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कोरोना मरीजों की जान बचाने के लिये डॉ. पटेल ने स्वयं फिट किये वेंटिलेटर स्वयं कोरोना पीडि़त हुए, पत्नी को मायके भेजकर लगातार डयूटी की डॉ. पटेल ने

कोरोना मरीजों की जान बचाने के लिये डॉ. पटेल ने स्वयं फिट किये वेंटिलेटर
स्वयं कोरोना पीडि़त हुए, पत्नी को मायके भेजकर लगातार डयूटी की डॉ. पटेल ने

रीवा (मध्य प्रदेश)वि.स.प्रतिनिधी:
कोरोना की दूसरी लहर ने आमजनता के साथ-साथ डॉक्टरों के बनोबल और आत्मविश्वास की कड़ी परीक्षा ली। कोरोना संकट में श्यामशाह मेडिकल कालेज में पदस्थ सहायक प्राध्यापक मेडिसिन डॉ. राकेश पटेल ने लगातार 57 दिन कोरोना गंभीर रोगी वार्ड में ड¬ूटी की। इसमें 46 दिन तक लगातार आईसीयू में रोगियों के उपचार का कठिन कार्य किया। प्रतिदिन अपने सामने कोरोना पीडि़तों को दम तोड़ते हुये देखकर भी डॉ. पटेल अपने ऊंचे मनोबल के साथ रोगियों की सेवा में डटे रहे। रोगियों का उपचार करते हुए स्वयं कोरोना संक्रमित हुए। उनके पिताजी भी कोरोना की चपेट में आये। डॉ. पटेल ने पत्नी तथा बच्चों को दो माह के लिये अपनी ससुराल भेज दिया। स्वयं बीमार होने के बावजूद रोगियों के उपचार में डटे रहे।
डॉ. राकेश पटेल संजय गांधी हास्पिटल में संभागीय वेंटिलेटर प्रभारी के रूप में कार्य कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अप्रैल माह में अचानक कोरोना के केस बढ़ने लगे। हास्पिटल में उपलब्ध 38 वेंटिलेटर में मात्र 14 काम कर रहे थे। तत्काल वेंटिलेटर लगाने वाली कंपनियों से संपर्क कर 7 दिन में 15 वेंटिलेटर सुधरवाये। इसी बीच पीएम केयर फंड से 20 वेंटिलेटर मिले। मैंने स्वयं इंजीनियरों के साथ मिलकर कई वेंटिलेटर तथा उनके सहायक उपकरण फिट किये। रोगियों के उपचार करने वाले हाथ वेंटिलेटर के नट वोल्ट कस रहे थे। मन में चिंता थी कि रोगी बढ़े तो वेंटिलेटर की सुविधा कैसे मिलेगी। हास्पिटल में एक माह में 14 से बढ़कर वेंटिलेटर की संख्या 72 हो गयी। नये वेंटिलेटर मंगाने तथा स्थापित कराने में कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी एवं अपर कलेक्टर इला तिवारी ने लगातार प्रयास किया। जिसके कारण सैकड़ों गंभीर कोविड रोगियों के प्राण बचाये जा सके।
डॉ. पटेल ने बताया कि संजय गांधी हास्पिटल को पूरी तरह कोविड हास्पिटल बना दिया गया। यहाँ एक माह में बेडों की संख्या 220 से 1170 हो गयी। हर समय लगभग 400 गंभीर कोरोना रोगी भर्ती रहे। अस्पताल में तीन तलों में आईसीयू संचालित था। सुबह सात बजे से देर रात तक लगातार काम करना पड़ता था। पीपीई किट में चार पांच घंटे काम कर उसे फेंककर 30 मिनट में दूसरा किट पहनकर हम वार्ड पहुंच जाते थे। अस्पताल के डॉक्टरों तथा नर्सों ने समर्पण भाव से कार्य किया। कई रोगी तो 65 दिन तक आईसीयू में भर्ती रहे और ठीक होकर घर गये। लेकिन इस बात का दुख है कि कोरोना ने कई जिंदगियां छीन ली। जो रोगी देर से अस्पताल पहुंचे उन्हें बचाना बहुत कठिन था।
अस्पताल में मई माह में एक दिन ऑक्सीजन का संकट आया। आईसीयू बेड और 72 वेंटिलेटर में भारी मात्रा में मेडिकल ऑक्सीजन की खपत थी। ऑक्सीजन टैंकर बोकारो झारखण्ड से आ रहा था। अगले दिन दोपहर एक बजे तक टैंकर पहुंचना था। हमारे लिए एक-एक पल भारी था। कलेक्टर सहित प्रशासनिक अधिकारियों ने लगातार प्रयास किया। हमारी टीम रात भर हास्पिटल में तैनात रही। जो रोगी ठीक थे उनका ऑक्सीजन फ्लो घटाया गया। कई रोगियों को लगातार समझाइश दी कि कुछ कम ऑक्सीजन मिलने से खतरा नहीं है लेकिन ऑक्सीजन समाप्त हो गई तो लगभग 100 रोगियों को जान गंवानी पड़ेगी। इससे सुबह तक 25 प्रतिशत ऑक्सीजन की बचत हुई। अब हमारे पास दोपहर 2 बजे तक के लिये ऑक्सीजन थी। ऑक्सीजन ट्रक को रीवा में प्रवेश करते ही ग्रीन कॉरिडोर बनाकर लाया गया। ट्रक दोपहर 12.15 बजे पहुंचा और तत्काल ऑक्सीजन मिल गई। रोगियों की ऑक्सीजन मिलने के साथ पूरे प्रशासन और मेडिकल स्टाफ को भी चैन की सांस मिली।

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