पूणेव्यापार

खादी है भारतीय संस्कृति, परंपरा और शांति का प्रतीक

खादी है भारतीय संस्कृति, परंपरा और शांति का प्रतीक
सूर्यदत्त इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी द्वारा खादी अवधारणा पर 11वीं ‘स्पार्क 2023’ वार्षिक प्रदर्शनी
 
पुणे : “खादी शांति का प्रतीक है, जो भारतीय संस्कृति और परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है। ‘सूर्यदत्त’ के छात्रों ने रचनात्मकता और नवीनता का उपयोग करते हुए विविध और सुंदर उत्पाद बनाए हैं। उनके इस कला को दुनिया भर में जाना चाहिए। नई रंग योजनाओं, विचारों का उपयोग कर खादी के अनगिनत उत्पादों को बनाया जा सकता है,” यह इस प्रदर्शनी से पता चलता है, यह प्रतिपादन प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज की सरिताबेन राठी ने किया।
सूर्यदत्त ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट्स द्वारा संचलित सूर्यदत्त इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (एसआईएफटी) द्वारा खादी की अवधारणा पर आयोजित हस्तशिल्प प्रदर्शनी ‘स्पार्क 2023’ का उद्घाटन सरिताबेन राठी के हाथों हुआ। ‘सूर्यदत्त’ के बावधन परिसर में आयोजित इस प्रदर्शनी में विद्यार्थियों द्वारा खादी से निर्मित 2100 विभिन्न प्रकार के कलात्मक उत्पाद प्रस्तुत किए गए हैं। यह प्रदर्शनी अगले रविवार (26 मार्च) तक सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक सभी के लिए नि:शुल्क खुली रहेगी।
इस अवसर पर पूर्व विशेष पुलिस महानिरीक्षक डॉ. विठ्ठल जाधव, स्ट्रेटेजिक फोरसाइट ग्रुप के निदेशक सचिन इटकर, वरिष्ठ पत्रकार अनिरुद्ध बडवे, उद्यमी रितु अग्रवाल, महाराष्ट्र गांधी मेमोरियल फंड के ट्रस्टी सचिव संदीप बर्वे, ‘सूर्यदत्त’ के संस्थापक अध्यक्ष प्रो. डॉ. संजय बी. चोरडिया, उपाध्यक्ष एवं सचिव सुषमा संजय चोरडिया, सह उपाध्यक्ष स्नेहल नवलखा, ‘एसआईएफटी’ के प्राचार्य प्रो. रेणुका घोसपुरकर, विभागाध्यक्ष प्रो. पूजा विश्वकर्मा, प्रो प्रियंका कामथे आदि उपस्थित थे।
डॉ. विट्ठल जाधव ने कहा, “खादी संयम, शांति, भारतीय संस्कृति और देशभक्ति का प्रतीक है। जिस तरह प्राकृतिक और जैविक उत्पादों की मांग बढ़ी है, उसी तरह खादी को लेकर भारतीयों के मन में स्वाभिमान जाग्रत हो रहा है। रचनात्मकऔर सुंदर कलाकृति का निर्माण छात्रों द्वारा किया गया है। इसे दुनिया भर में पहुंचना चाहिए। उसके लिए खादी की इस गतिविधि पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई जाए और उसका दूर-दूर तक प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। अगर खादी का इस्तेमाल बढ़ेगा तो कपास किसानों को राहत मिलेगी।”
अनिरुद्ध बडवे ने कहा, “भारतीय परंपरा, संस्कृति का दर्शन खादी के माध्यम से होता है. पिछले कुछ सालों में सभी क्षेत्रों में फिर से पहले दिन आने लगे हैं। खादी के विचार को आगे बढ़ाने के लिए ‘सूर्यदत्त’ द्वारा की गई यह पहल देश की प्रतिष्ठा में इजाफा करने वाली है। धार्मिक कार्य हमें सफलता की ओर ले जाता है। सूर्यदत्त द्वारा किया गया यह कार्य सकारात्मक ऊर्जा देने वाला है और हमें ऐसी पहलों को प्रोत्साहित करना चाहिए।”
संदीप बर्वे ने कहा, “खादी भारत का राष्ट्रीय परिधान है। महात्मा गांधी ने खादी को शांति और उद्यमिता पैदा करने का साधन बताया था। गांधी जी के इस विचार को सूर्यदत्त परिवार आगे बढ़ा रहा है इसकी हमें ख़ुशी हैं। आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने वाली खादी की इस गतिविधि को गांधी भवन में प्रस्तुत करने का अवसर ‘सूर्यदत्त’ के विद्यार्थियों को दिया जाएगा। खादी के उपयोग से हमारे बहुत से लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे।”
प्रो डॉ. संजय बी. चोरडिया ने कहा, “खादी सिर्फ एक कपड़ा नहीं है, यह एक विचार है, इस संदेश के साथ फैशन टेक्नोलॉजी के 100 छात्रों द्वारा खादी का उपयोग कर 21 दिनों में बनाए गए रिकॉर्ड 2100 उत्पादों को प्रदर्शित करने वाली यह प्रदर्शनी है. पर्यावरण के अनुकूल प्राकृतिक रेशों से, खादी का उपयोग कर यह उत्पाद तैयार किए हैं। ‘सूर्यदत्त’ संस्था नियमित रूप से छात्रों में देशभक्ति की भावना पैदा करने, भविष्य के उद्योग और रोजगार सृजन के लिए सूर्यदत्त स्टार्टअप वेंचर के तहत अभिनव गतिविधियों को लागू कर देश को आत्मनिर्भर बनाने में योगदान दे रही है। यह गतिविधि कई विश्व रिकॉर्ड संगठनों द्वारा दर्ज की गई है। ग्रामीण, आदिवासी क्षेत्रों से आने वाले ये छात्र खादी को देश का राष्ट्रीय गौरव बनाने के लिए प्रयासरत हैं। उन्होंने खादी से हर तरह के उत्पाद को संभव बनाने पर जोर दिया है। इसमें बैग, एक्सेसरीज, कपड़े, लाइफस्टाइल उत्पाद, उपहार जैसे 2100 उत्पाद शामिल हैं।”
“देश के साथ-साथ विश्व स्तर पर खादी के कपड़ों को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से खादी के कपड़ों को बढ़ावा देने हेतू ‘सूर्यदत्त’ ने यह पहल की है। इन वस्तुओं को बनाते समय पर्यावरणीय स्थिरता को भी प्राथमिकता दी है। कई छोटे टुकड़ों को रिसाइकिल करके उल्लेखनीय वस्तुएं बनाईं है। खादी के धागे की तरह, पर्यावरण, व्यवस्था और समाज के धागे को बुनकर युवाओं को राष्ट्र निर्माण में योगदान देना चाहिए। यह इस प्रदर्शनी के आयोजन के पीछे का  उद्देश्य है,” इसका जिक्र रेणुका घोसपुरकर ने किया।

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