‘माँ’ को अनुभव करना होगाः डॉश्रीपाल सबनीस। एमआईटी में लेखिका स्व.उर्मिला विश्वनाथ कराड द्वारा लिखित तीन पुस्तकों का विमोचनको अनुभव करना होगाः डॉ. श्रीपाल सबनीस
पुणे: “ एक माँ को पढना इतना आसान नहीं है, जितना बच्चे जानते है. उसे इसका अनुभव करना पडता है. उसके पास संस्कृति की महिमा है. इस महिमा के आधार पर वह बच्चों के चरित्र का निर्माण करती है. उसका योगदान और समर्पण इन बातों पर मानव का अस्तित्व है. मॉ की महिमा को शब्दों में बया नहीं कर सकते है. ऐसे भावुक विचार ८९वें मराठी साहित्य सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. श्रीपाल सबनीस ने व्यक्त किये.
शब्दाई प्रकाशनद्वारा लेखिका स्व. डॉ. उर्मिला विश्वनाथ कराड द्वारा लिखित तीन पुस्तकें ‘कृतज्ञ मी कृतार्थ मी’, ‘कीर्तनपुष्प’ और ‘समीर’ का विमोचन डॉ. सबनीस के हाथों किया गया. इस समय वे बतौर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे.
इस अवसर पर प्रसिद्ध कवि प्रो. इंद्रजीत भालेराव मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे. साथ ही महाराष्ट्र वैधानिक विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ विद्वान उल्हास पवार अध्यक्ष के रूप में उपस्थित थे.
साथ ही माईर्स एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष विश्वधर्मी प्रो. डॉ. विश्वनाथ दा. कराड, डब्ल्यूपीयू के कार्यकारी अध्यक्ष राहुल विश्वनाथ कराड, एमआईटी एडीटी के कार्यकारी अध्यक्ष प्रो.डॉ. मंगेश तु. कराड, माइर्स एमआईटी की ट्रस्टी पुनम आबासाहेब नागरगोजे, ट्रस्टी प्रो. ज्योति अविनाश ढाकने और शब्दाई प्रकाशन संस्थापक प्रो.वी.डी. पिंगले उपस्थित थे.
डॉ. श्रीपाल सबनीस ने कहा, साहित्यिक स्व.उर्मिला विश्वनाथ कराड के योगदान और समर्पण ने एमआईटी को उंचा उठाया है. उनमें संस्कार की विवेकशीलता थी. उन्होंने पूरे परिवार का नहीं बल्कि विश्व शांति का इतिहास रचा है. वह कंधे से कंधा मिलाकर खडी हैं. वह विश्व शांति स्थापित करने में डॉ. कराड के साथ खडी थी.
उल्हास पवार ने कहा, शब्द शक्ति से परिपूर्ण स्व. श्रीमती उर्मिला कराड ने जीवनभर विनम्रता औा सहनशीलता बनाए रखी. विज्ञान के युग में उनके परिवार ने आधुनिकता को परंपरा के साथ जोडा. उनमें संस्कार की महिमा थी.
राहुल विश्वनाथ कराड ने कहा, वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा मेरे माता पिता ने हमारे घर में स्थापित की थी. मेरी माँ कराड परिवार का गहना थी. उनका अस्तित्व दिल में बसा हुआ है. वह उच्च शिक्षित थी और हर चीज के बारे में गहराई से सोचती थी और इसे शब्दों में उतारती थी. आज उनकी किताबे प्रकाशित करना खुशी की बात है.
इंद्रजीत भालेराव ने कहा, गांव और वहां के माहौल को लगातार अपनी लेखनी से शब्दों में पिरोने वाली लेखिका उर्मिला ताई बेहद भावुक थी, उन्होंने कराड परिवार की पूरी नई पीढ़ी को शिक्षित किया है. आज यह संस्था अस्तित्व में आ गई है, जिसका आधार वहीं है.
प्रो. डॉ. मंगेश तु. कराड, डॉ. संजय उपाध्ये और योगेश पाटिल ने स्व. उर्मिला कराड की पुरानी यादों को ताजा किया. इसके बाद डॉ. माधवी वैद्य के संदेश को पढा गया.
प्रकाशक वि.दा. पिंगले ने परिचय दिया.सूत्रसंचालन डॉ. प्रतिमा जगताप ने किया. प्रा.ज्योति ढाकने ने आभार माना.