*खुद की खामियां आजकल हर किसे क्यों स्वीकार नहीं है..!*
*हम बराबर कसूरवार हैं जमाना सारा गुनाहगार नहीं है..!*
*हर कोई तनिक ख़ुद में झांके हम कितने पानी में है जरा मापे..!*
*औरों से तो वफ़ा की उम्मीद पर आदमी क्यों वफादार नहीं है..!*
*गुलों की चाहत रखता आज हर कोई कांटो के बाग लगाकर..!*
*जो बोया वही तो मिलेगा इसमें गुलशन जवाबदार नहीं है..!*
*जिन कश्तियों में छेद होते उन्हें कभी भी साहिल नहीं मिलते..!*
*बिना सोचे ही समंदर में उतरे कश्ती यूं ही मझधार नहीं है..!*
*मेरी हर रचना अनुभव को ठोकरो की भट्टी पर पकती है..!*