ऐ राही तेरे मन पर तेरा मंजिल है
ए राही तू मन काहे को भटका रहा है तू जिस रास्ते पर चल रहा है मंजिल जरूर मिल जाएगी नियत और नियति से मिलाकर चल तू औरों को क्यों अपने तुला पर तोल रहा है यह तेरा तुला है भार भी तेरा है कर्म की ए राही काहे को मन मटका रहा है तू अलग है मानव से भिन्न है तू है तु भी मानव पर सब मानव एक जैसे नहीं कुछ कुछ चल रहे हैं सत्य की राह पर कुछ का राह डगमगा गए हैं कुछ की राहें मंजिल से बिछड़ गई है ऐ राही तेरा मंजिल तुझे तेरे सपनों में आकर बुला रहा है तू चल चला चल अपने सत्य के मार्ग पर तू धर्म को अपना कर्म बना ले मंजिल खुद ब खुद मिल जाएगी रास्ते न भटक तू ए मोह माया की नगरी के चक्कर में जब समय निकल जाता है फिर माता पटके से कुछ ना होत ए राही अभी समय है तू कर ले कुछ कर्म खाली हाथ तू इस मोह माया की नगरी में आया है यहां के सारे मोहमाया यही छूट जाएगा साथ जाना है उसे जतन कर ले कुछ अपना कर्म कर ले अपनी धर्म के मार्ग पर चल समय है अभी भी डगमगा ना तू सत्य की राह पर चलने से अभी भी वक्त है अपने आप को संभाल ले श्रीकृष्ण की राह को अपना ले दूसरे के तुला पर ना तोल खुद को तेरे बराबर यहां कोई नहीं तेरा मंजिल खुद तू चुन ले पकड़ ले समय को धर्म-कर्म को अपने गले लगा ले हे मानव तू अपने राह को पहचान ले धर्म की राह को अपना बना ले ए राही तु अपने कर्म को पहचान ले अपने कर्म को अपने गले लगा ले ए राही तेरे मन में तेरा मंजिल है तू अपने आप को पहचान ले खुद को खुद से गले लगा ले सत्य धर्म कर्म को अपना ले
द्रवीण कुमार चौहान
जिला बहराइच
उत्तर प्रदेश
भारत
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