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विश्व में केवल भारतीय संस्कृति ही जीवित है श्री स्वामी समर्थ प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित कार्यक्रम में स्वामी गोविंद देव गिरि महाराज के विचार:

विश्व में केवल भारतीय संस्कृति ही जीवित है
श्री स्वामी समर्थ प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित कार्यक्रम में स्वामी गोविंद देव गिरि महाराज के विचार:
विश्वधर्मी डाॅ. विश्वनाथ दा. कराड को ‘श्री स्वामी समर्थ औंध पुरस्कार 2024’ से सम्मानित किया गया

पुणे : “आज विश्व में केवल भारतीय संस्कृति ही जीवित है. विश्व की कुल 48 संस्कृतियों में से 47 समय के साथ नष्ट हो गई हैं. भारतीय संस्कृति में ज्ञान, अध्यात्म और परंपरा का समावेश है. इसीलिए राम मंदिर का निर्माण  5 शताब्दियों के बाद अयोध्या में हुआ हैं .आजादी के अमृत महोत्सव  वर्ष के 25 साल बाद यह देश के लिए उत्थान का समय होगा.’ ऐसे विचार राम जन्मभूमि तीर्थ स्थल निर्माण समिति के कोषाध्यक्ष पूज्य स्वामी गोविंददेव गिरिजी महाराज ने व्यक्त किये.
श्री स्वामी समर्थ प्रतिष्ठान, औंध की ओर से आध्यात्मिक सप्ताह का आयोजन किया गया. इस मौके पर वह मुख्य अतिथि के तौर पर बोल रहे थे. इस अवसर पर एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष विश्वधर्मी प्रो.डॉ. विश्वनाथ दा. कराड सम्मानित अतिथि के रूप में उपस्थित थे. साथ ही श्री स्वामी समर्थ प्रतिष्ठान के संस्थापक अध्यक्ष एड. श्रीकांत पाटील उपस्थित थे.
इस अवसर पर एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष प्रो. डाॅ. विश्वनाथ दा. कराड को स्वामी गोविंदगिरि महाराज द्वारा ‘श्री स्वामी समर्थ औंध पुरस्कार 2024’ से सम्मानित किया गया, जिन्होंने उन्हें सम्मान पत्र, एक शॉल और एक पुणेरी पगड़ी भेंट की.
स्वामी गोविंद गिरी महाराज ने कहा, ”यदि मानवतावादी शिक्षा हो तो वह दुख का कारण बन जाती है. इसीलिए डॉ. विश्वनाथ कराड ने शिक्षा से अध्यात्म की ओर बढ़ने का साहस दिखाया है. उन्होंने एक ऐसे विश्वविद्यालय की स्थापना की है जो मनुष्य का निर्माण करता है. जिसे कभी नहीं भुलाया जाएगा.
“वर्तमान समय में संतों का सम्मान बढ़ रहा है. स्वामी समर्थ, साईंबाबा, गजानन महाराज, गुलाबराव महाराज जैसे संतों की इस रचना पर देश का भविष्य उज्ज्वल होगा. अब यह देश आगे छलांग लगाने वाला साबित हो रहा है.
डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने कहा, “जो समाज का भला करता है उसे संत कहा जाता है और जो खुद पर नियंत्रण रखता है उसे स्वामी कहा जाता है. आज संतोने और स्वामी ने भारतीय संस्कृति और परंपरा को संरक्षित किया है. आलंदी ज्ञान की भूमि है और यहां से पूरी दुनिया को ज्ञान मिलेगा. साथ ही स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, 21वीं सदी में भारत ज्ञान के भूमि के रूप में उभरेगा.
एड. श्रीकांत पाटिल ने प्रस्तावना रखी. संग्राम मुरकुटे ने स्वामी आराधना के बारे में जानकारी दी. अनुराधा जोशी ने भी अतिथि का परिचय दिया और स्वागत भाषण दिया.
संचालन गंधाली भिड़े ने किया. नानाजी चोंडे ने आभार माना.

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