केंद्र सरकार गंभीरता से संज्ञान ले
राष्ट्रीय गौ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना तत्काल हो
बहराइच से विक्रांत/ऋषि नाथ की रिपोर्ट
बहराइच: भारत में मुगलों के आक्रमण से पूर्व देसी गायों की प्रजातियां लगभग सैकड़ों के आसपास थी वर्ष 1947 में अंग्रेजों से आजादी पाने के बाद मात्र 5 दर्जन प्रजातियां देसी गायों की स्थिति समूचे भारत में किंतु उनमें से आप वर्तमान में मात्र 23 पर जाते ही बची है देश इसमें भी आधा दर्जन विलुप्त होने के कगार पर आ खड़ी हुई है उदाहरणार्थ समूचे देश में देसी गायों की प्रजाति में कृष्ण मीरा नाम की प्रजाति के कुल 50 से भी कम गाय बची हैं जबकि प्रत्येक 2 वर्षों में देसी गायों की एक नस रखने से विलुप्त हो रही है इसलिए भारत सरकार को प्रथम दृष्टया तत्काल गंभीरता से संज्ञान लेकर वर्तमान में बची मात्र दो दर्जन देसी गायों की प्रजातियां को बेहतर तरीके से संरक्षित व संबोधित करने हेतु कम से कम एक आदत राष्ट्रीय गौ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना जो आवश्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य रूप से करना चाहिए समय गवाएं बिना यज्ञ समसामयिक परीक्षा में यही समिति भी होगा भारत सरकार के इमानदारी पूर्वक कर्तव्य निर्वहन हेतु और यह कदम वैसे का स्तर पर काबिले गौर ही नहीं अभी तो काबिले तारीफ भी माना जाएगा
गौरतलब है कि भारत गणराज्य के कुल राज्यों में से एक सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश हैं जहां का मुखिया स्वयं गोपालक मुख्यमंत्री भी है जिन्होंने उत्तर प्रदेश में नंद बाबा नमक गौ संवर्धन डेरी प्लांट की योजना को जरूर चलाया किंतु यह योजना संभवत गरीब लोगों हेतु ना हो जैसे, वैसे भी पूर्वर्ती सपा सरकार द्वारा कामधेनु नामक योजना संचालित किया गया था किंतु वह भी गरीबों के लिए नहीं थी क्योंकि उसमें कम से कम 17लाख अथवा 35लाख निवेश करने के पश्चात सरकारद्वारा ₹35लाख व 65लाख तक डेयरी प्लांट लगवाने हेतु प्रदान किया जाता था जिसे गरीब किसान मजदूर द्वारा निवेश नहीं किया जा सकता था जबकि कामधेनु योजना हो या नंद बाबा योजना सब डेरी प्लांट तक सिमट कर रह जाती हैं ऊपर से छोटे और गरीब किसानों को नसीब तक नहीं हो पाती हैं इन योजनाओं में विलुप्त हो रही देसी गायों की प्रजातियों के संरक्षण की कोई गुंजाइश ही नहीं है हालाकी उत्तर प्रदेश के गोपालक मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने इन देसी गायों के संरक्षण हेतु एक प्रशंसनीय पहल अवश्य की गई है जिसमें जनता यदि गौशाला से गायों को लेकर गोपालन करना चाहती है तो सरकार और व्यक्ति को प्रति गाय ₹900 प्रतिमाह भुगतान करती है जो देसी गौ संरक्षण है तो वरदान साबित हो सकती है किंतु इस योजना को भ्रष्टाचार व घपले घोटाले के शिकंजे से मुक्त करवा कर यदि पूर्ण ईमानदारी से संचालित किया जाए तो अन्यथा की स्थिति में नहीं।
यूं तो देश में गैर सरकारी कुछ संगठनों ने देशी गाय संरक्षण के मामले में प्रशंसनीय पहल की है वैसे उत्तर प्रदेश के कानपुर के गौशाला द्वारा पंचगव्य से घनवटी नामक औषधि बनाकर मधुमेह रोग के इलाज में बेहतर व सफल उदाहरण प्रस्तुत किया जा चुका है इसके अलावा दक्षिण भारत में कर्नाटक में रामकृष्ण गांव संरक्षक के अध्ययन के अनुसार जहां एक देसी गाय के दूध से मात्र 15 सो रुपए प्रतिमाह की आय होती है वहीं दूसरी ओर अकेले एक देसी गाय से तैयार पंचगव्य से 30,की प्रति माह की आय होती है इस तरह पंचगव्य का व्यापार करने वाली संस्थाओं द्वारा देसी गाय के संरक्षण में बेहतर उपादान बीए गये है जो मील का पत्थर साबित हो रहा है इन गौशाला संस्थान में उत्तराखंड के ऋषिकेश राजस्थान के जयपुर कर्नाटक के शिमोगा महाराष्ट्र के नागपुर और उत्तर प्रदेश के कानपुर इत्यादि संगठनों द्वारा
देसी गाय का संरक्षण किया जा रहा है वैसे भी भारत में आयुर्वेदिक दवा कंपनियां तो गोमूत्र को महंगी दर पर खरीद रही हैं परंतु छोटे वा गरीब किसान गोपालक बेचारे इस व्यापार से भी वंचित रह जाते हैं और पंचगव्य व्यापार से भी वंचित हैं उदाहरण के लिए जनपद बहराइच के विकासखंड महसी के गोपालक किसान ऋषि नाथ त्रिवेदी राजकुमार इत्यादि किसानों ने दो-दो हजार लिटर गोमूत्र एकत्रित किया था परंतु कोई कंपनी अथवा व्यापारी इनके लिंक में न मिल सका और निराश होकर इन्होंने उसको फेंक दिया इस तरह से छोटे व गरीब किसान को सरकार द्वारा किसी प्रकार का सहयोग अथवा व्यापारिक लिंक नहीं दिया जाता है जिससे ना तो देसी गायों का संरक्षण हो पाता है और न ही किसानों की आय में वृद्धि हो पाती है बेचारे किसान इस तरह के किसी भी व्यापार से हर तरह से वंचित ही रह जाते है अतः अब नहीं तो कब की तर्ज पर केंद्र व राज्य सरकारों को समय रहते सचेत हो जाना चाहिए और देसी गायों के विलुप्त हो रही प्रजातियों के संरक्षण व संवर्धन हेतु राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर राष्ट्रीय गौ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना हेतु तत्काल प्रभावी कदम उठाना होगा तथा ग्रामीण अंचलों में छोटे गरीब किसानों को गौ पालन हेतु सहायता व प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए आगे आना होगा तभी देसी गायों की प्रजातियों को विलुप्त होने से पहले बचाया जा सकता है अन्यथा की स्थिति में नहीं खासकर गोपालक मुख्यमंत्री से अपेक्षा अवश्य की जा सकती है नया आयाम गढ़ने के लिए नया इतिहास रचने के लिए।
भारत में तेजी से देसी गायों की प्रजातियों की बिलुप्ति हो रही है जिसमे देसी गायों की 60 प्रजातियों में 30 प्रजातियों की विलुप्ती हो चुकी है इसमें 6 प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं जिसमें कृष्ण नीरा नाम के प्रजाति की मैं गायों में समूचे भारत में 50 से भी काम गांए बची हैं जिनके संरक्षण की सख्त आवश्यकता है समसामयिक परिपेक्ष में।