धर्म और विज्ञान के समन्वय से ही विश्व शांति आएगी आध्यात्मिक गुरू पं. विजयशंकर मेहता के विचार : एमआईटी डब्ल्यूपीयू में
२९वे दार्शनिक संत श्री ज्ञानेश्वर-तुकाराम स्मृती व्याख्यान श्रृंखला का उद्घाटन
पुणे : यदि घर में धर्म और विज्ञान का समन्वय हो तो हर कोई शांति का अनुभव कर सकता है. इस सूत्र को समाज में लागू किया जाए तो विश्व शांति स्थापित होने में देर नहीं लगेगी. साथ ही मुस्कुराहट बनाए रखने के क्रांतिकारी प्रयोग से हर किसी को चेहरे पर जीवन में शांति का अनुभव होगा. हर किसी को घर में प्रवेश करते समय अपने चेहरे पर मुस्कान रखने का संकल्प लेना चाहिए. ऐसे विचार उज्जैन के आध्यात्मिक गुरु एवं लेखक पं. विजयशंकर मेहता ने व्यक्त किए.
एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी, विश्वशांति केंद्र (आलंदी), माईर्स एमआईटी पुणे, भारत और संत श्री ज्ञानेश्वर संत श्री तुकाराम महाराज मेमोरियल लेक्चर सीरीज ट्रस्ट ने यूनेस्को के तत्वावधान में २४ से ३० नवंबर तक आयोजित किए २९वे दार्शनिक संत श्री ज्ञानेश्वर तुकाराम मेमोरियल लेक्चर सीरिज का उद्घाटन एमआईटी डब्ल्यूपीयू के संत श्री ज्ञानेश्वर सभागार में किया. इस मौके पर वे बतौर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे.
इस अवसर पर संत एकनाथ महाराज के १४वें वंशज हभप योगीराज महाराज गोसावी पैठणकर अतिथि के रूप में उपस्थित थे. साथ ही विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक पद्मभूषण डॉ. विजय भटकर सम्मानित अतिथि थे. अध्यक्षता एमआईटी डब्ल्यूपीयू के संस्थापक अध्यक्ष एवं यूनेस्को संकाय प्रमुख प्रो.डॉ. विश्वनाथ दा. कराड थे.
इसके अलावा एमआईटी डब्ल्यूपीयू के कार्यकारी अध्यक्ष राहुल वि.कराड, एमआईटी एडीटी यूनिवर्सिटी के कार्यकारी अध्यक्ष प्रो.डॉ. मंगेश तु. कराड, डब्ल्यूपीयू के कुलपति डॉ. आर.एम.चिटणीस एवं २९ वें दार्शनिक संत श्री ज्ञानेश्वर तुकाराम स्मृति व्याख्यानमाला के संयोजक एवं प्र कुलपति डॉ. मिलिंद पांडे मौजूद थे.
पं. विजयशंकर मेहता ने कहा, जीवन में चार तरह से अशांति आती है, धन, रिश्ते, खराब स्वास्थ्य और संतान. ऐसे समय में शांति के लिए जीवन को चार चरणों में बांटना चाहिए. व्यावसायिक जीवन में निष्काम रहना, सामाजिक प्रतिबद्धताओं को बनाए रखना, जीवन में परिवार को प्राथमिकता देना और खुद को शांत रखना. इससे ही परिवार, समाज और पूरे विश्व में शांति आ सकती है.
हभप योगीराज महाराज गोसावी पैठणकर ने कहा, भारतीय संस्कृति सर्वश्रेष्ठ है और वारकरी संप्रदाय ने दुनिया को शांति का मार्ग दिखाया है. आज के युग में अध्यात्म और विज्ञान को अलग अलग परिभाषित करना ठीक नहीं है. आत्म स्वरूप का चिंतन ही अध्यात्म है और यही सब में बसता है. वास्तव में विश्व को शांति की आवश्यकता है और यह विज्ञान के माध्यम से प्राप्त होगी, यदि व्यक्ति ज्ञान का सही ढंग से उपयोग करें.
डॉ. विजय भटकर ने कहा, वर्तमान समय में मनुष्य ने विज्ञान के आधार पर सब कुछ हासिल कर लिया है, लेकिन जीवन में सुख और शांति नहीं है. इसके लिए आध्यात्मिक और ज्ञान जरूरी है. सत्य की परिभाषा को जानना जरूरी है.
प्रो.डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने कहा, यह व्याख्यान श्रृंखला दार्शनिक संत श्री ज्ञानेश्वर माऊली और जगद्गुरू तुकारा महाराज के संदेश को मानव जाति तक पहुंचाने के मुख्य उद्देश्य से शुरू की गई है. यहां गुणों की पूजा ही भगवान की सच्ची पूजा है. मन और आत्मा के बारे में और अधिक सोचना चाहिए. जीवन का उद्देश्य और कर्तव्य क्या है, इसका बोध इसी से होता है.
डॉ. मंगेश तु. कराड ने कहा, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चीजें है और इनका पालन किया जाना चाहिए. देश के विकास को देखते हुए भारत तीसरी आर्थिक प्रणाली के रूप में उभर रहा है. ऐसे समय में यह देश इसका नेतृत्व करेगा. भविष्य में भारत विश्व गुरु बनेगा.
डॉ. आर.एम.चिटणीस ने स्वागत पर भाषण दिया.डॉ. मिलिंद पात्रे ने सूत्र संचालन किया.