पूणे

ओशो विचार खत्म करने वालों के खिलाफ लड़ाई जारी ओशो अनुयायियों का दृढ़ संकल्प; ओशो रिसॉर्ट में आयोजित मानसून महोत्सव में किए गए प्रदर्शन

ओशो विचार खत्म करने वालों के खिलाफ लड़ाई जारी
ओशो अनुयायियों का दृढ़ संकल्प; ओशो रिसॉर्ट में आयोजित मानसून महोत्सव में किए गए प्रदर्शन

पुणे: जहां एक तरफ भारत की आजादी का अमृतमहोत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है, वही दूसरी तरफ ओशो के अनुयायी उन लोगों के खिलाफ लड़ाई जारी रखने के लिए दृढ़ हैं, जो ओशो के विचार को खत्म करना चाहते हैं। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ओशो आश्रम में आयोजित मानसून महोत्सव के दौरान अनुयायिओं ने पत्रक पर्चे बांटकर इस विवाद के प्रति जागरूक किया। ओशो आश्रम का रिसॉर्ट बनाने की कोशिश की जा रही है, इसे रोकने और ओशो के विचारों को बनाए रखने के लिए हमें साथ आना चाहिए ऐसे ओशों के अनुयायियों ने अपील की। ओशो के शिष्यों के एक समूह ने 13-15 अगस्त को कोरेगांव पार्क में मानसून महोत्सव के सभी प्रतिभागियों को सूचना पत्रक वितरित कर एक बार फिर विरोध किया है। ओशो के शिष्यों ने ओशो इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट के प्रबंधन द्वारा किए जा रहे गलत कामों का पर्दाफाश किया गया।

ओशो आश्रम के पूर्व ट्रस्टी स्वामी चैतन्य कीर्ति ने कहा, “अभी पिछले महीने, भारत के विभिन्न हिस्सों से ओशो प्रेमी पुणे में गुरु पूर्णिमा मनाने के लिए ओशो की समाधि पर एकत्र हुए थे। ओशो प्रबंधन ने शुरू में शिष्यों के प्रवेश पर रोक लगा दी थी। बाद में पुलिस के हस्तक्षेप के कारण उन्हें 10 मिनट के लिए अंदर जाने दिया गया। एक महीने बाद आश्रम प्रबंधन ने 11 अगस्त से 15 अगस्त तक मानसून उत्सव मनाने का फैसला किया। जबकि ‘ओशो का जन्मदिन’ और ‘गुरुपूर्णिमा’ दुनिया भर के ओशो केंद्रों में मनाया जाता है, यह ओशो के आश्रम, पुणे में नहीं मनाया गया । वह आश्रम जहाँ ओशो दस साल से अधिक समय तक रहे और उनका निधन भी हो गया। ओशो इंटरनेशनल संस्था द्वारा ओशो से जुड़े सभी त्योहारों का बहिष्कार किया गया है। लेकिन दुख की बात है कि नए साल और मानसून के त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। ओशो इंटरनेशनल संस्था द्वारा ओशो रीति-रिवाजों और परंपराओं का विरोध करता था। ऐसी उनकी पहचान बनाई गयी है। संस्थान ने अपने उद्देश्य के लिए यह एक उत्कृष्ट उदाहरण सबको दिया है। इन सभी घटनाक्रमों को न्यूयॉर्क टाइम्स के १० दिसंबर २००२ के संस्करण में ‘डी-ओशोलाइज़ेशन’ कहा गया था।

ओशो के अनुयायी स्वामी चेतन अरूप ने कहा,”आत्मा की स्वतंत्रता के बिना मात्र शारीरिक स्वतंत्रता का कोई महत्व नहीं है। हम महाराष्ट्र सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं कि हमारे संविधान का अनुच्छेद 25 से अनुच्छेद 28 हमें धर्म की स्वतंत्रता देता है। इसका मतलब है कि हमें अपने धर्म का स्वतंत्र रूप से अभ्यास और प्रचार करने का अधिकार है। दुर्भाग्य से, हमें इन्हीं अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन (ओआईएफ) ओशो के मकबरे के अस्तित्व से इनकार करता है और इस स्थान को ‘चुआंगत्ज़ु हॉल’ कहने पर जोर दे रहा है। 2012 में चैरिटी कमिश्नर, मुंबई के समक्ष दायर एक शपथ पत्र में ओशो के मकबरे के अस्तित्व का इनकार किया गया था। ओशो इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन की ओर से उनके शिष्यों को लेकर गलत प्रतिमा बनाई जा रही है। संस्था की ओर से इस पवित्र स्थल को बदनाम कर यहां की कानूनी अड़चनों को दूर करने का कार्य व्यवस्थित रूप से किया जा रहा है और उसी के साथ ही इस स्थान को बेचने का प्रयास किया जा रहा है.

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