गोरखनाथ मंदिर में आयोजित श्रीरामकथा के विश्राम और गुरु पुर्णिमा महोत्सव में वोले मुख्यमंत्री एवं गोरक्षपीठाधीश्वरः– सीएम योगी आदित्यनाथ
लोक और राष्ट्र कल्याण से जुड़ी है भारत की ऋषि परंपराः- योगी
लोक व राष्ट्र कल्याण के लिए अहर्निश कार्य करती है गोरक्षपीठ योगी आदित्यनाथ बोले-भारतीय संस्कृति दुनिया में सबसे प्राचीन और समृद्ध से चल रही श्रीरामकथा के विश्राम सत्र और गुरु पूर्णिमा महोत्सव को संबंधित कर रहे थे। गौरवपीठ के ब्रह्मलीन महतद्रय दिग्विजयनाथ जी महाराज एवं महत अवेचयन जी महाराज के चित्र पर पुष्पार्थन करने तथा व्यासपीठ को पूजन करने के उपरांत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि सनातन संस्कृति में ऋषि के साथ गोत्र की परंपरा भी साथ में चलती है। जब गोत्र की बात होती है तो जाति भेद समास ही जाता है। हर गोक किसी न किसी अपि से जुनी है और ऋषि परंपरा जाति, आहूत या अश्पृश्यता का भेदभाव नहीं रसखाती है। एक ऋषि के गोत्र को कई जातियों के लोग अनुसरित करते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि भारतीय संस्कृति दुनिया में सर्वाधिक और समद्ध और प्राचीन है और सनातन पर्व
त्यौहार इसके उदाहरण हैं। ये पर्व-त्योहार भारत की और सनातन धर्मावलचियों को इतिहास की किसी न किसी कड़ी से जोड़ते है। सीएम योगी ने कहा कि गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। पर मही कृष्णद्वैपायन व्यास जयंती है जिनको कृया में वैदिक साहित्य प्रास हुए हैं। जिन्होंने वेदों पुराणों और अनेक महत्वपूर्ण शब्दों को उपलब्ध कराया है। उन्होंने कहा कि 5000 वर्ष पहले महर्षि व्यास इस धराधाम पर थे। बुरा उस कालखंड में उन्होंने कई पीड़ितों का प्रतिनिधि कि अनेक ग्रंथों की रचना कर लोग उसे वर्तमान पीढ़ी के मार्गदर्शन के लिए भी वहा अनुकूल बना दिया। भारत के अलावा 5000 का वर्ष कर इतिहास दुनिया में किसी के पास नही है। वर्तमान समय द्वापर और कलयुग का एवं है।
राष्ट्र के लिए समर्पित होना चाहिए। ऐसा करके हो हम गुरु परंपरा के प्रति कृतज्ञ व्यक्त कर सकते हैं। गोरक्षपीठ भी उसी मुगुरु परंपरा की पीठ है जो अहर्निश लोक कल्याण और राष्ट्र कल्याण के लिए कार्य कर रही है। सीएम योगी रविवार को गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर गौरखा मंदिर के महंत दिविजयनाथ स्मृति भवन में विगत 15 जुलाई को
गोरखपुर गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भारत की सनातन ऋषि परंपरा व गुरु परंपरा लीक और राष्ट्र कल्याण की परंपरा है। यह परंपरा हमें इस बात के लिए प्रेरित करती है कि हमारे जीवन का एक-एक कर्म एक-एक वर्ष सनातन के लिए, और समाज के लिए कीमती है।