भारत-कनाडा राजनयिक विवाद: पीएम मोदी के लिए क्या कुछ है दांव पर
भारत और कनाडा के बीच चल रहा राजनयिक विवाद जारी है. भारत पर गंभीर आरोप लगाने के बावजूद कनाडा ने अभी तक कोई भी पुख़्ता सबूत न भारत से साझा किए हैं और न ही सार्वजानिक किए हैं.
जब से ये मामला शुरू हुआ है तब से कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो चर्चा में रहे हैं.
कनाडा में लोकप्रियता रेटिंग में पिछड़ रहे ट्रूडो के बारे में कहा जा रहा है कि निज्जर की हत्या का मामला उठाने के पीछे की वजहें उनकी घरेलू राजनीति से जुड़ी हुई हैं.
याद रहे कि जस्टिन ट्रूडो के सहयोगी एनडीपी नेता जगमीत सिंह हैं जो खालिस्तान समर्थक हैं और इसी वजह से ट्रूडो के खालिस्तानी अलगाववादियों के प्रति रुख़ को नरम माना जाता है.
राजनयिक विवाद के चलते भारत ने इस बात को भी उठाया है कि भारत में वॉन्टेड लोगों को कनाडा में पनाह मिलती रही है और कनाडा ने इन अपराधियों की ख़िलाफ़ न कोई कार्रवाई की है और न ही उनके प्रत्यर्पण में कोई मदद. जहां सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि ट्रूडो का अगला क़दम क्या होगा, वहीं ये समझना भी दिलचस्प होगा कि दोनों देशों के बीच के इस विवाद के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए क्या दांव पर है.
जानकारों की मानें तो कनाडा के साथ विवाद के चलते प्रधानमंत्री मोदी की नज़र इस बात पर ज़रूर होगी कि इस घटनाक्रम को देश के भीतर किस तरह से देखा जाएगा.
साल 2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार में भारतीय जनता पार्टी ने पाकिस्तान के बालाकोट में फरवरी 2019 में की गई भारतीय वायु सेना की कार्रवाई का कई बार ज़िक्र किया.
विश्लेषक मानते हैं कि इसका फ़ायदा भी पार्टी को मिला. तो क्या कनाडा से चल रहे विवाद की वजह से भी उसी तरह की स्थिति पैदा हो सकती है?
यहां ये याद रखना ज़रूरी है कि भारत ने कनाडा के आरोपों को सिरे से ख़ारिज किया है लेकिन अनौपचारिक स्तर पर चर्चाओं के बाज़ार गरम हैं कि क्या वाक़ई भारतीय एजेंटों ने कनाडा की ज़मीन पर ऐसी कार्रवाई को सरअंजाम दिया होगा.
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नीलांजन मुखोपाध्याय एक लेखक और राजनीतिक विश्लेषक हैं जिन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रमुख हस्तियों जैसे विषयों पर किताबें लिखी हैं.
वे कहते हैं, “प्रधानमंत्री मोदी की नज़र सत्ता में वापसी की संभावनाओं को ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ाने पर है. इसलिए वो विदेशों से संबंधों के बारे में चिंतित नहीं होंगे. मुझे लगता है कि चीज़ें उतनी सहज नहीं हैं जितनी इस साल जनवरी में दिख रही थीं. मोदी के पास वापसी की संभावनाओं को लेकर चिंतित होने के कारण होंगे और इसी पर उनका ध्यान होगा.”
वे कहते हैं कि साल 2019 वाली “घर में घुस के मारा” वाली बात का इस बार व्यापक रूप से प्रचार करना प्रधानमंत्री मोदी के लिए मुश्किल होने वाला है. “भारत ये नहीं कह सकता उसने कनाडा में घुस के मारा. ये बात सार्वजनिक मंचों से नहीं की जा सकती. आप इसे बंद दरवाजे के भीतर कह सकते हैं.”
मुखोपाध्याय मानते हैं कि इस पूरे घटनाक्रम के चलते सरकार “घर में घुस के मारा” की बात के ज़रिये देश में एक मर्दाना छवि दर्शाने और जताने की कोशिश करेगी कि अब भारत के एजेंट अब पश्चिमी देशों में भी इस तरह की कार्रवाइयां कर रहे हैं.