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देश के सभी तीर्थ ज्ञान तीर्थ क्षेत्र बनें

देश के सभी तीर्थ ज्ञान तीर्थ क्षेत्र बनें

हभप यशोधन महाराज साखरे के विचारः आलंदी में वैश्विक सहिष्णुता सप्ताह का उद्घाटन

 

पुणे, : आलंदी ज्ञान की भूमि है. यह तीर्थ क्षेत्र मनुष्य को समुद्र के पार पारगमन की ओर ले जाती है. यही कारण है कि डॉ. विश्वनाथ कराड देश के सभी तीर्थों को ज्ञान का तीर्थ बनाने के लिए अथक प्रयास कर रहे है. वह सहिष्णुता के सच्चे प्रतिमान है. ऐसे विचार हभप यशोधन महाराज साखरे ने व्यक्त किये.

विश्वशांति केंद्र (आलंदी), माईर्स एमआईटी, पुणे, भारत तथा श्रीक्षेत्र आलंदी-देहू परिसर विकास समिति के संयुक्त तत्वावधान में ‘श्री संत ज्ञानेश्वर-तुकाराम ज्ञानतीर्थ’, विश्वरूप दर्शन मंच, श्रीक्षेत्र आलंदी में संत शिरोमणी दार्शनिक श्री ज्ञानेश्वर माऊली की ७२८ वी संजीवन समाधि के लोकप्रबोधन के अवसर पर आयोजित वैश्विक सहिष्णुता सप्ताह के उद्घाटन पर बतौर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे.

इस अवसर पर श्री क्षेत्र देहु नगर परिषद की नगराध्यक्ष पूजा दिवटे, आलंदी नगर परिषद के पूर्व नगराध्यक्ष सुरेश काका वडगांवकर, अशोक उमरगेकर, विठ्ठलराव कालोखे, बालासाहेब कालोखे और गणपतराव कुर्‍हाडे पाटिल मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता माईर्स एमआईटी के संस्थापक अध्यक्ष विश्वधर्मी प्रो.डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने निभाई.

साथ ही सुश्री उषा विश्वनाथ कराड, प्रसिद्ध लेखक डॉ. संजय उपाध्ये और नागपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ.एस.एम.पठाण उपस्थित थे.

हभप यशोधन महाराज साखरे ने कहा, सहिष्णुता व्यापक है और इसमें विश्व चिंतन शामिल है. इस कारण सभी तीर्थ क्षेत्रों को ज्ञान तीर्थ बनना चाहिए. समाज के अंतिम व्यक्ति तक ज्ञान पहुंचाने का काम करें. ज्ञान, ध्वनि, विज्ञान और ब्रह्म की अनुभूति यहां होती है. आलंदी के यहां घाट बनाने के लिए डॉ. कराड ने जो सहा वह सच्ची सहिष्णुता का एक नमूना है.

प्रो.डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने कहा, हम दुनिया के सभी तीर्थों को ज्ञान का तीर्थ बनाने की दिशा में काम कर रहे है. आलंदी, देहु, पंढरी से लेकर देवभूमि बद्रीनाथ तक किया गया काम माऊली की देन है. विनम्रता, आस्था, भक्ति और कर्म योग उन्ही का है. बद्रीनाथ में सरस्वती मंदिर के पास स्वर्गारोहण मार्ग बनकर नया इतिहास रचा गया है.

उसके बाद डॉ. संजय उपाध्ये, सुरेश काका वडगांवकर ने अपने विचार प्रस्तुत किये.

डॉ. सुदाम महाराज पानेगांवकर ने प्रस्तावना रखी. इसके बाद इंद्रायणी माता की आरती की गई.

हभप शालिकराम खंडारे ने संचालन किया और महेश महाराज नलावडै ने आभार माना.

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