*ज़माने वाले देखो तो आज कैसी अजब बीमारी रखते हैं..!*
*खानदान पत्थरों का है फ़िर भी शीशे से यारी रखते हैं..!*
*वादा रोशनी का करके अंधेरे थमा देते हैं हर हाथ में..!*
*सियासतदार आवाम से कुछ इस तरह वफादारी रखते हैं..!*
*भूल जा वो लौट के नहीं आएगा गरज निकल गई उसकी..!*
*ज़रूरत के हिसाब से मिलते सब बड़ी समझदारी रखते हैं..!*
*वो जो कभी कहते रहते थे की तू मेरी ज़िंदगी का हिस्सा है..!*
*आज वही मेरी बर्बादी की करके बड़ी तैयारी रखते हैं..!*
*दिल की दीवारों से मिटा दिए वो नाम जो काबिल न रहे..!*
*बस चंद नाम लिखे हैं जो कि ख़ुद में खुद्दारी रखते हैं..!*