगी और लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी के लिए बड़ी समस्या पैदा कर देगा जिसकी भरपाई बीजेपी के लिए सम्भव नहीं होगी |