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मिशन-2027 की तैयारी बीजेपी यूपी में नया चेहरा लाने की तैयारी

मिशन-2027 की तैयारी बीजेपी यूपी में नया चेहरा लाने की तैयारी

अजय कुमार,लखनऊ

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव भले ही दो साल बाद होने वाले हों, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने अभी से अपनी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। 2024 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सीटों में आई कमी ने पार्टी नेतृत्व को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर राज्य में जनाधार कैसे मजबूत किया जाए और 2027 में सत्ता की हैट्रिक कैसे बनाई जाए। इसी को ध्यान में रखते हुए बीजेपी संगठन में बड़े बदलाव की तैयारी कर रही है। हाल ही में 70 जिला और महानगर अध्यक्षों के नामों की घोषणा के बाद अब प्रदेश अध्यक्ष के चयन पर मंथन शुरू हो चुका है। पार्टी मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी की जगह ऐसे चेहरे की तलाश कर रही है, जो न केवल संगठन को मजबूत कर सके, बल्कि 2027 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत की राह भी आसान बना सके।

बीजेपी के संविधान के अनुसार, प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव तब किया जा सकता है जब 50 प्रतिशत से अधिक जिलाध्यक्षों की नियुक्ति हो चुकी हो। इस बार 71 प्रतिशत से अधिक जिलाध्यक्षों की नियुक्ति हो चुकी है, जिससे प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव का रास्ता साफ हो गया है। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल को उत्तर प्रदेश में अध्यक्ष चुनाव के लिए चुनाव अधिकारी बनाया गया है और वे जल्द ही लखनऊ का दौरा कर सकते हैं। पार्टी का पूरा ध्यान ऐसे नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाने पर है, जो पार्टी संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत करने के साथ ही केंद्र और राज्य सरकार के बीच बेहतर तालमेल स्थापित कर सके।

 

उत्तर प्रदेश की सियासी तस्वीर को देखें तो बीजेपी ने 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव ओबीसी वर्ग से आने वाले नेताओं की अगुवाई में लड़े थे। 2017 में केशव प्रसाद मौर्य और 2022 में स्वतंत्र देव सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था और दोनों चुनावों में पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला था। इसी वजह से माना जा रहा है कि इस बार भी पार्टी किसी ओबीसी या ब्राह्मण चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष बना सकती है। यह इसलिए भी जरूरी हो गया है क्योंकि लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) गठजोड़ के सहारे बीजेपी को तगड़ी चुनौती दी थी और कई सीटों पर बढ़त हासिल की थी।

 

उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरण का राजनीति पर गहरा असर पड़ता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ठाकुर समुदाय से आते हैं और पूर्वांचल में उनकी गहरी पकड़ है। ऐसे में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के रूप में किसी अन्य जातीय समूह के नेता को सामने लाकर संतुलन बनाने की कोशिश करेगी। चर्चा में आए संभावित नामों में पशुपालन मंत्री धर्मपाल सिंह, केंद्रीय राज्य मंत्री बीएल वर्मा, जलशक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, पूर्व सांसद हरीश द्विवेदी और पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा शामिल हैं। इनमें से धर्मपाल सिंह और बीएल वर्मा ओबीसी समुदाय से आते हैं, जबकि दिनेश शर्मा ब्राह्मण समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं।

 

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष का चयन सिर्फ जातीय समीकरण तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें संगठनात्मक कुशलता भी एक महत्वपूर्ण कारक है। 2027 का चुनाव बीजेपी के लिए बेहद अहम है, क्योंकि पार्टी को लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के लिए विपक्ष के मजबूत गठबंधन से मुकाबला करना होगा। समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल राज्य में बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में पार्टी को ऐसे प्रदेश अध्यक्ष की जरूरत है, जो चुनावी रणनीति को सही दिशा में ले जा सके और पार्टी कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर सके।

 

प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ऐसा चेहरा तलाशा जा रहा है, जो सरकार और संगठन के बीच संतुलन बनाए रख सके। पिछले कुछ वर्षों में संगठन और सरकार के बीच सामंजस्य को लेकर कई बार सवाल उठे हैं। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी कई बार यह बयान दिया कि संगठन सरकार से बड़ा है और कार्यकर्ताओं की आवाज सुनी जानी चाहिए। कार्यकर्ताओं के बीच यह धारणा बनी थी कि योगी सरकार में उनकी सुनवाई कम हो रही है और नौकरशाही का दखल बढ़ गया है। ऐसे में बीजेपी को ऐसे नेता की जरूरत है, जो न केवल संगठन को मजबूत करे, बल्कि सरकार और संगठन के बीच किसी भी तरह के टकराव को भी रोके।

 

प्रदेश अध्यक्ष के चयन में दिल्ली और लखनऊ के बीच संतुलन भी एक महत्वपूर्ण कारक है। बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व चाहता है कि प्रदेश अध्यक्ष ऐसा हो, जो केंद्रीय नेतृत्व के निर्देशों को समझे और उन पर अमल करे, लेकिन साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ भी अच्छे तालमेल के साथ काम करे। इससे पहले स्वतंत्र देव सिंह को प्रदेश अध्यक्ष इसलिए बनाया गया था क्योंकि उनका योगी सरकार के साथ अच्छा तालमेल था। लेकिन भूपेंद्र चौधरी के कार्यकाल में संगठन और सरकार के बीच सामंजस्य को लेकर कई बार सवाल उठे। इसीलिए नए प्रदेश अध्यक्ष के रूप में किसी ऐसे नेता की तलाश की जा रही है, जो सत्ता और संगठन के बीच बेहतर तालमेल बिठा सके और कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर सके।

 

बीजेपी के रणनीतिकारों का मानना है कि 2027 के चुनाव में पार्टी को नए तरीके से रणनीति बनानी होगी। 2017 और 2022 में पार्टी ने विकास और हिंदुत्व के मुद्दे को लेकर चुनाव लड़ा था, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को झटका लगा क्योंकि विपक्ष ने जातीय समीकरणों को अपने पक्ष में कर लिया था। ऐसे में 2027 के चुनाव में बीजेपी को सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखते हुए काम करना होगा। इसके लिए प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होगी, क्योंकि वही चुनावी रणनीति को जमीन पर लागू कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

 

प्रदेश अध्यक्ष का एक और महत्वपूर्ण दायित्व उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया को सुचारू बनाना होगा। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान टिकट बंटवारे को लेकर अक्सर असंतोष देखने को मिलता है। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी कई सीटों पर गलत उम्मीदवारों के चयन की वजह से पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा था। ऐसे में बीजेपी को ऐसा प्रदेश अध्यक्ष चाहिए, जो न केवल मजबूत संगठनकर्ता हो, बल्कि टिकट बंटवारे में भी निष्पक्षता और संतुलन बनाए रख सके।

 

प्रदेश अध्यक्ष के चयन के बाद बीजेपी पूरी तरह से मिशन-2027 में जुट जाएगी। पार्टी का मुख्य लक्ष्य अपने कोर वोट बैंक को मजबूत करने के साथ ही नए वोटरों को भी जोड़ना होगा। इसके लिए बूथ स्तर तक संगठन को मजबूत करना पड़ेगा और जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं को सक्रिय करना होगा। बीजेपी की कोशिश है कि नया प्रदेश अध्यक्ष ऐसा हो, जो पूरी ऊर्जा के साथ पार्टी को चुनावी मोड में ला सके और कार्यकर्ताओं को जीत के लिए प्रेरित कर सके।

 

अभी तक बीजेपी के भीतर इस मुद्दे पर गहन मंथन चल रहा है और जल्द ही नए प्रदेश अध्यक्ष के नाम की घोषणा हो सकती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी किस चेहरे पर दांव लगाती है और वह चेहरा पार्टी को 2027 में सत्ता की हैट्रिक दिलाने में कितना सफल होता

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