सोशल मीडिया के जरिए भ्रम , गुस्सा पैदा करने की कोशिश
एमआईटी डब्ल्यूपीयू द्वार चौथे राष्ट्रीय मीडिया और पत्रकारिता सम्मेलन का उद्घाटन
शांति के लिए पत्रकारिता पुरस्कार रवलीन कौर, सुशील कुमार महापात्रा और नीतू सिंह को प्रदान
पुणे : सोशल मीडिया शोर और झुंझलाहट बढ़ रहा है और इससे घबराने वाले लोग केवल वहीं हैं जो सिस्टम में निहित है. परिवर्तन का अर्थ शोर और व्यवधान और सब कुछ सोशल मीडिया द्वारा बढ़ाया जाता है. यह व्यवस्था लोगों को परेशान कर रहा है. उन्हें बदलाव का डर है. यह विचार एशियन न्यूज इंटरनेशनल की संपादक स्मिता प्रकाश ने कहा.
एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मीडिया एंड कम्युनिकेशन, पुणे की ओर से आयोजित तीन दिवसीय चौथे राष्ट्रीय मिडिया एवं पत्रकारिता परिषद के उद्घाटन मौके पर वे बतौर मुख्य अतिथी के रूप में बोल रहे थे.
एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष प्रा.डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ऑनलाइन उपस्थित थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता एमआईटी वर्ल्ड पीस युनिविर्सिटी के कार्याध्यक्ष राहुल विश्वनाथ कराड ने निभाई. इस मौके पर प्रसारभारती के पूर्व सीईओ जवाहर सरकार,राजनीतिक टिप्पणीकार रशिद किदवई, आर. के. लक्ष्मण म्यूजियम की उषा लक्ष्मण, पुणे श्रमिक पत्रकार संघ के अध्यक्ष स्वप्नील बापट, दुरदर्शन के पूर्व संचालक मुकेश शर्मा और डब्ल्यूपीयू के कुलपति डॉ. आर.एम.चिटणीस उपस्थित थे.
यहां पर द प्रींट की प्रिंसिपल करस्पांड ज्योति याद को डिजिटल और डाउन टू अर्थ मूक्त पत्रकार रविलीन कौर को प्रिन्ट क्षेत्र में सराहनिय कार्य के लिए पुरस्कृत किया गया. सभी पुरस्कार्थीयों को ५० हजार रूपये नगद, स्मृतिचिन्ह और सम्मान पत्र से गौरवान्वित किया गया.
स्मिता प्रकाश ने कहा, आज प्लेटफार्मों की बहुलत है. युवाओं द्वारा पत्रकारों की तथ्थ जांच की जा रही है और इसलिए हमें विनम्रता को समझने की जरूरत है. मीडिया को अक्सर नफरत फैलाने के लिए दोषी ठहराया जाता है, लेकिन क्या यह वास्तव में मीडिया कर रहा है या यह समाज का प्रतिबिंब है. हाल ही घटनाओं ने पत्रकारों को कानूनी प्रशिक्षण प्राप्त करने के महत्व पर प्रकाश डाला है. साथ ही भारत पर रिपोर्टिंग करते समय विदेशी मीडिया का पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण है. युवा और राष्ट्रवादी पत्रकार भारतीय नजरिए से दुनिया के सामने कहानियां पेश कर सकते है.
जवाहर सरकार ने कहा, ऑनलाइन और डिजिटल मीडिया आज मीडिया उद्योग में सबसे बडे खिलाड़ी के रूप में उभरा है. इंटरनेट अपरिहार्य है और कनेक्टिविटी नागरिकों के लिए रोटी, कपडा और मकान जैसी आवश्यकताओं के बराबर हो गई है. ओटीटी अभी भभ अनियंत्रित है और सरकार इसे दूरसंचार कानूनों के दायरे में लाने की कोशिश कर रही है. डेटा की पूरी नेटवर्किंग एक वास्तविकता बन गई है और इसलिए सूक्ष्म लक्ष्यीकरण एक खतरा बन गया है. हालांकि बिना जांच के अत्याधिक जुडाव हमें समस्या में डाल देगा. क्या वेब या मेटावर्स तथा ५ जी तकनीक मीडिया के भविष्य के पाठ्यक्रम को बदल देगी. इस पर हमें ध्यान देने की जरूरत है. रशीद किदवई ने कहा, छात्रों से मीडिया प्रैक्टिशनर्स के रूप में मीडिया की प्रक्रिया, स्वामित्व और संरचना को समझने की अपील की.
डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने कहा, आज की पत्रकारिता में अध्यात्मिक मूल्यों को लाना जरूरी है. हमारी शिक्षा आत्मा, मन और चेतना को भूल गई है. इसलिए मूल्यवर्धीत शिक्षा की जरूरत है. भगवद्गीता में भारतीय संस्कृति, परंपरा और तत्वज्ञान का दर्शन होता है. जीसे पत्रकारोंने अपने जीवन में उतारना चाहिए.
राहुल विश्वनाथ कराड ने कहा, लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए आने वाले समय में देश में पहली बार राष्ट्रीय विधायक सम्मेलन का आयोजन मुंबई में होने जा रहा है. पत्रकारिता यह लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने से इसे और मजबूत बनाने की जिम्मेदारी आनेवाले पत्रकारों की है.
स्वप्नील बापट ने कहा, देश के आजादी के अमृत महोत्सव पर पत्रकारिताने परिवर्तन की करवट ली है. ऐसे समय विश्व में शांति के लिए केवल बेहतरीन संवाद की जरूरत है. इस संवाद के लिए ऐसे सम्मेलन की समय अनुसार जरूरत है. उषा लक्ष्मण ने आर. के लक्ष्मण का जीवन और कार्य को विस्तृत रूप से रखा. मुकेश शर्मा ने अपने विचार रखे.
पुरस्कारप्राप्ता नीतू सिंह ने कहा कि पत्रकारिता निष्पक्ष होने के साथ उसमें लकिरे मत खिचिये. सुशील कुमार मोहपात्रा ने कहा, पत्रकारिता एक तरफा मत कीजिए. इसमें ईमानदारी के सूत्र को अपनाने के साथ शांति के लिए कार्य करना है. वहीं रवलिन कौर अपना अनुभव साझा करते हुए पत्रकारिता के जरिए ग्रामीण क्षेत्र का असली चेहरा समाज के सामने रखा.
प्रो.डॉ. आर.एम.चिटणीस ने प्रस्तावना रखी. स्वागत पर भाषण धीरज सिंह ने किया.