रीवा जिला की राजनीति 2023 का सफर
जिले की 8 में से 5 विधायक दूसरे विधानसभा क्षेत्रों के फिर भी जनता को स्वीकार
धर्मेन्द्र गुप्ता प्रतिनिधि मऊगंज की रिपोर्ट
जब- जब विधानसभा के चुनाव आते हैं तो क्षेत्रीय नेताओं द्वारा बाहरी व स्थानीय को मुद्दा बनाकर दूसरे विधानसभा क्षेत्रों के दावेदारों को टिकट नहीं देने की बात की जाती है। इसमें भाजपा व कांग्रेस जैसे प्रमुख दल शामिल हैं। पार्टियों के प्रत्याशी बनाए जाने तक इस बात की चर्चा भी रहती है। इससे इतर न पार्टियां इस तरफ ध्यान देती हैं न ही जनता। जो भी दावेदार मजबूत दिखता है पार्टियां उसे मैदान में उतारती हैं और जनता यह देखे बिना की वह बाहरी है या स्थानीय, उस पर अपना भरोसा जता देती है।
कुल मिलाकर रीवा जिले में भले ही कुछ नेता खुद की टिकट के लिए इसे चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश करते हों लेकिन न तो पार्टियां इस पर ध्यान देती और न ही जनता। जिले की यह कोई मौजूदा रणनीतिक परिस्थितियां नहीं हैं, शुरुआत से ही यहां की तस्वीर ऐसी रही है। कई बड़े व नामी नेता अपना विधानसभा क्षेत्र छोड़कर दूसरी सीटों से चुनाव जीते व विधायक बने।
इस साल विधानसभा चुनाव होने के लिए अब चंद माह ही शेष हैं, ऐसे में एक बार फिर बाहरी को मुद्दा बनाने का प्रयास जारी है, लेकिन जनता के मूड व अब तक के परिणामों को देख कर तो यह कतई प्रतीत नहीं होता कि बाहरी व स्थानीय जैसे मुद्दों को लोग कोई तवज्जो देंगे। आने वाले दिनों में देखना यह है कि 1 पार्टियां इस पर क्या रुख अख्तियार करती हैं।
5 विधायक बाहरी
वर्तमान में रीवा में सभी सीटें भाजपा के पास हैं। वहीं जिले के 8 में से 5 विधायक उस विधानसभा क्षेत्र के बाहर के हैं। विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम खुद मनगवां के करौंदी गांव के हैं। पहला चुनाव वो यहीं से जीते थे। सीट आरक्षित होने के बाद वे देवतालाब सीट से चुनाव लड़े व लगातार तीन बार से जीत दर्ज कर रहे हैं। उनके खिलाफ हर चुनाव में बाहरी होना चुनावी मुद्दा बनाया जाता है लेकिन ऐसा करने वालों को सफलता अब तक नही मिली।
मनगंवा विधायक पंचूलाल प्रजापति रीवा के हैं। इसी तरह प्रदीप पटेल मनगंवा के देवास गांव के हैं व मऊगंज से विधायक चुने गए। दिव्यराज सिंह रीवा के हैं व सिरमौर सीट से विधायक बने। इसी तरह गुढ़ विधायक नागेंद्र सिंह का गृहग्राम भी जरहा है जो मनगंवा विधानसभा क्षेत्र में आता है, इसके बावजूद उन्होंने अपनी राजनीतिक कर्मस्थली के रूप में गुढ़ को चुना व चार बार इस सीट से विधायक बने। कुल मिलाकर वर्तमान समय मे पांच ऐसे विधायक चुनाव जीते हैं जो दूसरे विधानसभा क्षेत्रों के रहवासी हैं। इस तरह से स्पष्ट है कि रीवा में बाहरी व स्थानीय का मुद्दा चुनाव के समय लोगों के लिए कोई अहमियत नहीं रखता।
3 विधायक ही स्थानीय
जिले की सभी सीटों में केवल रीवा, त्योंथर व सेमरिया विधानसभा क्षेत्रों के विधायक ही स्थानीय रहवासी हैं। रीवा विधायक राजेन्द्र शुक्ल यहीं से विधायक हैं, हालांकि उनका पैतृक गृहग्राम मऊगंज के ढेरा में है लेकिन वो लम्बे समय से रीवा में रहते हैं, वे रीवा विधानसभा के वोटर भी हैं और जनता उन्हें स्थानीय ही मानती है। त्योंथर विधायक श्यामलाल द्विवेदी भी स्थानीय हैं उनका गृहग्राम कोनिकला है। विधायक केपी त्रिपाठी भी सेमरिया विधानसभा के हर्दी गांव के निवासी हैं और यहीं से चुनाव जीते। इस प्रकार रीवा जिले के 8 में से 3 विधायक स्थानीय हैं। बाकी 5 विधायक अपने अपन विधान सभा को छोड कर दूसरे विधान सभा क्षेत्र मे सेध लगा कर क्षेत्र की जनता को गुमराह कर चुके है लेकिन अब बात 2023 के चुनाव की है कि जनता इस बार स्थानीय विधायक का चुनाव करती है या बाहरी ये तो जनता के ऊपर है।