पूणे

सहिष्णुता का अर्थ है काम और क्रोध पर नियंत्रण रखना डॉ. योगेन्द्र मिश्रा के विचार ; आलंदी में वैश्विक सहिष्णुता सप्ताह का उद्घाटन

सहिष्णुता का अर्थ है काम और क्रोध पर नियंत्रण रखना
डॉ. योगेन्द्र मिश्रा के विचार ; आलंदी में वैश्विक सहिष्णुता सप्ताह का उद्घाटन

पुणे: सहिष्णुता का अर्थ है काम और क्रोध पर नियंत्रण रखना. आलंदी ज्ञान की भूमि है. यहां की तीर्थ यात्रा व्यक्ति को विषय सागर क पा रले जाती है. इस प्रकार यहां आनेवाले भक्त का हृदय शुद्ध हो जाता है. यह विचार काशी के विद्वान और हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य प्रो.डॉ. योगेन्द्र मिश्रा ने व्यक्त किए.
विश्वशांति केंद्र (आलंदी), माईर्स एमआयटी, पुणे, भारत व श्रीक्षेत्र आळंदी-देहू परिसर विकास समिती यांच्या संयुक्त विद्यमाने ‘श्रीसंत ज्ञानेश्वर-तुकाराम ज्ञानतीर्थ’,विश्वरूप दर्शन मंच, श्रीक्षेत्र आलंदी में  संत शिरोमणि दार्शनिक श्री ज्ञानेश्वर माऊली के ७२७ वीं संजीवन समाधि के अवसर पर वे बतौर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे.
इस मौके पर आलंदी के वारकरी शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष हभप मारुती महाराज कर्‍हेकर, हभप किसन महाराज साखरे के पूत्र चिदम्बर महाराज साखरे,  विठ्ठलराव कालोखे, बालासाहेब कालोखे, अशोक उमरगेकर, सुरेश वडगांवकर, शिवसेना शहर प्रमुख राहुल चव्हाण, देहू के रमेश कालोखे, तुकाराम कालोखे और हभप तुकाराम महाराज गरूड ठाकुरबुवा दैठणेकर उपस्थित थे.
विश्वशांति केंद्र (आलंदी), माईर्स एमआइटी के संस्थापक अध्यक्ष विश्वधर्मी प्रो.डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने अध्यक्षता निभाई.
इसके साथ ही श्रीमती उषा विश्वनाथ कराड, माईर्स एमआईटी की कार्यकारी निदेशक प्रो.स्वाति कराड चाटे, संस्कृत के विद्वान पं. वसंतराव गाडगिल, नागपूर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. एस.एन.पठाण तथा डॉ. संजय उपाध्ये उपस्थित थे.
डॉ. योगेन्द्र मिश्रा ने कहा, आलंदी संवेदना की सृष्टि होने से यहां सत्य के संस्कार मिलते है. हमारी जिज्ञासा बढ़ती है और हम संतुष्ट होते है. हमें देवताओं के संस्कारों को अपनाने के लिए जीभ के स्वाद और शब्दों का सावधानीपूर्वक उपयोग करना चाहिए.
प्रा.डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने कहा, सामाजिक कार्य करते समय हमेशा नागरिकों का विरोध होता है. लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल ने मुझे विचलित न होने की सलाह दी. उनके सूत्र अनुसार आलंदी में घाट का निर्माण किया गया. यहां गरुड़ स्तंभ का निर्माण ४३ दिनों में और बद्रीनाथ में माता सरस्वती का ६३ दिनों में मंदिर को बनाया. यह विनम्रता ,  आस्था, भक्ति और कर्म योग का परिणाम है.
अशोक उमरगेकर ने कहा, डॉ. कराड ने वह किया जो राजनीतिक क्षेत्र और महाराष्ट्र सरकार आलंदी के लिए नहीं कर सकी. उन्होंने शिक्षा के साथ साथ आध्यात्मिक क्षेत्र में अद्वितीय काम किया है. सबसे पहले वारकरियों के लिए शौचालय बनाने के बाद उन्होंने घाट और गरुड़ स्तंभ बनाए.
चिदम्बर महाराज साखरे ने कहा, सहिष्णुता व्यापक है और इसमें विश्व सोच शामिल है. इसलिए सभी तीर्थ क्षेत्र ज्ञान तीर्थ क्षेत्र होने चाहिए. हमें समाज के अंतिम व्यक्ति तक ज्ञान पहुंचाने का काम करना चाहिए. संतों द्वारा रचित ग्रंथों को पढ़ना चाहिए. जो हमारे मस्तिष्क का संतुलन बनाए रखने का काम करता है.
प्रो.स्वाति कराड चाटे ने कहा, केंद्र सरकार भारतीय शिक्षा प्रणाली में आध्यात्मिकता को शामिल करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है. लेकिन डॉ. कराड यह प्रयोग ४० साल पहले ही कर चुके है. तीथ से ज्ञान तीर्थ तक की यह यात्रा अद्भुत है.
डॉ. एस.एन.पठान ने कहा, ७०० साल पहले संत ज्ञानेश्वर ने जाति पाति के बंटे समाज को एक साथ लाने का प्रयास किया था. दुनिया के इतिहास में आलंदी की भूमि मानव का गुरुकुल बन गई है. वारी मानव मन की शुद्धि का आध्यात्मिक त्योहार है.
डॉ. संजय उपाध्ये ने कहा यह मंच ज्ञान की दिवाली मनाने के लिए है. डॉ. कराड और हभप साखरे महाराज के कार्यों को नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए शिक्षा की जरूरत है. इंद्रायणी के साथ ही देश की सभी नदियों के किनारे शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए.
इसके बाद पं. वसंतराव गाडगिल एवं विठ्ठलराव कालोखे ने अपने विचार प्रस्तुत किये.
डॉ. सुदाम महाराज पानेगांवकर ने प्रस्तावना रखी और फिर इंद्रायणी माता की आरती हुई.
.हभप शालिकराम खंदारे महाराज ने संचालन एवं महेश महाराज नलावडे ने आभार माना.

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