बजट में परमाणु ऊर्जा पर ध्यान
सरकार ने यह महसूस किया है कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए देश के ऊर्जा स्रोतों में तत्काल विविधता लाने की जरूरत है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को बजट में वर्ष 2047 तक कम से कम 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता हासिल करने की घोषणा की है। वित्त मंत्री ने बजट भाषण में कहा कि देश में ‘स्वच्छ ऊर्जा की तरफ कदम बढ़ाने के लिए यह आवश्यक’ है। यह लक्ष्य हासिल करने के लिए परमाणु ऊर्जा मिशन के नाम से एक खास पहल की जाएगी जिसके लिए सरकार 20,000 करोड़ रुपये का प्रावधान करेगी। देर से ही सही मगर सरकार ने यह महसूस किया है कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए देश के ऊर्जा स्रोतों में तत्काल विविधता लाने की जरूरत है। शहरीकरण की प्रक्रिया तेज होने, ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युतीकरण के गति पकड़ने और गर्मी में तापमान अत्यधिक बढ़ने से पिछले एक दशक के दौरान देश में बिजली की मांग खासी बढ़ गई है। फिलहाल देश में बिजली की कुल मांग का 89 प्रतिशत हिस्सा जीवाश्म ईंधन से आ रहा है। ऊर्जा के दूसरे वैकल्पिक स्रोतों जैसे सौर और पवन ऊर्जा की राह में तकनीकी एवं मूल्य नीतियों से जुड़ी बाधाएं सामने आ रही हैं। बजट में घोषित इस मिशन के अंतर्गत 2033 तक पांच छोटे आकार के मॉड्यूलर रिएक्टर (एसएमआर) का परिचालन शुरू करने का लक्ष्य तय किया गया है। ये सभी उच्च क्षमता वाले रिएक्टर होंगे जिनकी बिजली उत्पादन क्षमता 300 मेगावॉट (ई) प्रति यूनिट या परंपरागत परमाणु बिजली संयंत्रों की उत्पादन क्षमता की एक तिहाई होगी। पिछले महीने अमेरिका ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र और इंडियन रेअर अर्थ्स लिमिटेड पर लगी पाबंदियां हटा दी थीं। भारत अमेरिका के इस कदम का तेजी से लाभ उठाना चाहता है।
भारत में वर्ष 2024 में 8.18 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा का उत्पादन हुआ था जो वर्ष 2014 में दर्ज 4.78 गीगावॉट उत्पादन के दोगुने से थोड़ा ही अधिक था। अगले 22 वर्षों में 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा का उत्पादन एक चुनौतीपूर्ण लक्ष्य है। सरकार एसएमआर में निजी क्षेत्र से निवेश पर निर्भर दिखाई दे रही है। निजी क्षेत्र पर निर्भरता इस बात से भी झलकती है कि सरकार नियंत्रित भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (एनपीसीआईएल) के लिए रकम का आवंटन वित्त वर्ष 2025-26 में 472 करोड़ रुपये घटा दिया गया है। सरकार ने परमाणु ऊर्जा विभाग का बजट भी 402 करोड़ रुपये कम कर दिया है। निजी क्षेत्र से निवेश स्वीकार करने की तत्परता दिखाने के लिए वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि सरकार परमाणु ऊर्जा अधिनियम और परमाणु क्षति के लिए नागरिक उत्तरदायित्व अधिनियम (सीएलएनडीए) में संशोधन करेगी। पहले कानून में संशोधन के बाद भारत में परमाणु ऊर्जा उत्पादन में एनपीसीआईएल का बोलबाला खत्म हो जाएगा। संभव है कि सरकार उस शर्त का समाधान निकालने की कोशिश करेगी जिससे भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के बाद दुनिया में निजी क्षेत्र की परमाणु ऊर्जा कंपनियां निवेश के लिए आगे नहीं आ रही हैं। इस समझौते के अंतर्गत किसी परमाणु दुर्घटना से हुए नुकसान की सूरत में आपूर्तिकर्ताओं और परिचालनकर्ताओं की जवाबदेही तय की गई थी।
एसएमआर तकनीक अपेक्षाकृत नई जरूर है मगर भारत छोटे रिएक्टर तैयार करने और इनका परिचालन करने में अपनी क्षमता की बखूबी नुमाइश कर चुका है। देश में स्थानीय स्तर पर तैयार एवं परिचालन करने वाले 22 परमाणु रिएक्टरों में से ज्यादातर की क्षमता रेटिंग 220 मेगावॉट (ई) है। भारत को परमाणु ऊर्जा से संचालित अपनी पनडुब्बी के लिए 85 एमडब्ल्यूई संयंत्र तैयार करने का भी अनुभव है। परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत डिजाइन टीम एक मॉड्यूलर संयंत्र प्रक्रिया में देश के इस अनुभव का लाभ उठाने में जुटा हुई है। इससे निजी क्षेत्र की इकाइयों के साथ तकनीक साझा करने की संभावनाएं मजबूत हो रही हैं। रिएक्टर तेजी से स्थापित करने, लागत में कमी, सुरक्षा चाक-चौबंद रखने की ताकत और रिएक्टरों की स्थापना में लचीलापन जैसी खूबियां होने के बावजूद कई दूसरी तरह की बाधाएं एसएमआर से जुड़ी भारत की महत्त्वाकांक्षाओं की राह में अवरोध पैदा कर सकती हैं। इन बाधाओं में लाइसेंस देने की मौजूदा व्यवस्था और ग्रिड-पावर प्राइसिंग का पुराना झमेला भी शामिल हैं। ग्रिड-पावर प्राइसिंग की दिक्कत तीन दशकों से अधिक समय से बिजली उत्पादन इकाइयों को चोट पहुंचा रही है। अधिकांश विश्लेषकों को लगता है कि अगले 22 वर्षों में 100 गीगावॉट परमाणु बिजली क्षमता के विकास उत्पादन का लक्ष्य हासिल करना कठिन होगा।