*बड़ा नादान है वह जो हर आदमी में इंसान ढूंढता है..!*
*बेईमानों की बस्ती में देखो तो वह ईमान ढूंढता है..!*
*गुजर गए वो जमाने जब बुजुर्गों से आंगन गुलजार थे..!*
*आज ये शख्सियत नहीं दिखती है क्यों वो मकान ढूंढता है..!*
*गरज हो तो गूंगे बोल पड़ते हैं अंधे को दिखने लगता है..!*
*बिन गरज कौन अपना होता क्यों सच्चे कद्रदान ढूंढता है..!*
*नफरतों का कोई भी काम ना हो मोहब्बत की बरसात हो..!*
*ऐसा जहान मिलेगा नहीं फ़िर भी दिल वो जहान ढूंढता है..!*
सुधा भदौरिया
लेखिका विशाल समाचार
ग्वालियर मध्यप्रदेश