काव्य पथ: 3
कई दिनों के बाद आप सबसे रूबरू हो रहा हूँ ।
सच पूछो तो
दुखी हूँ मैं इस भयंकर बीमारी से ,
उससे ज्यादा दर्द हो रहा प्रशासन की लाचारी पे ।
सच पूछो तो दुखी हूँ मैं ।
मुल्ला, पादरी , पंडित और पुजारी से ,
कहाँ गया तो तंत्र मंत्र
जो बचा सके न बीमारी से।।
सच पूछो तो दुखी हूँ मैं ।
वैध ,डॉक्टर , नीम ,फकीरी से ।
मंदिर ,मस्जिद, के नाम पर लूटे ।
मौलवी , फादर, की पाखंड ,
भरी अमीरी से ।
सच पूछो तो दुखी हूँ मैं ।
टूटते , जुड़ते नातों से ,
मरने वाले तो कब के मुये है।
तकलीफ है जिन्दा लाशों से ।
सच पूछो तो दुखी हूँ मैं ।
प्रशासन की खोखली ब्यवस्था से
चाट रहे है जन जन को ये
मैली कुचैली, बुद्धिमत्ता से ।
सच पूछो तो दुखी हूँ मैं ।।
पत्थर जैसे इंसानो से ,
मानव रूप में छुपे हुए
मानवतावादी हैवानो से ।
मरघट पर देखो अम्बार लगा है
हर जगह पर हाहाकार मचा है
दिल का खण्ड खण्ड हो रहा
चापलूसी इंसानो से ।
सच पूछो तो दुखी हूँ मैं ।।
कवि: कलावती नंदन